अंजाम तो सबसे छिपा नहीं है
कि इश्क में अब मज़ा नहीं है
आधे सफर में है ज़िंदगी मिरी
कि मोहब्बत में अभी सज़ा नहीं है
दूर से ही देखता हूँ उसको मैं
अब तलक उससे कुछ कहा नहीं है
बेहया समझो या बेकाबू तुम जानो
दिल ये अब मेरा रहा नहीं है
हर मुश्क मौजूद है वो महबूब मेरा
क्या कहूँ कि वो कहाँ नहीं है
बहुत हसीन है बेशक वो मगर
क्यों कहूँ मेरा, जब वो मेरा नहीं है
©asma7khan