रुद्राक्ष
यदि इतनी शक्ति या ऊर्जा होती मेरे
अंतस में तो, मैं भी तुम्हारे
वियोग में अपने अश्रु के
कण धरती पर गिरा देता
तो हो सकता कुछ स्नेह के रुद्राक्ष
मेरे मरुस्थल में भी
स्फुटित हो जाते।
यह संभव नहीं था
क्योंकि मैं तुच्छ मनुष्य,
उन बाघाम्बर के पैरों की रज भी नहीं
वो अंनत,
असंख्य, अकथ्य,
चंद्रशेखर से,
मैं तुलना कैसे कर सकता हूँ
उनका प्रेम तो युग युगांतर
तक अजर अमर
अप्रतिम है।
मैं उनकी दी हुई
अनमोल धरोहर को धारण
करता हूँ, उनका रुद्राक्ष
वह प्रेम और शक्ति का
प्रतीक है,
यह विश्वास अवश्य है कि
मैं रुद्राक्ष नहीं लगा सकता
पर प्रेम का एक पौधा
अवश्य रोपण कर सकता हूँ,
विशेष रूप से वट का,
क्योंकि उसकी आयु अधिक
होती है।
©अनुज शुक्ल "अक्स"
©rangkarmi_anuj
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