कई दिनों बाद
कई दिनों बाद
कई दिनों बाद आज फिर कुछ लिखने का मन है
पर हाथ ही नहीं बढ़ते,
कई बातें हैं साझा करने को पर शब्द ही नहीं मिलते।
जैसे बंधे हुए हैं हाथ या फिर कलम में भरा कोई आक्रोश है,
आज पहली बार खाली मेरे अंतर्मन का शब्दकोश है।
कुछ ही पलों में नव वर्ष के संदेशों से भर जाएगा संसार
पर क्यों मेरे कदम नहीं करना चाहते इस वर्ष की दहलीज को पार।
जैसे एक आस है कि जो छीना है इस साल ने जाते-जाते लौटा जाए,
या कुछ ऐसा हो जाए इस साल को हम अपने जीवन से ही मिटा पाए।
जैसे यह साल हकीकत नहीं एक बुरा सपना हो
जैसे यह 2020कभी आया ही ना हो
कोई बीमारी अपने साथ लाया ही ना हो
ना हुई हो अनगिनत मौतें ना छिना हो रोजगार किसी से,
किसी को भी इसने इतना डराया और रुलाया ना हो।
दिन प्रतिदिन चलते इस संसार में जैसे हम कहीं रुक से गए हैं
कब से बढ़े ही नहीं कदम जैसे येअब थक से गए हैं।
नाउम्मीदी के इस दौर में उम्मीद की हल्की सी रोशनी फिर भी टिमटिमाती है,
शायद इसी का नाम है जिंदगी जो हमें जीना सिखाती है।
शायद अगले साल फिर से कोई ऐसी वजह मिल जाए,
जहां फिर से हम साथ हो हंसे साथ और मुस्कुराए।
कई दिनों बाद
कई दिनों बाद आज फिर से उस पत्थर को पूजने का मन है,
जिस पत्थर ने हमें ही पत्थर बना दिया उससे पूछने को आज अनगिनत प्रश्न है।
पर नहीं चाहिए इन प्रश्नों के जवाब बस मेरे सभी अपनों को अब सलामत रखना।
अब और किसी के जीवन में कोई और दुख ना आए बस इतना करम करना।
©simmy_sinha
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