हर खामोशी कुछ कहती हैं
हर शांति कुछ बताती हैं
देख सके तो देख।
हर पल में एक दुनिया हैं,
एक दुनिया में कई दुनियाएं हैं
देख सके तो देख।
हर बूंद से जिदंगी है,
हर बूंद में समंदर हैं
देख सके तो देख।
हर हैवान आदमी हैं,
हर आदमी में एक इंसान हैं
देख सके तो देख।
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रोशनी के घरों में अंधेरा हैं,
चलो अंधेरी गलियों में आग ढूंढते हैं।
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हादसों की नगरी में एक हादसा ऐसा हुआ,
जीवन सस्ता और ऑक्सीजन महंगा हुआ।
ऐ हवा जरा धीरे धीरे चल
कांपता होगा कोई इंसान सोया हुआ।
हादसों की नगरी में एक हादसा ऐसा हुआ,
लाशें मिल रही हैं हर मोड़ पर, हत्यारा कौन हुआ।
सपना था आसमां में उड़ने का
नसीब ना हुई जमीं, आसमां किसका हुआ।
हादसों की नगरी में एक हादसा ऐसा हुआ,
चुना जिसको तूने अपना समझ, वो नेता किसका हुआ।
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लोहा सबसे भारी नहीं होता
और न ही पहाड़ का पासाण
सबसे भारी वो घूघंट होता है
जिसके नीचे न जाने कितनी कलाएं, योग्यताएं
जिंदा लाशें बनकर दब जाती हैं।
आसमां सबसे ऊंचा नहीं होता
और न ही तारे, चांद, सूरज
सबसे उंची वो मानसिक दीवारें होती है
जिसमें नारियों को आजीवन कैदी बनाया जाता हैं।
जिस्मानी ताकतवर होना खतरनाक नहीं होता
और न ही जिस्म से प्रेम करना
सबसे ख़तरनाक वो आंख होती है
जिसमें नारी महज जिस्म नजर आती हैं।
तलवार का घाव सबसे दर्दनाक नहीं होता
और न ही बंदूक की गोली
सबसे दर्दनाक किसी अपनों का
नारी के चरित्र पर उंगली उठाना होता हैं।
अंधेरी रात सबसे डरावनी नहीं होती
और न ही सबसे गहरी खाई
सबसे डरावनी वो चुप्पी होती है,
जिसमें लोग सच जानने के बाद भी शान्त रहते हैं।
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जुगनू रातों को चाहने लगे है
रात की खामोशियों ने
विरां आसमां को बताया हैं।
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क्रांति जहां भी हुई होगी,
पहले खुद से हुई होगी।
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साल हर साल बदलता रहा
बहाना हर बार बदलता रहा,
कुछ ऐसे बीता मेरा पिछला साल
मैं एक सा रहा मेरा संकल्प बदलता रहा।
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ये सरकारें नादान हैं,
करती हमारा अपमान हैं
फिर भी हम इनकी शान हैं
हम भारत के किसान हैं।
यह जो प्रधान हैं
मचा रहा घमासान हैं
यह भूल रहा कि ये जो
खा रहा वो हमारा धान हैं
हम भारत के किसान हैं।
ये जो तुम्हारे विधान हैं
ये हमारा नुकसान हैं
इसीलिये सडक़ो पर हिंदुस्तान हैं
हम भारत के किसान हैं।
तुम पानी डालोगे, हम फसल उगा देंगें
तुम खाई खोदोगे, हम उसको भर देंगें
यही तो हमारी पहचान हैं
हम भारत के किसान हैं।
तुम जितना मारोगे,
हम आगे आयेंगे क्योंकि
हम डोलती अर्थव्यवस्था का समाधान हैं
हम भारत के किसान हैं।
काम करना हमारा काम हैं
कृषि हमारा स्वाभिमान हैं
मेहनत हमारी पहचान हैं
हम भारत के किसान हैं।
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कितने नादान होते हैं
वो जो हर वक्त मुस्कुराते हैं
मौत से जूझते हैं
लेकिन मौत टालते हैं।
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मरता हैं कोई दलित तो मरने दो
वो सुशांत थोड़ी हैं।
टूटती हैं हड्डियां तो टूटने दो
कंगना का मकान थोड़ी हैं।
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कविता
गाँवों से बाहर बस्ती थी
कब अपनी कोई हस्ती थी ।
ना खुशियाँ थी, ना सपनें थे ,
दुश्मन भी सारे अपने थे ।
हम जीते जी भी मरे हुए,
बस मुर्दों से सम्बन्धित थे।
ना रोने के अधिकार हमें,
सुख सारे ही प्रतिबंधित थे ।
दुख भरी कहानी कहता हूँ ।
मैं पीर पुरानी कहता हूँ।
अब सुनो सुनो, सब सुनो सुनो।।
ये छुआछूत, ये जात-पात,
हमनें पाए हैं, जन्मजात।
जो मालिक आक़ा बन बैठे,
वो सवर्ण सोच से मंडित थे।
और हमारी परछाई से,
हर काज़ तुम्हारे खंडित थे।
हम याचक थे, तुम दाता थे,
हम महामूर्ख, तुम ज्ञाता थे।
तुम तो मानस के राजहंस ,
हम पशुओं से भी कमतर थे।
तुम मनुज श्रेष्ठ, हम नीच मलिन,
तुम कामरूप, हम हेयहीन।
तुम अवतारी, हम धरा बोझ,
तुम राजभोग, हम मृत्युभोज।
तुम चंदा पूरनमासी के
हम ग्रहण झेलते सदियों से।
ऐसी सोच बनाकर तुमने
बरसों तक अत्याचार किया ।
हरखू के प्राण हरे तुमने,
फुलिया से भी व्यभिचार किया ।
दुख भरी कहानी कहता हूँ ।
मैं पीर पुरानी कहता हूँ।
अब सुनो सुनो, सब सुनो सुनो।।
दुनिया पहुंची है चांद तलक,
तुम धरती नहीं बचा पाए।
इन आंखों से जात पात के,
तुम चश्में नहीं हटा पाए।
तुम सिर्फ़ गुलामी के पोषक,
संवेदनहीन बनें शासक ।
झूठे मक्कार वियोगी हो ,
तुम शोषण में सहयोगी हो ।
किसी दलित का कोई बेटा,
कुछ पढ़ लिखकर बन आया है।
क्यों सूट बूट में देख उसे ,
गुस्से से दिल भर आया है।
दुख भरी कहानी कहता हूँ ।
मैं पीर पुरानी कहता हूँ।
अब सुनो सुनो, सब सुनो सुनो।।
पीड़ा से उपजी कविता के ,
हम सबसे पहले वाचक हैं।
पत्थर में जो इंसान गढे ,
हम एकलव्य से साधक हैं।
हम अनपढ़ हैं, अज्ञानी हैं,
हम तो कबीर की वाणी हैं।
ठान लिया फिर लक्ष्य न भूले,
हम ज्योतिपुंज ज्योतिबा फुले ।
जिनको पग पग पर मिले घाव,
हम ज्ञान पिपासू भीमराव।
दुख भरी कहानी कहता हूँ ।
मैं पीर पुरानी कहता हूँ।
अब सुनो सुनो, सब सुनो सुनो।।
© Ankit chahal
