मत कर ऐसा मानव !
खाली गलियां सूनी सड़कें
आवाज़ भी गुम है;
ये है एक नज़ारा 'उसका'!
मानवता का मोल समझ ले
धरती है अनमोल संभल ले
कर सकता है तू आिवष्कार
दिया विज्ञान 'उसने'उपहार।
मानव का रक्षक था बनना
फिर क्यूं है भक्षण को तैयार ।
क्यूं है तेरे भीतर हलचल,
होड़ लगी है तेरे अंतर,
रब का भेद मिटाने की,
उलट फेर के तेरे चक्कर
देख रहा है 'वो' निरंतर
तूने जिसमें सदियां लगाई
'उसने' भी अब चुटकी बजाई
तूने जो खोदी है खाई
नापेगा तू ही गहराई...
मत होने दे!
खाली गलियां सूनी सड़कें,
नन्ही आवाज़ों को तू मत खोने दे,
मानवता पहचान ,परिंदों को उड़ने दे,
'उसकी' दुनिया है 'उसे' संचालन करने दे!
©mithyasach HKK
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mithyasach 118w