यूं बेवज़ह में जिये जा रहे हो
एक-एक दर्द की घूंट पिये जा रहे हो,
यूं तो बेवज़ह नहीं होता,बिना किसी वज़ह के जीना,
फिर भी ये सोच कर खुद को,क्यों सताये जा रहे हो।
हर एक अक्स़ जो दिल में समाए रखे हो
निकाल फेंकने में उन्हें,तुम्हारा क्या जाता है,
समझ नहीं आता क्या तुम्हें,
यहाँ कुछ खो कर ही इन्सान,कुछ पाता है।
-प्रेरणा