यादें
जुड़ी थी तुझसे जो वो हर याद बिसारी है
हमने ज़िन्दगी बड़ी मुश्किल में गुज़ारी है
दिल के पिंजरे में यादों को हलाल करता है
वक़्त भी देखो बड़ा ज़ालिम सा शिकारी है
देखा किये थे साथ कभी चाँद तारे बैठकर
बेगैरत छत ने माँग ली वो अपनी उधारी है
हकीकत से क्यों अनजान बना फिरता है
दिल को चढ़ी न जाने कौन सी खुमारी है
आगे बढ़ें या लौटें दोनों सूरतों में चैन कहाँ
चल रहे हैं जिस पर हम तलवार दुधारी है
जान देने का वादा किया था जिसने कभी
उस शख़्स ने ही अब दिल से बात उतारी है
दोगलेपन की सी महक आती है ज़माने से
यकीन है हमको इसमें सभी की शुमारी है
©deepajoshidhawan