शिवमय स्वरूप
देखो बिल्कुल चुप हूँ मैं
पर अंदर से आने वाली आवाज़े
या यूँ कहूँ शोर,
कानों को बीन्ध रहा है ये शोर
इस शोर की आवाज़ तो मेरी
आवाज़ से मिलती जुलती है
स्पष्ट कुछ नहीं सुनाई दे रहा
या मैं सुनना नहीं चाह रही
कुछ भी समझ नहीं आ रहा,
जैसे युद्ध सा हो रहा है भीतर,
मन में युद्ध, मन के ही विरुद्ध
पर ये युद्ध चाह कौन रहा है
मैं तो नहीं?
सारे प्रयास सारी विफलताएँ,
सभी दृश्य और अदृश्य संभावनाएं
सब चल रही हैं मस्तिष्क में
एक चलचित्र की भाँति,
पर स्पष्ट तो अभी भी कुछ नहीं,
कहने को बहुत कुछ है
पर किसी को कुछ नहीं कहना।
ऐसा होता है क्या ,
विचारों की उधेड़बुन में मन डूबता जा रहा है
घबरा कर आँखे मूंद ली,
और आँखों में जो रूप नज़र आया
वो महादेव आप का स्वरूप है।
और सब स्पष्ट हो गया।
©mamtapoet
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