सांझ
देखो देशवासियों सांझ हो चली है,
सलामी देने की बेला हो चली है।
सूखे रक्त की मिट्टी को
प्रणाम करने की तैयारी है,
होने दो तिरंगे को भावुक
आज उसने नज़र उतारी है,
याद कर लें उन वीरो को
हम भारतीयों की ज़िम्मेदारी है।
देखो देशवासियों सांझ हो चली है,
सलामी देने की बेला हो चली है।
चलो चलें हम सब अमृतसर
जलियांवाला बाग देख आते हैं,
नम आखों से शहीदों को
हम नतमस्तक कर आते हैं,
वीरगति प्राप्त उस धरती में
पुष्प अर्पित कर आते हैं।
देखो देशवासियों सांझ हो चली है,
सलामी देने की बेला हो चली है।
वीरता निडरता की मूर्ति देखने
हम अलफ्रेड पार्क चलते हैं,
तर जाएंगे स्थान को देखकर
आज़ाद स्मृति देख लेते हैं,
राजघाट पर सूत चढ़ा कर
बापू को धन्यवाद दे देते हैं।
देखो देशवासियों सांझ हो चली है,
सलामी देने की बेला हो चली है।
भगत सिंह राजगुरु सुखदेव को पढ़कर
आज़ादी को समझ लेते हैं,
चलते हैं लाहौर सेंट्रल जेल
इंकलाब की गूंज सुन लेते हैं,
और बैरकपुर शिवपुरी ग्वालियर में
मंगल तात्या लक्ष्मीबाई इनकी गाथा सुन लेते हैं।
देखो देशवासियों सांझ हो चली है,
सलामी देने की बेला हो चली है।
©rangkarmi_anuj