जीवन के जिस रूप की
हृदय में बसी थी कामना
धरती से जुड़ी रहूँ
और आकाश भी था मापना
मन-अनल जो धुल सके
पवित्र करे जो आत्मा
कर सकूँ स्वयं को समर्पित
राजे तुम वही हो भावना
भौतिकता के भोग से
लोभ के संजोग से
जो रखे परे, संबल करे
तेरा वही हाथ मुझको थामना
तेरा वही हाथ मुझको थामना
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