उड़ान
न कोई अंधेरा, उजाले से घना,
न कोई हीरा, बिना कोयले के बना।
गुरबत से ख्वाब की क़ुर्बत तक जो जाना था तुमने ठाना,
'कुछ पीछे छूटा- कुछ गवाया', न होगा आसान सबने है माना।
ये कहना जायज़ नहीं कि है संघर्ष सबका एक,
मगर न पाई किसी ने दो वक़्त की रोटी यूं ही एकाएक।
क्या कभी सोचा? वो सूरज एक रोज़ न चाहते हुए भी जलता है,
फिर एक दफे तुम गिर भी गए, तो छोड़ो ना! चलता है।
कैसे एक नन्हीं नदी बहते-बहते समुंदर बन जाती है,
तुम भी मत रुको, न डरो, जब मुश्किल की घड़ी आती है।
ठोकर लगेगी, शायद औरों से ज़्यादा भी लगे,
वक़्त लगेगा, शायद औरों से ज़्यादा भी लगे।
मगर एक बार तुम पंख फैला के उड़ने लगे,
तो शायद हर उड़ान पिछली से ऊंची लगे।
गुफ्तगू करेंगे शिकारी,
कभी तुमसे, कभी तुम्हारी।
मगर मुस्कुराना तुम, बस बचाने आती ही होगी तुम्हें एक ऊंची उड़ान तुम्हारी।
©sukritisingh
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sukritisingh 100w
ऊंची उड़ान उड़ती है।
कामयाबी की डगर छूती रहे ।
आप....