आज की सत्ता पर बेहतरीन कटाक्ष करती हुई यश मालवीय जी की कुछ लाइने...
स्थगित है गति समय का रथ रुका है,
कह रहा मन बहुत नाटक हो चुका है,
प्रशन का उत्तर कठिन है इसलिए भी,
प्रश्न सौ सौ बार टाला जा रहा है।
दूर तक औ देर तक सोचे भला क्या
देखना है बस फिजा में है घुला क्या
चुप्पियां है जुबा बनकर फूटने को
दिलो में गुस्सा उबला जा रहा है।।
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kumarrrmanoj 61w