मॉर्डन इंजीनियरिंग में इतना दम कैसे?
दिल्ली की सड़कों पर ये पानी कम कैसे?
मेरे छोटे से घर को रिसॉर्ट बना डाला
चिंटू चाचा पुरुषार्थ का ये परचम कैसे?
जल मग्न किताबें दीवारें पानी पी गयीं
पर मेरी माँ के लोचन अब भी नम कैसे ?
©काका पहाड़ी
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kakapahadi 102w
एक कविता उन माताओं और बहनों के लिये जो भाव वश या अज्ञान वश अनीति के हाथों एक अंतहीन गर्त में समाहित हो गईं l
कविता
वन उपवन की शोभा थी जो
घर आँगन सुरभित करती वो
नव - पल्लव जो चूमे जाते
घर के बाहर घूरे जाते
वह किसलय अब इक डाली है
लगती वह फुसलाई सी है
जो लतिका झुलसाई सी है
आज जलाने आये हैं जो
कल प्रेम प्रसंगों में थे वो
जिस सुवास से मन भर जाता
फिर वो पुष्प नहीं घर जाता
अब उन अधरों की स्मित टूटी
वो पुनः पुनः सकुचाई सी है
जो लतिका झुलसाई सी है
पूजा की थाली में शामिल
वो वृक्ष राज की प्राण अनिल
अब दूर - दूर वो रहती है
बोझिल साँसों को ढ़ोती है
अंततः ऐसा क्यूँ कहती है?
वो तम की परछाई सी है
जो लतिका झुलसाई सी है
©काका पहाड़ी -
मुक्तक
पहचान बनी पहचान यही,उस साहस का इक मान यही
निज भारतमाँ हित मृत्यु मिले,बस जीवन का अभिमान यही
जब वीर सभी यह बोल उठे,जब भारत माँ हित शीश कटे
तब रक्त नदी यह बोल बही,जय भारत माँ जयगान यही
©काका पहाड़ी -
नवगीत
कल ही मानो मैं आया था
आज यहाँ से मैं जाता हूँ
इन फूलों से कह दो कोई
इनकी सूरत मन में सोई
पूछ रहा हूँ ख़ुद को यूँ मैं
दिल की धड़कन क्यूँ है खोई
छोड़ रहा हूँ इस उपवन को
संग सदी का जो पाया था
कल ही मानो मैं आया था
छोटे छोटे हिम खंडों से
अध्यापक के उन डंडों से
एक नदी अनुशासित होकर
सागर सी आभासित होकर
अनंत अम्बर से मिलने को
एक बड़ा सा घन छाया था
कल ही मानो मैं आया था
सागर की कुछ बूंदें उड़कर
बादल की गोदी में सोकर
जागेंगी फिर बरखा बनकर
नन्हें हाथों से जब छनकर
झर झर झरती हैं धरती पर
तब वसुधा ने यह गाया था
कल ही मानो मैं आया था
आज यहाँ से मैं जाता हूँ
©काका पहाड़ी -
kakapahadi 108w
एक और निकली ख़ज़ाने से ये ग़ज़ल पूरी नहीं हो पायी थी, कभी हम office में बैठकर भी लिखा करते थे
ग़ज़ल
दुख के सीने से उठकर फिर , सुख के मोती लाया मैं
हॉस्टल से वापस घर अपने, गुड़िया रोती लाया मैं
मेरे इस मिट्टी की ख़ुश्बू, खोती जाती है हर दिन
अंधेरों को रौशन करने, फिर माँ की रोटी लाया मैं
खलियानों से जाते- जाते,ट्यूशन के इक जंगल तक
जैसे - तैसे खलियानों तक, वापस पोती लाया मै
©काका पहाड़ी -
kakapahadi 108w
"रोला छंद" में एक कविता, बहुत पहले की लिखी है आज notepad टटोल रहा था तो ये दिख गईं
जागो
जागो जागो आज, भारती माँ के वीरों
शत्रु नहीं है दूर, उठो अब मारो मारो
रणचंडी को देख, बना शमशान धरा को
है अधरों में प्यास, रक्त की नदी बहा दो
अब शोणित की चाह, करती है माँ भारती
इस युद्ध में भुज -बल -दल न मांगू न सारथी
जाग्रत होकर खोल, चेतना के तारों को
गिद्धों के इस रक्त, में डुबा अख़बारों को
प्रेम गीत को भूल, स्वाभिमानी छंद पढ़ो
तक्षशिला के खंडहर, से वो युग पुनः गढ़ो
बनकर रक्त पिपासु, रहो प्रतीक्षा में सभी
इस कलियुग में धर्म युद्ध नहीं होगा कभी
ज्ञान ध्यान की खड्ग, पर संयम की धार दो
चाहे अपनी खोज, में प्राणों को वार दो
जागो जागो आज, भारती माँ के वीरों
शत्रु नहीं है दूर, उठो अब मारो मारो
©काका पहाड़ी -
kakapahadi 108w
दोहे
ब्रह्म नित्य आधार है, चेतन का संसार
चेतन की स्मृति है तहाँ,अवचेतन व्यवहार
बहती विशुद्ध चेतना, रहती कालातीत
अवचेतन संस्कार में, जीवन करे व्यतीत
कर्मयोग पुरुषार्थ से, रखना तठस्त भाव
चित्त और संस्कार में, ठहरेगा बिखराव
मूल तत्त्व है चेतना , रहती नित्य नवीन
क्षय होकर संस्कार सब, चेतना में विलीन
©काका पहाड़ी -
रुबाई
नाज़बरदार -ए - दिलबरां मैं कभी था ही नहीं
सो दिल -ए -कू से आजतक कोई गुज़रा ही नहीं
सादा दिल इंसां ढूंढ़ता ही रहा मैं उम्र भर जो तराशे भगवां थे इंसां कहीं था ही नहीं
©काका पहाड़ी -
kakapahadi 110w
नवगीत
आज हिमालय देख रहा है
गंगा जमुना तट पर बैठा
एक पथिक है घर को लौटा
पतझड़ के सब पत्ते छोड़े
मधुमासों के हिस्से जोड़े
आज प्रकृति दुल्हन सी लगती?
यूँ मस्तक पर मुकुट सजा है
आज हिमालय देख रहा है
एक अवधूत सबके भीतर
संग उसी के चंचल तीतर
शांत तनिक तू कर दे उसको
मिल जायेगा तेरा तुझको
खोज रहा हूँ जाने किसको
सबने उसको प्राण कहा है
आज हिमालय देख रहा है
एक हवा का झोंका कहता
अन्दर बाहर मैं ही रहता
कौन जगह जो मेरे बिन है?
तुझको अब भी किसकी धुन है?
जन्मों से जो खोज रहा हूँ
क्या है जो हिम पार रखा है
आज हिमालय देख रहा है
©काका पहाड़ी -
kakapahadi 111w
आज चाय पीते पीते
आज चाय पीते - पीते मैंने देखा प्याले की ओर तो भाप उठ रही थी I
भाप - "चलो अब मैं चलता हूँ "
चाय - "तुम कितने भाग्यशाली हो जा रहे हो "
भाप - "इसमें भाग्यशाली वाली क्या बात है एक दिन तुमको भी भाप बनना है "
चाय - "हाँ मगर तुमको देख कर मुझे ईर्ष्या होती है तुम स्वच्छ आकाश में पहुँच कर बादलों पर विराजमान हो जाओगे और मैं किसी इंसान के शरीर से होते हुए पेशाब बन जाऊँगा "
भाप - "अच्छा अगर ऐसी ही बात है तो आओ मेरे साथ मगर उसके लिये तुम्हें अपना ये अस्तित्व मिटाना होगा "
चाय - "नहीं ये तो मेरी पहचान है मैं अपनी पहचान कैसे मिटा सकता हूँ "
भाप (मुस्कुराते हुए ) - "देखो समय रहते अपनी सूक्ष्म पहचान को प्राप्त कर लेना ही ठीक है
वरना समय कब निकलेगा मालूम ही नहीं होगा
ऐसा सोचो आज अंतिम आज है इसके बाद ना तो कोई आज होगा ओर नहीं कोई कल "
भाप - "चलो मैं चलता हूँ" "हम फिर मिलेंगे "
मैं अभी तक उस चाय के प्याले को एक टक देख रहा था जैसे मैं कहीं खो गया किसी शून्य में जहाँ मुझे समय का आभास ही नहीं हुआ l
अब तक चाय ठंडी हो गयी थी सो भाप भी नहीं थी
©काका पहाड़ी
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anita_sudhir 83w
स्कंद माता
-उल्लाला छन्द
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पंचम तिथि माँ स्कंद का,पूजन नियम विधान है।
भक्तों का उद्धार कर ,करती कष्ट निदान है।।
तारकसुर ब्रह्मा जपे, माँग लिए वरदान में।
अजर अमर जीवित रहूँ,मृत्यु न रहे विधान में।।
संभव ये होता नहीं,जन्म मरण तय जानिए।
शिव सुत हाथों मोक्ष हो,मिले मूढ़ को दान ये।।
मूर्ति वात्सल्य की सजे,कार्तिकेय प्रभु गोद में।
संतति के कल्याण में,जीवन फिर आमोद में।।
सिंह सवारी मातु की,चतुर्भुजी की भव्यता।
शुभ्र वर्ण पद्मासना,परम शांति की दिव्यता।।
जीवन के संग्राम में,सेनापति खुद आप हैं।
मातु सिखाती सीख ये, बुरे कर्म से पाप हैं।।
ध्यान वृत्ति एकाग्र कर,शुद्ध चेतना रूप से।
पाएं पुष्कल पुण्य को,पार लगे भवकूप से।।
अनिता सुधीर आख्या
©anita_sudhir -
चाहे गरीब हो चाहे अमीर, हर कोई पिसता हैं
भूख में तो रोटी में ही ख़ुदा दिखता हैं
©vasudhagoyal -
anita_sudhir 87w
अधिक मास
मनहरण घनाक्षरी
चंद्र मास की चाल में,तीन वर्ष के काल में,
मलिन दिन मध्य में ,मलमास जानिए ।।
वर्जित त्योहार हुए,मंद खरीदार हुए,
नियम ऐसे क्यों हुए ,शुभ पहचानिए।।
पूजा पाठ धर्म करें,दान श्रेष्ठ कर्म करें,
मास पुरुषोत्तम है,विष्णु को मनाइए ।।
चिंतन मनन करें,वेद का श्रवण करें,
पंचमहाभूत तन ,तप में लगाइए।।
©anita_sudhir -
anita_sudhir 87w
गीत
मैं धरा मेरे गगन तुम
अब क्षितिज हो उर निलय में
प्रेम आलिंगन मनोरम
लालिमा भी लाज करती
पूर्णता भी हो अधूरी
फिर मिलन आतुर सँवरती
प्रीत की रचती हथेली
गूँज शहनाई हृदय में।।
मैं धरा..
धार बन चलती चली मैं
गागरें तुमने भरी है
वेग नदिया का सँभाले
धीर सागर ने धरी है
नीर को संगम तरसता
प्यास रहती बूँद पय में।।
मैं धरा..
नभ धरा फिर मान रखते
तब क्षितिज की जीत होती
रंग भरती चाँदनी जो
बादलों से प्रीत होती
भास क्यों आभास का हो
काल मृदु नित पर्युदय में।।
©anita_sudhir -
anita_sudhir 87w
जीवन संघर्ष
कविता
नित कर्मक्षेत्र में युद्ध लड़े,बेचारे फिर त्रास सहे
हुए निहत्थे खड़े समर में,मानव पुत्र पुकार रहे।।
चक्र व्यूह चिंताओं का है,शंकित योद्धा डरे हुए
मनोविकृतियाँ द्वारे बैठीं,कलश लोभ का भरे हुए
अनगिन घट की प्यास बुझाने,नित्य खोदते एक कुआँ
हाथ कमाने वाले दो हैं,जीवन पल पल हुआ धुँआ
बना रेत पर एक घरौंदा,नित्य सुनामी झेले है
सुख कबसे अरगनी टँगे हैं,खेल दुखों से खेले है
चाल नियति जो पासे फेंके,सदा हार पर टिकी रहे ।।
इन्हें भेदना कर लो संभव,बिना काल क्यों मौत गहे।।
अनिता सुधीर आख्या
©anita_sudhir -
इस online जमाने की
Online सब Setting
पास बैठे से बतियाते नहीं
करते रहते बस Chatting
व्हाट्सएप ,मैसेंजर ,VC पर
एक दूजे संग Dating
एक के ही Account कई है
सब की अलग है Rating
FB ,Insta के live session में
हुनर मचा रहे धूम
Likes ,Followersजिसके ज्यादा
उसको मिलता Boom
आज कल का Trend यही है
लगता बड़ा ही Rocking
हुए जरा परेशान तो
तुरंत अपना लो Blocking
अपनी अपनी profile में
हर कोई है Updated
Virtual world में Real Emotions
हो रहे हैं Frustrated
शुरू से लेकर अंत तक
सब कुछ यहां Instant
इस Online भूलभूलैया से
रहना जरा Distant
आhaना ✍️ -
_aahana_ 87w
.
-
rituchaudhry 89w
चाहतों का हर उसूल निभा कर देखेंगे
दोबारा तुम्हें अपना बना कर देखेंगे
©rituchaudhry -
odysseus 88w
The familiar smell
quickly filled her nostrils and
refreshed her senses.
She wondered how
she had managed to spend a
whole day without it.
She had received her
first smartphone from her dad on
her sixteenth birthday.
Slowly but surely
the teenager has become
a celloholic.
The addiction has
almost estranged her from her
family members.
It's the network... or
the lack of it... that worries
her more than her health.
Her appetite has
suffered too but it doesn't
seem to bother her.
A small defect in
her phone forced her to spend a
whole day without it.
She began to show
withdrawal symptoms, squirming,
wriggling and screaming.
Finally her phone
has been repaired and she is
her "normal" self now.
©charudattakelkar
Image credit : Rest Zone(YourQuote)
#mirakee #writersnetwork
#celloholic #haiku #senryu
@mirakee @writersnetwork #life #diaryA small defect in
her phone forced her to spend a
whole day without it.
She began to show
withdrawal symptoms, squirming,
wriggling and screaming.
©odysseus -
bal_ram_pandey 89w
आज फिर से उठे हाथ, फिर से दुआ मांगी
जलती रहे शम्मा , थोड़ी सी हवा मांगी
यादों के फूल रखकर, सोए सिरहाने हम
सुब्ह हुई तो ,कांटों से ज़ख्मों की दवा मांगी
कुछ जागे कुछ सोए से, ख्वाब आंखों में
नींद ने आंखों से , थोड़ी सी वफा मांगी
हटा दो चिलमन, दीदार ए रुखसार करने दो
गुस्ताख नजरों ने,दिल से कुछ हया मांगी
जन्नत नसीब ना हुई ,ईमान पर चलकर
आज फिर हमने , रिंदों से सलाह मांगी
©bal_ram_pandey
