मिरे भीतर से तुम जान जाओ
ये तो मुमकिन नहीं
मैं गैरो में मयस्सर जो रहा तुम्हारे लिए
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kahe jaanna hain humare bare mein kouno our kaam dhandha nahi hain ka
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नाराजगी ,शिकायतें कितने छोटा लफ्ज़ हैं ना
मगर फिर किसी अपने के सामने जिक्र करते हैं तब दिल और आवाज इतने भारी क्यूँ हो जातें हैं गला रुंध क्यों जाता है।
सामने वाला भी इतना शर्मिंदा महसूस नहीं करता होगा जितना
हम बताते वक्त तिल तिल होते हैं
और दिल बैठ तो तब जाता है जब सामने वाले को तुम्हे ये तक जताना पङे कि तुम नाराज़ भी हो किसी बात से ।
फिर ये कैसे रिश्ते हैं महज नाम के जो अपने होने का दावा तो करते हैं मगर बस दिखावे में।
कहने और करने में जमी आसमां का फर्क होता हैं।
बातें मन बहलाने के लिए होती हैं, बातों से पेट नहीं भरता ।
किसी को हिस्सा बताने में और हिस्सा बनाने में फर्क होता है
बिल्कुल वैसे ही जैसे किसी को पल भर चाहना या पल पल ।
बात ना अहमियत की होती हैं अहमियत नहीं दोगे तो इज्जत घटेगी
अपनी इज्जत दांव पर रखकर दिलो के खेल तो चलते नहीं
हाँ बकायदा अहसास जरूर हो जाता है कि मोहब्बत हो या नफरत किसे करनी है और किसे नजरअंदाज।।।।।
कि अपनी खुदगर्ज़ी में ही रहूँ तो बेहतर हैं
खुदा के शिकायतों की अर्जी में रहूँ तो बेहतर हैं
सबसे दिल लगाना भी मेरी ही ज़िद थीं और
उनसे दूर जाना भी
कवायद कायदे की छोङो मैं अपनी मर्जी में रहूँ तो बेहतर हैं। ।।
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Friendship day
एक छोटा राही स्कूल को चला
शाम को बंदरों के झुंड में मिला
राही बोला बंदर देखो दोस्त हैं मेरे
बंदर मेरे दोस्त हमें फल तो दिला
कूदा बंदर पेङ पर दुम को हिला
आम लायें बंदर ने पर हमें ना मिला
मज़े ले लेकर आम खायें बंदर
राही उसका मुँह देखे और चिढाये बंदर
रोया छोटा राही, घर दिया चल
बंदर मेरे दोस्त नहीं
नहीं दिया फल
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गीत
गुनगुन करती आई कोको
कलम और स्याही लाई कोको
लेख भी आया, निबंध भी आया
गजल भी आई चुन चुन चुन
गुनगुन करती आई कोको
कलम और स्याही लाई कोको
खूब लगी तो कोको रानी
कविता लिखने आयेगी
खूब लगी तो कोको रानी
कविता लिखने आयेगी
लिख जायेगी, लिख जायेगी
ताली भी आयी, खाली भी आयी
गाली भी आयी सुन सुन
गुनगुन करती आई कोको
कलम और स्याही लाई कोको
चलते चलते हमको यूँ ही
मिल गयें देखो श्रोता भाई
श्रोता फिर पाठक बन बैठे
बोले अब कुछ गा लो भाई
गम जो गाओ , हमें बुलाओ
महफ़िल भी आई , शायर भी
आया, मदिरा नाची झुन झुन
गुनगुन करती आई कोको
कलम और स्याही लाई कोको
लेख भी आया, निबंध भी आया
गजल भी आई चुन चुन चुन
गुनगुन करती आई कोको
कलम और स्याही लाई कोको
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#rachanaprati48 @mamtapoet
Didi
Mera manna hain bacho ka mann ek bar ko vichlit ho sakta hain magar woh sahi maarg per tabhi jaa sakenge jab unke mann mein bhawna ho.
Sikhne kiबालपन सो बाल मन
शरारती सो गोपाल मन
ताकती हैं सारी दुनियां
बैठ कर इक कोने में मुनिया
अजी फोन का जमाना है
मुना इंटरनेट का दीवाना है
बाबूजी भी फैशन में आगे
मुना जी फिर सोशल मीडिया पर भागे
कबीर सिंह जो देख भये मुना बन गये
मुना भाई
ठाठ में चलते मुना भाई, अक्ल को लग गया
चूना भाई
पब्जी के खिलाङी निकले
क्रिकेट में अनाङी निकले
कुएं के मेंढक को ध्यान ना
लेकर ये गाङी निकले
शिक्षा भी दर दर पर हारी
मोबी भइया सब पर भारी
बच्चे बूढ़े रहते इसके मौज में
क्या लिखूं हर इक किस्सा कलम
पङ गई सोच में
पर निष्कर्ष भी उतना चाहिएं
कोको दुरूपयोग रुकना चाहिए
मनसा को काबू में कर लो
बालपन चित उर में धर लो
ऐसा ज्ञान मोबी भइया हमारे देते हैं
स्वावलंबी हो गर तो जीवन संवारे देते हैं
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Kuch bhi jhel lo
@myownpoetry @mamtapoet @rani_shri @jigna_a @rahat_samratएक ही शिकायत खुद से
तुझे फिर मैने याद क्यूँ किया
तुम तो पहले ही शातिर थे
नफरत इश्क फिर मैंने बाद क्यूँ किया
हौसले, मासूमियत काबू में रखते
तो अच्छा था
हसरत ए मंजर मैंने आबाद क्यूँ किया
अशर्फीया भी कोने में बैठ कही रोयी होगी
कीमत थी ना हमारी, फिर बर्बाद क्यूँ किया
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कि तुझको नजर हैं मेरी गजल
हाँ दरख्त नहीं शजर हैं मेरी गजल
शायरों का दिल कहाँ होता हैं
कोको ये घर हैं , मेरी गजल
झुकता भी हैं तो लफ़्ज़ों अहसासों
के आगे
कि ये सर हैं मेरी गजल
शर्म अदा न करो नजरो को
यूँ बैचेनी पर डर हैं मेरी गज़ल
गमजदा भी रहे तो मेरी दुआओं में
थे तुम
यानी फरमान ए दर हैं मेरी गजल
सुबह भी ना हो और चाँद भी ढल जाये
हैं मुमकिन
हाय फजर है मेरी गजल
कि तुझको नजर हैं मेरी गजल
हाँ दरख्त नहीं शजर हैं मेरी गजल
शायरों का दिल कहाँ होता हैं
कोको ये घर हैं , मेरी गजल
©lovetowrite990 -
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मखदूम तक भी मुकर गए हमारी खिदमत से
और
जमाना कहता है लोग खराब हैं
©lovetowrite990 -
lovetowrite990 42w
पूछती है दूरी दिल की
ये सख्त सी जो है , है दीवारें क्या
दिल तो दिल नजरें भी फिरी हुई
हैं ये दरारें क्या
अमूमन दिल तो दे चुके बेशकीमती
तुम ही बोलो वारे क्या
क़दर तो घट गई हमारी कोको ""
जमीर बचा है
कहो तो इसे भी मारे क्या
©lovetowrite990 -
lovetowrite990 43w
सुनो ना
चलो किसी दिन को इतवार करते हैं
हम तुमसे, तुम हम से कह दो प्यार करतें हैं
©lovetowrite990
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️
बात जो निकलेगी दिल से, ज़ख़म तो गहरा करेगी,
गुज़रेगी शायद अश्कों से, या पलकों पर ठहरा करेगी।
©abhi_mishra_ -
vasudevpareek1 38w
पथभ्रष्ट है ये जो लोग, पापियों के अनुयायी हैं,
दिल में द्वेष हो जिसके फिर वो काहे का भाई है,
जिस थाली में खाएं उसमे ही फिर छेद करे,
राष्ट्र का दुश्मन मरे अगर तो उसका भी जो खेद करे,
आंतकवादीयों तक को जो देते हर रोज़ बधाई है,
वो सब आंतकवादी है,सब आततायी है।
खुदा के नाम पर जो मानवता को बर्बाद कहे,
बेकसूरों की मौत को जो अपना उन्माद कहे,
दंगे फसाद करने को जो लोग जिहाद कहे,
वो देश के दुश्मन है,वो क्रूर कसाई है,
वो सब आंतकवादी है,सब आततायी हैं। -
️
बताता, जो तुमको गर यकीं होता,
तुम होते, तो शायद मैं यहीं होता।
©abhi_mishra_ -
mamtapoet 41w
It's not relatable to me. It's just a condition of mind,i just tried to write it. I m totally fine and happy. ❤❤
खामोशी का शोर कोई कभी सुनता नहीं
रोना भी आता नहीं, लब मुस्कुराते नहीं,
मन के खालीपन का ये दौर है
कल तेरी ओर था, आज मेरी ओर है।आज कुछ लिखने का मन भी नहीं कर रहा है , न कोई खुशी वाला भाव मन में है न किसी बात को सोचकर कोई उदासी ही छाई है ,बस शून्य सा पसरा हुआ है भीतर।
मन का संदूक जैसे खाली हो गया है और वो खालीपन ही शून्य रूप में मन मस्तिष्क में छा गया। यह खालीपन जब आता है न तो खोखला कर देता है और इसमें धड़कनों की आहट भी गूंजने लगती हैं। और यह गूंज इतनी कर्कश और तेज होती हैं कि कान पर हाथ धर लेते है, पर उससे क्या, वो चीख तो भीतर से ही आ रही हैं। बाहर के शोर को तो बन्द भी कर दू पर ये खाली पन, ये पसरी शून्यता ये अपना अस्तित्व सर्प के फन के समान कुंडली मारे बैठी हैं। कोई भाव नहीं, अहसास से भी मुक्त , न होठों पर मुस्कान, न आँखों में अश्क, कैसा है ये अंजाना तूफां।
बर्फ सा जम जाता हैं मन।शिकायतों के लिए शब्द निकलते हैं न किसी की तारीफ में।न दोस्त अपनी बातों से इस लम्हे से बाहर कर पाता है न प्रिय गाना इस खामोशी से हमें उबार पाता है।
पर ये दौर है न, ये भी गुजर ही जाता हैं पर जब तक रहता है न बेबस कर देता है। इस खालीपन को क्या तुमने भी कभी महसूस किया है? यदि किया है न तो हँसोगे नहीं बस
भावहीन हो जाओगे ओर चुप्पी छा जायेगी तुम्हारे भीतर।
©mamtapoet -
बालपन
ये कैसा बालपन मेरा है
न स्कूल, न ट्यूशन जाना है
बस घर में ही क़ैद होकर रहना है
न दूसरे बच्चों के साथ खेल पाना है
बस सबको दूर से देखकर मुस्कुराना है
अब घर पर भी कितना मोबाइल चलाना है
मन में छुपे उन सवालों को किससे बोलना है
दुविधा मेरी सुनकर किससे अब हल कराना है
उस छोटे मेरे बालपन हृदय को कैसे समझाना है
बोलो अब मेरे इस बालपन को कैसे आगे बढ़ाना है -
ख़्वाहिशें कई हज़ार न करते तो अच्छा था,
ख़ुद को ही यूँ बेजार न करते तो अच्छा था।
एक बस तुम्हारी ख़ातिर ज़माने से ना लड़ते,
के ख़ुद से भी तकरार न करते तो अच्छा था।
जब जब तुमने चाहा तब तब हम हाज़िर रहे,
काश ख़ुद को नमूदार न करते तो अच्छा था।
ना इश्क़ में ख़ुद का ना ख़ुद में हम इश्क़ का,
हम जो कभी व्यापार न करते तो अच्छा था।
काश ख़ुद पर थोड़ा वक्त देते तो संवर जाते,
तुमपर ये वक्त बेकार न करते तो अच्छा था।
बैठे रहे कि शायद तुम कोई इरादा बदल लो,
ये गुंजाइश-ए-सुधार न करते तो अच्छा था।
जिसे तन्हाई में बहा हर अश्क भी झूठ लगा,
वहाँ अश्क के अंबार न करते तो अच्छा था।
नज़्म नज़रअंदाज़ कर दिये तुमने मेरे लिखे,
नाम तेरे वो अशआर न करते तो अच्छा था।
वाकई जैसे सिलसिले चलते आ रहे प्यार में,
लगता है 'रानी', प्यार न करते तो अच्छा था।
©rani_shri -
गलतियां
बचपन की गलतियों पर
कभी माँ पापा ने रोका,
कभी मित्रों ने ,तो कभी
गलत करने पर अध्यापक ने भी टोका
सीख मिली उम्र भर की,
और हाँ, वापस न दोहराई वो गलतियां।
पर हाँ इंसान हाड़ मांस का पुतला है
मानव वही जो गलतियों से सुधरा है।
मैंने भी की एक नहीं, कई गलतियां
गिर पड़ा जमीं पे, जब चाहा
मुट्ठी में कैद करना तितलिया।
लंबी जो लगी कभी सड़क
हाँ चुनी मैंने भी कंटीली पगदंडीयां
जख्मी होकर समझ आई अपनी गलतियां।
ठोकरें भी जरूरी है आगे बढ़ने के लिए
हमेशा गलत भी नहीं होती" गलतियां"। -
rani_shri 43w
मुहब्बत के सिलों में दर्द भर बचता है,
मकाँ ढह जाते हैं और खंडहर बचता है।
~G.J.
मोहब्बत तो रास्ते नये ढूंढ़ लेती है मगर
इंसान वो पुराना महज़ बदतर बचता है।
~R.S -
दिन हंसी और ये शब चश्म-ए-आबों में बीत जाते हैं,
वो मेरी ज़िंदगी में नहीं हैं फ़िर भी ख़्वाबों में आते हैं।
©rani_shri -
भिखारी
ऑफिस से आते ही रजत ने कहा--"आज ऑफिस में समय नहीं मिला लंच करने का,तो यह टिफीन की रोटी गाय को दे देना"। मैं वो खाना लेकर घर के बाहर थोड़ी दूर रखने गई, मैं वापस आकर गेट बन्द करने लगी तो देखा एक भिखारी उस खाने को उठाकर पास में ही एक घर के बाहर बैठ कर उसे खाने लगा। मैं अंदर आई और मम्मी को ये बताया, मैंने कहा वो पहले ही आ जाता तो उसे हाथ में ही दे देती, क्योंकि ऑफिस में वातानुकूलितAC की वजह से खाना खराब नहीं हुआ।
मम्मी ने उस आदमी को देखा फिर अंदर आकर कहा, वो भिखारी नहीं है। थोड़ी दूर ही उसका बहुत बड़ा सा घर है मैं गाय का दूध लेने जाती थी पहले, वहाँ इसको देखा था। विदेश में नौकरी करके कुछ महीनों पहले ही यहाँ आया। खूब रुपये लाया। बड़े भाई और माँ ने सारे रुपये लेकर इसे घर से निकाल दिया, इसकी तो शादी भी नहीं हुई। बस इसको अपनो के धोखे का ऐसा सदमा लगा कि यह सड़क पर ही दिन भर घूमता रहता है और रात को पटरी के पास सो जाता हैं।
इतना होने के बावजूद किसी लड़की या औरत को नज़र उठाकर भी नहीं देखता।
फटे पुराने मैले से कपड़े, लंबे बाल, काला सा चेहरा पर अपनों से ठुकराया हुआ, इस हालत में भी नारी जाति का आदर। नम आँखे और दिमाग में कई सवाल के साथ में अंदर आ गयी।
©mamtapoet
