बचपन
पांव की पद चिन्ह है यह
या है माटी,धूल की बस।
यादों का है सुनहला पिटारा
या खिलौना खेल का बस।
झांक बचपन में जो देखा
कीमत उसकी मुट्ठी भर बस ।
पर जो सोचा आज फिर यह
बेशकीमती हर एक कोना।
दोस्तों के, जो संग बीती
शाम थी वह अपरिमित निराली।
विघ्न होता रात ही बस
सुबह फिर अनूठी बातों वाली।
ना फिकर कब पहर दोपहर
बीत जाती साथ माली।
गर जो लौटे शाम को घर
फिर उछल कूद वहीं डाली डाली।
काश !लौट आए वो बचपन
साथ यारों वाला वो लड़कपन।
बात बस स्वच्छंद हो और
लौट आए रिश्तो में वो अपनापन ।
सुबह की वही धूल माटी
चूल्हे की वही सोंधी रोटी।
लौट आओ साथ लेके
पल वही कोषों उमंग वाली।।
©camyyy