•शायद...
फ़िक्र-ओ-ज़हमत तूने जो उठायीं थी मेरी कभी,
उस कदर फ़िर किसी की ना उठा पाए, शायद...
इस ख़्याल से ही सहम जाती हूं मैं अक्सर,
तू अब कभी मुझे गले से भी ना लगा पाए, शायद...
इन नज़रों में जो इंतज़ार देख ले ख़ुद के लिए,
फ़िर कभी तू मुझसे नज़रें ना मिला पाए, शायद...
पहर-ए-शब ये सिसकियां तू सुन ले गर,
मेरी जां! तेरा दिल फ़िर से आदतन घबरा जाए, शायद...
बेपनाह नज़्में और जाने कितने ही गीत
के जिनको सुनकर महक तेरी मेरी आँखों में आती है,
कल क्या पता कोई नग़्मा मेरी याद बन तुझे भी रूला जाए, शायद...
ख्वाबों में ये मुलाक़ातें आख़िर कब तक यूंही चलती रहेंगी?
तुझसे ये सवाल गर करूं, तू ख़ुद सोच में पड़ जाए, शायद...
काश, के मेरी दुआओं का कुछ तो असर हो ज़िंदगी में तेरी,
फ़िर उस ख़ुदा पर तुझको भी एतबार आ जाए, शायद...
हर याद जला दूं अपने जिस्म के साथ मैं इसी उम्मीद में,
तफ़्तीश में तेरे पास 'हमारे' कुछ पल जिंदा पाए जाएं, शायद...
तू कहे तो सारी उम्र गुज़ार दूं यूंही तेरी मोहब्बत के नग़्में सिलने में,
हंगामा हो गर तू एक मतला ही मेरे इश्क़ पर फरमा जाए, शायद...
मैं जो ज़ाहिर करना शुरू करूं मेरे दिल में छिपे हर जज़्बात को,
मेरी जां! फ़िर तेरा मुझे भुला देना उम्रभर के लिए नामुमकिन हो जाए, शायद...
©rimmi24
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rimmi24 57w
//बेपनाह बेकरारी का सबब है ये अधूरापन मेरे लिए,
नज़्म मुकम्मल करने की यही एक वजह थी, शायद...//
©rimmi24
•मतला - opening line of poem