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sramverma
मेरे विशुद्ध भावों की अभिव्यक्ति है मेरी कविताएं; या यूं कहूं की मेरे पुरूषत्व के अंदर कहीं छुपी स्त्री है मेरी कविताएं।
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sramverma 13h
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sramverma 1d
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sramverma 2d
Date 19/04/2021 Time 10:06 PM #SRV #ehsaas
कुछ तो है जिसके
खो जाने का एहसास
इस क़दर गहरा है;
वो अभी मिला भी नहीं है
और बहुत कुछ है
जो अभी मेरा नहीं है
मगर उस के खो जाने का
एहसास इस क़दर गहरा है
एहसास जो मुस्कुराती हुई
आँखों में भी आँसू ले आते है
और सरशारी के लम्हों में भी
गहरी उदासी का रंग भर जाते है
वा'दा किया था कि प्यार सदा
हम एक दूजे से करते रहेंगे
ये जानते हुए भी कि एक दिन
हम ही नहीं रहेंगे
ना रोक सकेंगे
ना ही रुक सकेंगे
हक़ीक़त यही दुनिया की है
फिर भी दिल क्यों ग़मगीं है
कुछ ऐसा है जो अभी
तक खोया नहीं है !
शब्दांकन © एस आर वर्मा
Image's taken from Google/Facebook/pinterest credit goes to It's rightful owner..,
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sramverma 3d
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sramverma 4d
Date 17/04/2021 Time 7:23 PM #SRV #dard
दर्द के गहरे सन्नाटे में
देह के बंद किवाड़ पर
कोई तो दस्तक दे कर
पूछे कि कैसे जिन्दा
रह लेते हो ?
सुन्न पड़ी देह पर
हल्की सी सरगोशी
कर के कोई तो पूछे
कि इस बेजान सी
देह के साथ कैसे
जीवन बसर कर
लेते हो ?
हिज्र के गहरे सन्नाटों
में खुद से बिछड़े लोगो
तुम ये तो बताओ कि
अकेले कैसे ज़िंदा रह
लेते हो !
शब्दांकन © एस आर वर्मा
Image's taken from Google/Facebook/pinterest credit goes to It's rightful owner..,
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sramverma 5d
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sramverma 1w
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sramverma 1w
Date 14/04/2021 Time 7:27 PM #SRV #husn
तुम कैसे कह देते हो एक कविता लिख दो ,
नहीं पता तुम्हे मुझे ख़ून जलाना पड़ता है ;
हर्फों से दो दो हाथ करने में ना जाने कब ,
अपनी नब्ज़ों का धागा कटवाना पड़ता है ;
पुरानी यादों के नुकीले नश्तरों से बार बार ,
अपने दिल पर वो नाम गुदवाना पड़ता है ;
अपने सीने के सियाह हुए काग़ज़ पर ,
ख़ंजर बन खून से सब मिटाना पड़ता है ;
कविता गीत नज़्मों ग़ज़लों के झगड़ों से ,
अपने ज़ख़्मों पर नमक छिड़कवाना पड़ता है ;
वो गली जहाँ तुम पहले पहल रहा करते थे ,
उस गली में ना चाहते हुए भी जाना पड़ता है ;
तुम्हारे किये हर एक झूठे वादे बयाँ करके ,
फिर उनमें से तुम्हारा नाम हटाना पड़ता है ;
वो अक्स जिसे अब मैं शायद याद भी नहीं ,
ना चाहते हुए भी उसे रक़्स दिखाना पड़ता है ;
अपने तेवर साहूकार के पास गिरवी रखकर ,
फिर उसे मुँह मांगी कीमत पर छुड़वाना पड़ता है ;
पहले पागलपन की सारी हदें पार कर के ,
फिर वापस घर को ही तो आना पड़ता है ;
सारी की सारी चतुराई तब बिक जाती है ,
जब जाकर बाहर कुछ कमाना पड़ता है ;
आतिशबाज़ी आतिशबाज़ी कर कर के,
उसमें फिर ख़ुद को ही जलाना पड़ता है ;
तुम जिसे ज़ेवर समझते हो वो ता'वीज़ है ,
इन्हे आस्तीनों में छुपा कर रखना पड़ता है ;
तुम कैसे कह देते हो एक कविता लिख दो ;
नहीं पता तुम्हे मुझे ख़ून जलाना पड़ता है !
शब्दांकन © एस आर वर्मा
Image's taken from Google/Facebook/pinterest credit goes to It's rightful owner..तुम कैसे कह देते हो एक कविता लिख दो ,
नहीं पता तुम्हे मुझे ख़ून जलाना पड़ता है ;
हर्फों से दो दो हाथ करने में ना जाने कब ,
अपनी नब्ज़ों का धागा कटवाना पड़ता है ;
पुरानी यादों के नुकीले नश्तरों से बार बार ,
अपने दिल पर वो नाम गुदवाना पड़ता है ;
अपने सीने के सियाह हुए काग़ज़ पर ,
ख़ंजर बन खून से सब मिटाना पड़ता है ;
कविता गीत नज़्मों ग़ज़लों के झगड़ों से ,
अपने ज़ख़्मों पर नमक छिड़कवाना पड़ता है ;
वो गली जहाँ तुम पहले पहल रहा करते थे ,
उस गली में ना चाहते हुए भी जाना पड़ता है ;
तुम्हारे किये हर एक झूठे वादे बयाँ करके ,
फिर उनमें से तुम्हारा नाम हटाना पड़ता है ;
वो अक्स जिसे अब मैं शायद याद भी नहीं ,
ना चाहते हुए भी उसे रक़्स दिखाना पड़ता है ;
अपने तेवर साहूकार के पास गिरवी रखकर ,
फिर उसे मुँह मांगी कीमत पर छुड़वाना पड़ता है ;
पहले पागलपन की सारी हदें पार कर के ,
फिर वापस घर को ही तो आना पड़ता है ;
सारी की सारी चतुराई तब बिक जाती है ,
जब जाकर बाहर कुछ कमाना पड़ता है ;
आतिशबाज़ी आतिशबाज़ी कर कर के,
उसमें फिर ख़ुद को ही जलाना पड़ता है ;
तुम जिसे ज़ेवर समझते हो वो ता'वीज़ है ,
इन्हे आस्तीनों में छुपा कर रखना पड़ता है ;
तुम कैसे कह देते हो एक कविता लिख दो ;
नहीं पता तुम्हे मुझे ख़ून जलाना पड़ता है !
शब्दांकन © एस आर वर्मा -
sramverma 1w
Date 13/04/2021 Time 7:27 PM #SRV #husn
लड़खड़ा जाऊँ तो सँभलना भी जानती हूँ,
हाँ दुर्घटनाओं से निपटना भी जानती हूँ;
आइना भी जो देख कर खुद हार मान लें,
मैं इस कदर सजना सँवरना भी जानती हूँ;
हाँ मेरी सादगी में भी ऐसा हुस्न छुपा है,
कि तेरे दिल में कैसे रहना है जानती हूँ;
तुम बस भरोसा रखना मेरी वफ़ा पर,
मैं अँगारों पर चलना भी जानती हूँ;
मैं हरगिज़ ख़ुद-कुशी का शौक नहीं रखती,
मगर तुझ पर मर मिटना अच्छे से जानती हूँ;
हाँ मेरी फ़ितरत है हु-ब-हु पानी की तरह,
मैं हर साँचे में खुद को ढालना जानती हूँ;
गर कभी बिफर जाऊँ तो लहर बन जाऊँ,
चटानों को अपने रस्ते से हटाना जानती हूँ;
जुनूँ बन कर जो टकरा जाऊं दिमाग से तो,
सारी की सारी हदों से भी गुज़रना जानती हूँ;
दुआ-ए-सलामत पढ़ती रहती हूँ अक्सर,
हर तरह की बलाओं से निमटना जानती हूँ;
मुझे वो सारे के सारे हुनर आते है जानाँ,
जिन से तेरी क़िस्मत बदलना जानती हूँ;
सियासत करना चाहती नहीं हूँ मैं वर्ना,
तेरा ये तख़्त-ओ-ताज पलटना जानती हूँ;
अक्सर भुला देती हूँ मैं इन रंजिशों को,
तब ही तो तुझसे मैं लड़ना नहीं जानती हूँ;
वफ़ा तुम ने नहीं की मुझ से अब तक,
लेकिन तुझे मैं अब भी अपनाना जानती हूँ;
तेरे दिल को जो लगा लूँ अपने दिल से,
तो तेरा दिल भी मैं बदलना जानती हूँ !
शब्दांकन © एस आर वर्मा
Image's taken from Google/Facebook/pinterest credit goes to It's rightful owner..लड़खड़ा जाऊँ तो सँभलना भी जानती हूँ,
हाँ दुर्घटनाओं से निपटना भी जानती हूँ;
आइना भी जो देख कर खुद हार मान लें,
मैं इस कदर सजना सँवरना भी जानती हूँ;
हाँ मेरी सादगी में भी ऐसा हुस्न छुपा है,
कि तेरे दिल में कैसे रहना है जानती हूँ;
तुम बस भरोसा रखना मेरी वफ़ा पर,
मैं अँगारों पर चलना भी जानती हूँ;
मैं हरगिज़ ख़ुद-कुशी का शौक नहीं रखती,
मगर तुझ पर मर मिटना अच्छे से जानती हूँ;
हाँ मेरी फ़ितरत है हु-ब-हु पानी की तरह,
मैं हर साँचे में खुद को ढालना जानती हूँ;
गर कभी बिफर जाऊँ तो लहर बन जाऊँ,
चटानों को अपने रस्ते से हटाना जानती हूँ;
जुनूँ बन कर जो टकरा जाऊं दिमाग से तो,
सारी की सारी हदों से भी गुज़रना जानती हूँ;
दुआ-ए-सलामत पढ़ती रहती हूँ अक्सर,
हर तरह की बलाओं से निमटना जानती हूँ;
मुझे वो सारे के सारे हुनर आते है जानाँ,
जिन से तेरी क़िस्मत बदलना जानती हूँ;
सियासत करना चाहती नहीं हूँ मैं वर्ना,
तेरा ये तख़्त-ओ-ताज पलटना जानती हूँ;
अक्सर भुला देती हूँ मैं इन रंजिशों को,
तब ही तो तुझसे मैं लड़ना नहीं जानती हूँ;
वफ़ा तुम ने नहीं की मुझ से अब तक,
लेकिन तुझे मैं अब भी अपनाना जानती हूँ;
तेरे दिल को जो लगा लूँ अपने दिल से,
तो तेरा दिल भी मैं बदलना जानती हूँ !
शब्दांकन © एस आर वर्मा -
sramverma 1w
Date 12/04/2021 Time 8:30 PM #SRV #wazood
वजूद के जो हिस्से
वजूद की तलाश में
खो जाते हैं ,
उन का इंदिराज
ज़िंदगी की किताब
के किसी भी पन्ने
पर नहीं मिलता ,
हाँ उन कविताओं
नज़्मों शे'रोँ में जरूर
मिलता है जो आँसुओं
की रौशनाई में
लिखी गई हों ,
लेकिन फिर हमें
तारीकी को अपना
नशेमन बनाना पड़ता है ,
इस राज़ से ज़िंदगी
नहीं वजूद वाक़िफ़ है ,
और हम वजूद नहीं
ज़िंदगी जीते हैं !
शब्दांकन © एस आर वर्मा
Image's taken from Google/Facebook/pinterest credit goes to It's rightful owner..,
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सब कुछ फ़िदा कर चुके तुझ पर,अब कुछ भी बाकी नहीं तेरे लिये,
तुझसे बिछड़ कर अब तक ज़िंदा हूँ क्या यही काफ़ी नहीं मेरे लिये?
©rani_shri -
keentiwari 7h
हम अपनी नजर में सही रहें
तो सब सही
बाकी सब की सोच का
फर्क पड़ता नहीं
सजा तो तब है जब खुद की नजर से ही
नजर मिला पाये नहीं
©keentiwari -
bhawnapanwar 13h
..
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prakashinidivya 14h
सोचती हूं मैं !!
चार दिवारी में बित रहे पल का एहसास कैसा होगा !!
ये कटे न कटती जिन्दगी का लिबास कैसा होगा !!
©prakashinidivya -
gunjit_jain 14h
वज़्न - 212 212 212 (अनुशीर्षक)
ये मुहब्बत ख़सारा नहीं,
यूँ उदासी गवारा नहीं,
तू जहाँ भी रहे, खुश रहे,
क्या हुआ, जो हमारा नहीं।
वज़्न- 122 122 122 (रचना)फ़लक पर सितारा नहीं है,
नदी का किनारा नहीं है।
कहाँ चल दिया आज यूँ ही,
किसी ने पुकारा नहीं है।
बिना तेरे तो यार मेरा,
कहीं पर गुज़ारा नहीं है।
नज़र रोज़ तेरा चुराना,
मुझे अब गवारा नहीं है।
यहीं है कहीं पर तू 'गुंजित",
मगर अब हमारा नहीं है।
- गुंजित जैन -
गीतिका..
ये धनुष तुम उठा लो अभी...राम जी ।
देश को तुम बचा लो अभी...राम जी ।।
बंद देखों पड़े ये सभी काज हैं ।
भुखमरी है बढ़ी चुप रहा ताज हैं ।।
मौत ही दिख रही देख चारों तरफ ।
रोग ये जानलेवा हुआ आज हैं ।।
रोग को तुम मिटा लो अभी...राम जी ।
देश को तुम बचा लो अभी...राम जी ।।
ये धनुष तुम उठा लो अभी ...राम जी ।।
फैलता रोग जो कर उसे साफ़ दो ।
इस भटक को नया एक तुम नाफ़ दो ।।
आप से प्रभु गुजारिश रही हैं यही ।
पाप जो भी किए कर उसे माफ़ दो ।।
पाप ये तुम भुला लो अभी...राम जी ।
देश को तुम बचा लो अभी...राम जी ।।
ये धनुष तुम उठा लो अभी...राम जी ।।
आपसी मीत ये अजनबी हो चुके ।
प्रेम ये अब सभी मज़हबी हो चुके ।।
कौन अब सुन रहा है यहाँ एक की ।
लोग अब तो सभी मतलबी हो चुके ।।
गुल सभी तुम सजा लो अभी...राम जी ।
देश को तुम बचा लो अभी..राम जी ।।
ये धनुष तुम उठा लो अभी...राम जी ।।
विपिन"बहार"
©
©vipin_bahar -
नहीं उठाऊ मैं लाज का घूँघट
याद दिलाये ये तेरे घर की चौखट।
तेरी पाक नजरों की सीमा भी जरा बता
मर्यादा पुरुषोत्तम का जमाना भी अब रहा कहाँ।
©mamtapoet -
lafze_aatish 7h
उरुज-ए-बहार:-
उरुज :- ऊंचाई पर /peak
बहार :-खिलान / spring
शज़र :-पेड़ /tree
खिजां:-पतझड़ /Autumn
दार :-फांसी /rope of death
ख़्वाबिदा रूह दर-बद्र की ख्वाइश न थी बिलकुल भी,
खंजर पर रख जिगर ज़ख्मो का सौदा क्यों-कर हुवा!
नि:शब्द
@hindiwritersज़िन्दगी
चाय मे अदरक अचार मे राई ज़ुबां का स्वाद,
सेहत बिगड़ने पर नीम का कड़वा घूंट है ज़िन्दगी!
शज़र से ऊंची कई मंज़िला अकड़ दिखाती,
तूफ़ान मे खप्रेल उड़ाती गरीब की झोपड़ है ज़िन्दगी!
बर्फ से खेलती आग मे तपती ख़्वाबगाह में सोती,
उरुज-ए-बहार में खिजां की मेहमान नवाज़ी है ज़िन्दगी!
यारना दोस्तों से इश्क़ माशूका के गैसुओं से बेइंतहा,
पीठ पीछे हर रोज़ नई दार का नाप बनाती है ज़िन्दगी!
पतंग उड़ाती पेच लड़ाती हर रोज़ रंग-बाज़ो से खेलती,
मांजे से हाथ काटती रंग-साज़ से रंग लुटती है ज़िन्दगी!
देर होना कहीं पर रूक जाना बेपरवाह होना शाम तक,
बार बार दरवाज़े की और ताकती माँ की आंखे है ज़िन्दगी!
आतिश से लफ्ज़ लिखाती शेर और गज़ल सुनाती ,
नि:शब्द की तरहा बे-लफ्ज़ कलम चलाती है ज़िन्दगी!
नि:शब्द
©lafze_aatish -
कुछ लिखकर मिटाने की फ़ितरत होती हमारी,
अब तलक दिल पे तेरा नाम न होता।
©jigna_a -
श्री राम नवमी
राम नाम के जाप से, मिले मुक्ति का धाम ।
प्रेम भाव मन में जगे, हृदय विराजे राम ।।
चैत्र मास नौवमी तिथि, लिए हरि अवतार ।
सबहि को है तार दिया, कीर्ति छाई अपार ।।
रामजन्म के पर्व में, गूँजे जय-जय राम ।
भगति से पूरन हुए, सब जन के है काम ।।
धर्म हानि जब-जब हुई, लिए हरि अवतार ।
सत्य है विजयी हुआ, किया दुष्ट संहार ।।
क्षमा त्याग की मूरत, मोरे प्रभु श्री राम ।
मोक्ष द्वार खुल जावे, जौ ले रघुवर नाम ।।
मर्यादित जीवन का, देते रघुवर सार ।
वचन मान को राखिये, किजै सत आचार ।।
©Krati_Sangeet_Mandloi
(21-04-2021)✍️
