लड़ रहे है कब से , खुद के लिये खुद से,
नाकामयाबी मिली , फिर भी वही जुनून सवार है,
मुक़द्दर ने ठुकराया, फिर भी वो आज तैयार है,
ऐ जिन्दगी! मेरे हिस्से की जीत तुझ पर कब से उधार है।
भाग रहे है, एक अन्जानी दौड़ में कब से हम,
मंजिल की हमें आज भी तलाश है
गिर-गिर कर चलना सीखा है,
अब तो ये पैर अंगारों पर भी चलने के लिये तैयार हैं,
ऐ जिन्दगी! मेरे हिस्से की जीत तुझ पर कब से उधार है।
उम्मीदें कभी पूरी नहीं होती जिंदगी से ही सीखा है,
पर गिर कर सम्भलना आता है हमें।
कुछ ख्वाब टूट गए, कुछ आस अब भी बरकरार है।
ऐ जिन्दगी ! मेरे हिस्से की जीत तुझ पर कब से उधार है।
ये अधर चुप है, पर मन में बातों का भण्डार है,
मायूसी है चेहरे पर, आँखो में अश्क़ों का सैलाब है,
हारा नही हूँ मैं, बस कुछ पल के लिये रुका हूँ,
जीतने का जुनून आज भी मस्तक पर सवार है,
ऐ जिन्दगी ! मेरे हिस्से की जीत तुझ पर कब से उधार है।
©hindisahitya