जब आप भरोसा करते हो, बस वही गलती करते हो,
क्यू कि भरोसा और उम्मीद सिर्फ टूटने के लिए बनी है।
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जिन लोगो को आप दिल के करीब जगह देते है ,.
वही लोग अक्सर तकलीफ भी बेवजह देते है।
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गुड़िया....
कल की हसीन बारिश के बाद, ये सड़के मानो बाहें फैला कर खड़ी है।
इस मिट्टी को सोंधी खुशबू एक नई ताजगी बिखेर रही है।
और अचानक से नज़रे वहां रुकी जहां रोज रुकती थी,
जिन नजरो की चमक हर सुबह मुझे जीने का हौसला देती थी।
हर रोज हमारी सिग्नल पर 30 sec की मुलाकात हुआ करती थी,
पर वो पूरे दिन का हिसाब मांग लिया करती थी।
और आखिर में उसका ये कहना कि... कल फिर मिलेंगे दीदी.. मानो मेरी दिनचर्या का एक हिस्सा था।
पर आज उन नजरो में थोड़ी मायूसी और खामोशी थी।
जिसे देखकर मैं थोड़ा हैरान सी थी।
तो आज वो 30 sec का दायरा टूट गया था,
मेरे सवालों का पिटारा हाथों से मानो छूट गया था।
उसके नन्हें होठ अपना दर्द बयां कर रहे थे,
उसके मिट्टी के खिलौने मिट्टी में मिल रहे थे।
वो जिन खिलौने को खरीदकर नही बल्कि, बेचकर खुश हुआ करती थी,
उन्हें कल रात की तेज बारिश अपने साथ बहा ले गई थी।
जो बारिश सुहानी और ताजगी से भरी थी,
कभी सोचा न था कि किसी के लिए डरावनी भी हो सकती थी।
जो खिलौने हमारी बातो का जरिया हुआ करते थे...जैसे– तुम्हारे गुड्डे की गुड़िया कहा हैं? या फिर इसकी नाक थोड़ी टेढ़ी मेढ़ी सी हैं।
मानो इन बातो का सिलसला थम सा गया था,
मानो उसके हाथ से सब निकल सा गया था।
मैंने उस से पूछा.... और तुम्हारा स्कूल?..“पापा ने किताबो के पैसों से नए खिलौने बनाने का सामान खरीद लिया है, और मेरा स्कूल कुछ दिन के लिए बंद कर दिया है।
मैं शांत और चुपचाप खड़ी थी...बस उसे एक टक देख रही थी..
कि अचानक से उसकी बुझती आंखो में एक उम्मीद की चमक सी दिखी..उसके होठों में दबी हुई एक मुस्कान सी दिखी।
वो बोली...“ दीदी... तुम देखना इस बार और सुंदर खिलौने बनायेगे और जब पैसे आयेगे तो नई किताबें भी खरीदेगे”..
और तब आप मुझे सामने वाले पार्क में थोड़ी देर पढ़ाएगी न??
आज एक सवाल मन में कौंध गया कि जिन तकलीफों की हम बात करते है...और हर जाते है?? क्या सच में हार माननी चाहिए??
उसके इन उम्मीदों भरे सवाल जवाब ने मुझे उलझन में डाल दिया.. मैं निशब्द सी खड़ी बस इतना ही कह सकी....
“ जरूर गुड़िया"
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तुम हर रोज याद आते हो मुझे...
कभी सुबह की चाय के साथ, तो कभी सूरज की किरणों के साथ..
कभी कभी तो जैसे बुलाते हो..और कहते हो कि हाथ जोर से थामना...
हाथ कहीं छूट न जाए , रिश्ते की डोर कही टूट न जाए...
तुम रोज आज भी कहते हो मुझसे कि मुझसे अजीज कोई नही है तुम्हारा..
तुम थामते हो मेरा हाथ और कहते हो कि कोई नही है मुझसे प्यारा..
तुम सब बताते हो कि कैसे तुम्हें मेरी हर बात याद है..
कैसे हम आज भी ताउम्र के लिए साथ है..
तुम आज भी बहुत याद आते हो मुझे...
तुम हजारों वादे करते हो...मुझे न सताने के , रूठू मैं तो मानने के..
तुम सब करते हो... पर सिर्फ ख्वाबों में....
सब कुछ निभाते हो पर सिर्फ ख्वाबों में..
नींद टूटी तो जो मंजर था वो कुछ और था...
ये जो कहानी थी वो मेरे सपनो का दौर था ।
क्यू कि हकीकत में तो तुम आज भी हर लम्हा याद आते हो.....मुझे
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सुना था कि ...
जिन रिश्तों को निभा न सको उन्हें खूबसूरत मोड़ देकर छोड़ देना चाहिए।
पर हकीकत में ये आपने कर दिखाया है।
इन चंद लाइनों को अपने रिश्ते में अजमाया है।
कभी वक्त नहीं है... ये कहकर ,
तो कभी थोड़ा इंतजार कर लो...ये कहकर
हर दफा आपने वही खूबसूरत मोड़ बनाया है।
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आखिर क्यूं?? ये भी न पूछ सके आखिर में...
कुछ इस तरह अपनाकर , अलविदा कहा था उसने।
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हर शख्स सिर्फ अपने हिसाब से आपको चाहता है,
थोड़ा सा अपने दिल की, की तो ... अलविदा कह दिया ।
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अलमारी का कुछ अस्त व्यस्त सामान देख रही थी....
कि अचानक से नजर उस दराज पे गई , जो शायद कई बरस से बंद है.....
वो यादें जिन्हे भूलने की नाकाम कोशिश हर रोज करती हूं,
वो उम्मीदें जिनके टूटते ही हर रोज मैं भी टूटा करती हु।
वो पुरानी अच्छी यादें जो आज खौफनाक मंजर सी लगती है,
वो एल्बम....जिनमे कुछ तस्वीरे कैद हुआ करती है।
अब वो तस्वीरे सिर्फ अरमानों के कत्ल की निशानी है,
हर तस्वीर बहुत करीब से देखा , फिर से मेरी आंखों में पानी है।
चंद पन्ने पलटे ही थे, कि दिल भर आया हैं।
आपके धोखे ने अपना असर बखूबी दिखाया है।
उन तस्वीरों को उसी दराज में फिर से कैद कर दिया,
जिन कड़वी यादों को आज तक है मैने जिया।
उस अलमारी को बंद कर.. उस दर्द को भी दबा लिया।
सबके सामने आकर एक बार फिर मैने मुस्कुरा दिया।
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कुछ तुम समझ लेंना , कुछ हम समझ लेंगे ,
बस साथ उम्र बिताने के लिए इतना काफी है।
तुम साथ देना , हम हाथ थाम लेगे,
बस साथ चलने के लिए इतना काफी है।
तुम नजरे उठाना , हम नज़रे झुका लेगे,
इज़हार करने के लिए इतना काफ़ी है।
अगर टूटू कभी तो प्यार का स्पर्श देना
अगर छूटू कभी तो इंतजार कर लेना,
मुझे अपना बनाने के लिए बस इतना काफी है।
मेरी नादानी पर मुस्कुरा लेना,हम ख़ामोशी को समझ लेगे,
तुम चुपके से हाथ पकड़ लेना, हम वादा उम्र भर का कर लेगे
खुश रहने के लिए , बस इतना काफ़ी है।
हम चाय कभी बना देगे, तुम साथ शाम बिता लेना,
अगर नाराज हो जाऊ मैं, तुम फौरन गले लगा लेना।
रूठी मैं को मनाने के लिए, बस इतना काफी है।
ये मेरी उम्मीदों का पिटारा है, जो पन्नो पे आ बिखरा है,
अगर ना हो पाए ये भी तुमसे, तो नज़रे मुझसे चुरा लेना,
मोड़ लेना रास्ता अपना, मेरी गली तुम न आना।
अकेले चलने के लिए , बस इतना काफी है।
©noopur07 -
noopur07 10w
एक आंधी उड़ा ले गई सब कुछ मेरा,
बस तेरा अश्क और दिया दर्द आज भी बाकी है।
परिंदो ने भी नया घरौंदा खोज लिया, शाखो पे डेरा
पर न जाने क्यू आंखो में तेरा इंतजार आज भी बाकी है।
शिकवा खुद से करु या तुझसे ये कश्मकश है,
तू गया मुझे छोड़ के, मेरा छोड़ना आज भी अभी बाकी है।
©noopur07
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नारी ही दुर्गा
यह अतिशयोक्तिपूर्ण नहीं,
कि हर नारी ही दुर्गा है,
यह सत्य अटल अविनाशी है,
कि हर नारी ही दुर्गा है।
कलयुग की दुर्गा एक नही,
हर दिन दानव का वध करे,
लड़ती है नित रणभूमि मे,
बिन मुख से कोई शब्द कहे।
यह दुर्गा शक्तिशाली है,
मेहनत से भरती थाली है,
जीवन भर सहती कष्ट सदा,
यह संकट हरणे वाली है।
यहाँ क्रोध प्रेम का संगम है,
अब भी नारी मन संयम है,
गुणशील गुणी गुणवान प्रबल,
वो राह दिखाने वाली है।
यह कहना की यह अबला है,
नारी पुरूषो पर भारी है।
यह अतिशयोक्तिपूर्ण नहीं,
कि हर नारी ही दुर्गा है।
@लवनीत मिश्र। -
avaneeshrajput 38w
जनाजा इसलिये भी भारी था उस गरीब का,
क्यूँकी वो सारे अरमान साथ लेकर चला गया,
©avaneeshrajput -
harish8588 57w
अब कोई नाराज़ कहाँ होता है
बस अपने बातें बंद कर देते हैं
©harish8588 -
harish8588 47w
मुझे इतना बुरा बना दिया उसने,की
खुद की वकालत भी अब गुनाह है !
©harish8588 -
shriradhey_apt 43w
आज फिर उसकी यादों का कारवाँ बेधड़क नब्ज़ों की गली से रवाना हुआ।
जिस गली में कभी बसेरा हुआ करता था उसका, आज फिर उसी का ठिकाना हुआ।
कहा करता था जो रोज़ कि तुम्हारा हूँ मैं,
वही ख़ूबसूरत शख्स आज बेगाना हुआ।
वो याद जो चली आयी बड़े ही मौके से,
उसी याद से रिश्ता अब पुराना हुआ।
रंगीन सा वक़्त हुआ करता था उन दिनों,
आज समाँ भी सूफ़ियाना हुआ।
कह गया था जो कि लौट आएगा कभी,
आज उसे गए भी ज़माना हुआ।
©shriradhey_apt -
i_am_an_unprofessional_writer 45w
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@nirmal007sharmaइश्क़ क्या है
इश्क़ करने वालो से पूछिए
मौहब्बत क्या है
दिल लगाने वालो से पूछिए
किसी को देख कर
कुछ जानने कि ज़रूरत नहीं रहेगी आपको
ज़िन्दगी क्या है
ख़ामोशी से जीने वालो से पूछिए
दर्द क्या है
मुस्कुराने वालो से पूछिए
तकलीफ क्या है
गुनगुनाने वालो से पूछिए
जो शिकायत करके है हर वक़्त
उनसे गुज़ारिश है मेंरी
खुशियाँ क्या है
कलम से लफ्ज़ो को सजाने वालो से पूछिए
©i_am_an_unprofessional_writer -
कौन?
मेरी जिंदगी की रंगीनियां सबने देखी हैं!
मेरी जिंदगी की गर्दिशें समझ पाया है कौन?
लबों ने जो कहा वो सबने सुन लिया लेकिन!
मेरी खामोशियों से लफ्ज़ चुन पाया है कौन?
तुमने देखीं हैं मुस्कुराहटें खिलखिलाती हुई!
कशमकश दिल की मेरे परख पाया है कौन?
मेरी खुशियों में शरीक हर वो शख्स लेकिन!
मेरे गमों की करने ताकीद यहां आया है कौन?
मैं जब पौधा था,मैं तब भी बरगद था यारों!
मेरी जड़ों को आज तक हिला पाया है कौन?
आईना दिल की हकीकत दिखाता ही नहीं जनाब!
गनीमत है वरना खुद से नजर मिलाया है कौन?
©maakinidhi -
पूरी क़ायनात में
"एक क़ातिल बीमारी" की हवा हो गई ,,
वक़्त ने कैसा सितम ढा़या कि "दूरियाँ" ही ''दवा'' हो गई !!
©the_truth____ -
mohittilak 52w
मैंने नज़रों से नज़रों को पढ़
के देखा हैं
उस से खूब लड़कर झगड़
के देखा हैं
और प्यार हैं के पगली का
कम नहीं होता
मैंने उस से मिलकर बिछड़
के देखा हैं
©mohittilak -
kirit1 52w
जरूरी नही हर चाहत का मतलब इश्क़ हो,
कभी कभी कुछ अंजान रिश्तों के लिए भी
दिल बेचैन हो जाता है।
©kirit
