मैं गुज़र रहा हूँ उस दौर से,
जहाँ,
ख़ुद से रास्ता पूछता हूँ हर मोड़ पे,
जाना किधर हैं ख़ुद को पता नहीं,
बस उसको अपनाते चला,
जो दिल को जचा सही,
जाने कब जाकर रुकूँगा,
हा पहुँच चुका मुक़ाम पर,
ये ख़ुद से कहूँगा,
मंज़िल मेरी एक हैं,
बस मैं रास्तों में उलझा हूँ,
ऊपर से दिखता ठीक हूँ,
अंदर से थोड़ा भी न सुलझा हूँ,
©amar61090