इन गलियों में अब आना मत छोड़ना,
देव हो तुम,इन नैनो को
दर्शन से वंचित ना छोड़ना।।
जीवन के रंग बिखरे से है,
सँजो के इन्हे रंगवाली कर जोड़ना।
इन गलियों में अब आना मत छोड़ना।।
बैठे है हम उसी नीम की छांव मे,
बैठे है हम उसी नीम की छांव में,
जहाँ प्रतिदिन आया करते थे आप।
कभी युहीं चलते चलते कुछ कदम यहाँ भी मोड़ना,
इन गलियों में अब आना मत छोड़ना।।
जिस द्वार की चौखट के पीछे से तुम्हे निहारा करते थे,
वो द्वार सजाया है हमने प्रतीक्षा में ।
मेरी नहीं तो उसकी ही कुछ सोचना,
इन गलियों में अब आना मत छोड़ना।।
मुस्कुरा के जो दो शब्द कहे है आपने
अलंकार किया है "मैं" का उनसे,
ये प्रेम भरा श्रृंगार अधूरा मत छोड़ना।
इन गलियों में अब आना मत छोड़ना।।
@लक्ष्य
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