तुम खुश हो न?
बस इतना ही तुमसे पूछना है, न जाने कितने वक्त से। शायद सालों बीत गये हैं। अब वक्त याद रखने की जरूरत नहीं पड़ती है, साल-दर-साल यादें धुंधली पड़ती जायेंगी। बस हादसे याद रह जायेंगे।
तुम्हे मुस्कुराते हुए हम कभी नहीं देख पायेंगे। तुम्हारी हँसी पर तुम्हारे दायें गाल में छोटा-सा भंवर उठता था और तुम्हारी आँखों में अनगिनत सितारे झिलमिला पड़ते थे। क्या अब भी ऐसा होता है?
हम! हम खुश हैं। ये सोचकर कि तुम खुश हो। तुमने कहा था कि तुम्हारे हथेली पर सालों पहले लगी चोट कभी-कभी टीसती है। बस किसी रोज हमें दर्द महसूस होता है, यूँ ही। क्या तुम्हारी हथेली अब भी टीसती है?
शायद तुम नहीं जानती। छोड़े गये प्रेमी, अपनी प्रेमिका से पुनर्मिलन की अनेकों कल्पनायें करते हैं। हम भी अपनी कल्पनाओं में तुम्हे मिलते हैं, तुम्हे सीने से लगाकर रो लेते हैं, उन तमाम प्रेमियों की तरह यह जानते हुए कि तुमसे कभी नहीं मिल सकेंगे।
तुम जानकर हँसोगी कि यह कल्पनायें इतनी सजीव लगती हैं कि हम कई बार सच में रो पड़ते हैं। तुम्हे महसूस कर पाना ही शायद हमें एक और दिन जीने की वजह देता है। हम डरते हैं किसी रोज अगर ये कल्पनायें महज कल्पनायें ही होकर रह गयीं तो! कहो, हम कभी, किसी रोज, कही किसी दूर शहर में ही सही, मिलेंगे?
तुम्हे कभी बताया नहीं हमने। जब तुम थी और तुमसे घंटो बातें हुआ करती थीं तब तुम्हारी आवाज सहेजा करते थे हम। कभी जो तुमसे बातें नहीं हो पाती थीं तब उन्हे सुनते हुए, इस एहसास के साथ कि तुम बात कर रही हो, हम सो जाया करते थे। अब वो आवाजें गुम गयी हैं। अब नींद भी कहाँ आती है। सालों गुज़र गये हैं, ठीक से सोये नहीं हैं हम। तुम्हे तो नींद आती है न?
बेचैनियाँ सीने में घर कर चुकी हैं। सफ़र बहुत लम्बा है और तुम कहीं नहीं हो। किसी रोज तुम्हारे शहर आना चाहते हैं, तुम्हे मिलने को। यह जानकर भी कि शायद तुम वहाँ न हो। लेकिन तुम्हारी कही एक आखिरी बात हमारे पाँवों से लिपट जाती है। वह एक बात जो हम भूले नहीं पर हमें याद भी नहीं है।
हम कभी तुम्हे ढूंढ़ने को नहीं आयेंगे। इंतज़ार करते प्रेमी हादसों के कब्र होते हैं। हर हादसे उनके सीने में दफ्न हो जाते हैं और ता-उम्र वहीं रहते हैं। तुमने कहा था, इंतज़ार मत करना।
हम और कुछ नहीं कर सकते हैं। तुम्हारे होने का एहसास, तुम्हे पा लेने की कल्पनायें और तुम्हारे लौट आने का इंतजार, हमारे होने की वजह है। तुमने कहा था, किसी गुमनाम शहर से, फिर मिलेंगे 'सोच'।
क्या हम फिर मिलेंगे?
बस इतना ही पूछना है तुमसे। न जाने कितने.
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