छिप नहीं सकते किरदार इस इश्क के।
सब तरफ़ हैं तलबगार इस इश्क के।।
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तुम लगे हो बनाने हदें इश्क की।
दोस्त बौने है मेयार इस इश्क के।।
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©prakhar_sony
prakhar_sony
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लोग कहते हैं रिश्ता जहाँ से रखें।
और उम्मीद क्या फिर अज़ाँ से रखें।।
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रंग बदले शबो-रोज़ जो आसमाँ।
फिर नज़र आसमाँ पे कहाँ से रखें।।
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©prakhar_sony -
कागज़ी थे रंग खुश्बू भी नहीं थी।
इश्क की महफिल में वो ख़ूबी नहीं थी।।
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सोचते थे हम जिसे अक्सर मुकम्मल।
वो हक़ीक़त में ग़ज़ल पूरी नहीं थी।।
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©prakhar_sony -
prakhar_sony 44w
(17.07.2021)
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जुम्बिश - चहल-पहल, कँपन
सहरा - रेगिस्तान
सदा - आवाज़
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##my_burnt_diaryमिटा दी है फ़िहरिस्त सब ख़्वाहिशों की।
बू आने लगी थी हमें साजिशों की।।
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अचानक रिहाई का ये फैसला क्यों।
लगी ही थी आदत अभी बंदिशों की।।
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सभी की छतों पे है इक जैसा रौशन।
ख़बर चाँद को क्या दिली जुम्बिशों की।।
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है सहराओ के दरमियाँ घर हमारा।
सदा फोन पे सुनते हैं बारिशों की।।
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©prakhar_sony -
सभी हाज़िर थे बे-मतलब तमाशे में।
न थे शामिल म़गर करतब तमाशे में।।
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अभी लम्बा चलेगा ये तमाशा कुछ।
कड़ा किरदार है जब तक तमाशे में।।
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कभी देखा न जिन्हें हमने सड़को पे।
लगे हैं दिखने वो साहब तमाशे में।।
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©prakhar_sony -
शेर
रंग किस्मत में उजालों के है सारे।
रात को कब हैं मयस्सर रंग सारे।।
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©prakhar_sony -
हम भी चलकर ये तमाशा देखते हैं।
आब में कैसे वो प्यासा देखते हैं।।
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आप ही ने दी हवा इस बात को फिर।
आप क्यूँ कोई किनारा देखते हैं।।
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©prakhar_sony -
मुझे इस तरह सारे किस्से दिखाए।
कि मेरी ही ख़ामी के हिस्से दिखाए।।
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सभी पेड़ जंगल के कटने लगे हैं।
ज़माने को कागज़ ये अच्छे दिखाए।।
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दिखाए हमें सिर्फ़ दरिया के रस्ते।
सड़क के कहाँ हमको रस्ते दिखाए।।
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हक़ीक़त में वो लोग शैतान थे बस।
मगर टी.वी ने सब फ़रिश्ते दिखाए।।
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ज़माना है हद से गुज़रने का समझो।
किताबें न रक्खो जो पर्दे दिखाए।।
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©prakhar_sony -
prakhar_sony 55w
(01.05.2021)
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मुंसिफ़ - न्यायाधीश/ judge
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##my_burnt_diary @writer_in_disguise5चाँद सूरज आसमाँ तारे सही हैं।
ख़्याल ख़्वाहिश ख़्वाब तुम्हारे सही हैं।।
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सच है मुंसिफ़ के हवाले अब हमारा।
झूठ तेरे सारे के सारे सही हैं।।
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रौशनी की तुम नुमाइश में लगे हो।
असलियत में दोस्त अँधियारे सही हैं।।
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©prakhar_sony -
prakhar_sony 55w
(01.05.2021)
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दरिया - नदी
जानिब - तरफ/ओर
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##my_burnt_diary @writer_in_disguise5शेर
जो समंदर की तलाशी से फ़ुर्सत तुम्हे हो।
गौर फिर दरिया की जानिब करो तुम शायद।।
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©prakhar_sony
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बस एक आख़िरी सवाल है तुमसे मुझे,
क्यों हर मसला हर मलाल है तुमसे मुझे।
©rani_shri -
रखना इतनी सदाक़त
ख़ुद में ज़रूर कि
वक़्त जब झाँके गिरेबाँ में
तो यहाँ ख़ुद की साख हो
©neha_sultanpuri -
succhiii 44w
@sanjeevshukla_ @rekhta_ @hindiwriters @hindinama @parle_g
1222 1222 122
कौन आएगा यहाँ कोई न आया होगा
मेरा दरवाज़ा हवाओं ने हिलाया होगा
- कैफ़ भोपालीग़ज़ल
गुमां होता है हर -पल मुझको कोई
सदा देता है पल-पल तुझको कोई ।
रखे हैं तेरे ख़त सम्भाल अब -तक ..
कि आहट हो कोई , दस्तक हो कोई ..
शबे- फुरकत कभी ,ख़त्म हो मौला ..
सहर की भी दिखे सूरत तो कोई ।
महक उठती दरो-दीवार घर की ..
सबा लाती तेरी ख़ुशबू जो कोई ।
तेरा ग़म है, तू है ,तो रौशनी है …
वगरना जीस्त बेमक़सद हो कोई ।
@succhiii -
कभी अपने सवालों के जवाबों में उलझना है,
कभी अपने ख़यालों से हमें बचकर गुजरना है।
©naushadtm
नहीं दरकार शीशे की, निगाहों में सँवरना है,
कभी है टूटकर जुड़ना, कभी जुड़कर बिखरना है।
©gunjit_jain -
bhavna_r_verma 50w
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@aqdas_m @ashk_ankush
@prakhar_sony
#anougraphy #shriradhey_apt @hindiwriters #reetey #adhure_lafz @rangkarmi_anuj
#hindiwritersआज फिर तुम ज़रा से याद आये,
आज फिर दिल ने धड़कना चाहा।
©Bhavna_r_verma -
dipps_ 54w
#dipps #hindi #hindiwrites
मै वो नहीं रहा जिसको तुम चाहती थी,
ना मै वो बन पाया जैसा तुम चाहती थी।
लगता है अब की ये बस एक सपना था,
तुमने वैसे ही देखा जैसे तुम चाहती थी।
@dipps_
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कौन है वो और भला मुझसे क्या चाहती है,
कहो दूर रहे, गर वो उसका भला चाहती है।
©dipps_ -
हम ग़मों के बाज़ार में आ बैठे है
तेरी आशनाई से दिल लगा बैठे है
©neha_sultanpuri -
neha_sultanpuri 55w
हम तेरे वजूद को सच समझ बैठे थे
हम ख़्यालों को हक़ीक़त समझ बैठे थे
©neha_sultanpuri -
neha_sultanpuri 54w
एक अजीब उलझन सी बनी रहती है
कि शाम अब शाम सी कहाँ रहती है
©neha_sultanpuri -
ishq_allahabadi 54w
बहर-ए-ग़म = दुख का दरिया
उन्वान = शीर्षक
हर्फ़ = अक्षर
#mirakee #writersnote #hindinama #lekhni #urdu #mirakeewriters #ghazalग़म
किस तरह ग़म का मिरे कोई किनारा होता,
बहर-ए-ग़म का जो मिरे कोई सहारा होता।
उसके हर नाज़ को नख़रे को उठाता मैं भी,
क्या ही होता वो अगर काश हमारा होता।
तोड़ लाता मैं फ़लक से भी बहुत मुमकिन था,
नाम का उसके फ़लक पर जो सितारा होता।
हर्फ़ ब हर्फ़ कहानी में मिरे तुम होते ,
उसका उन्वान अगर नाम तुम्हारा होता ।
बात करते हैं कि हम जान नहीं दे सकते,
सर को रख देते छुरी पर जो इशारा होता।
गर जुनूँ "इश्क़" का जो ख़ूँ में उतारा होता,
इश्क़ में जलने का कुछ और नज़ारा होता।
©ishq_allahabadi
