शायरी
चांद जमीं पर है और समंदर आसमान में,
ऐ रूह ऐ जानां अगर कह दे तू,
तो मैं ये भी मान लूं।।
© मुसाफिर
harshvardhan__
सुखार्थिनः कुतो विद्या,विद्यार्थिनः कुतः सुखम। सुखार्थी वा त्यजोत्विद्यां विद्यार्थी वा त्यजेत् सुखम्।। (अमृतम संस्कृतम।।)
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harshvardhan__ 7w
चिनू,भाई तू मुझसे बहुत खफा है।भाई मुझे माफ कर दे। मुझे नहीं पता था कि तू मेरे इस छोटे से मज़ाक का इतना बड़ा सिला देगा।भाई तुम तीनों के सिवा मैं एक दम अकेला हूं।भाई मरने तक दोस्ती निभाने का जो वादा तूने किया था वह तू कैसे भुला सकता है। एक दोस्त मुझे पहले ही छोड़कर जा चुकी है अब तू ऐसा मत कर।हाथ जोड़कर बिनती करता हूं वापस आ जा। मुझे यूं छोड़कर मत जा।देख भाई मैं बहुत गरीब आदमी हूं। मैं तुझे मनाने के लिए इन शब्दों और इस कविता के अलावा और कुछ नहीं दे सकता। क्यों कि मेरे पास जो सबसे बड़ी संपत्ति है वह मेरी कलम है।।
मेरे उस दोस्त के नाम जो मुझसे बहुत खफा बैठा है।।@its_chinmay ,@ady_words07दोस्ती
लाज़िमी है दुश्मन मिरे
क्यों ना करेंगे साजिशें
रंज तो तब है सरल
जब दोस्त इसे अंजाम दे।
आज फिर दामन मिरी
दोस्ती का दागदार हुआ
आज फिर एक दोस्त मिरा
रुसवा सारे बाजार हुआ।
कब तक इस मक्कारी का
बनता रहूंगा मैं साक्षी
चाहता हूं मैं कि ये
सूरत बदलनी चाहिए।
क्यूं है चंद लोग
अपने झूठ की चादर लपेटे
क्यों नहीं कुछ लोग मिरे
चाहते हैं सच को समझना।
एक एक कर मिरा कारवां
सिकुड़ता जा रहा है
झूठे अहम की खातिर अपने
एक एक दोस्त बिखरता जा रहा है।।
© मुसाफिर -
harshvardhan__ 8w
बच्चन साहब, पन्तजी (सुमित्रानंदन पंत) की हाज़िर जवाबी का ज़िक्र करते हुए लिखते हैं :
एक बार मैं किसी बात पर झुँझलाया हुआ था। किसी बात के सिलसिले में कह गया, 'कवियों की पूछ कहीं नहीं है।' पन्तजी बोले, 'बाबा, जब आदमी के पूँछ नहीं रह जाती तभी वह कवि बनता है।'
मेरे घर में एक नौकर था। उसने चोरी की। मेरी पत्नी ने उसके वादा करने पर कि फिर वह ऐसा काम न करेगा, उसे घर में रहने दिया। वे बाहर चली गयीं और नौकर ने फिर चोरी की। मैं बहुत झल्लाया, 'देखिए, तेजी को कि चोरों पर विश्वास करती हैं।'
पन्तजी बोले, 'इस पर तो तुम्हें अपने भाग्य को सराहना चाहिए।'
मैंने कहा, 'क्यों ?'
बोले, 'अरे,चोरों पर विश्वास करने की आदत न होती तो वे तुम्हारे साथ पंजाब छोड़कर कैसे आतीं !'
एक दिन की ओर बात है, मैं अपनी एक कविता सुना रहा था। पंक्तियाँ आयीं -
'मैं तो केवल इतना ही सिखला सकता हूँ,
अपने मन को किस भाँति लुटाया जाता है।'
पन्तजी बोले, 'इसमें तुमने थोड़ा सा झूठ बोला है।'
मैंने कहा, 'कैसे ?'
कहने लगे, 'सच कहते तो तुम्हें इन पंक्तियों को ऐसे लिखना था :
मैं तो केवल इतना ही सिखला सकता हूँ,
औरों के मन को कैसे लूटा जाता है।'
कार्तिकी पूर्णिमा की बात है। गुलाबी-सा जाड़ा पड़ रहा था लेकिन पन्तजी महाराज चमड़े की जैकेट पहने हुए थे। मैं अपने ठण्डे कपड़ों में था। मैंने कहा, 'पन्तजी, अचरज है कि पहाड़ी होने पर भी आपको इतनी सर्दी लगती है, मुझे देखिए पहाड़ी तो मैं हूँ।'
पन्तजी बोले, 'तुम पहाड़ी नहीं हो, तुम पहाड़ हो; पहाड़ी मैं ही हूँ।'
~ हरिवंशराय बच्चन
बच्चन साहब और पन्तजी बहुत घनिष्ठ मित्र थे।
० लेख स्रोत : बच्चन ग्रंथावली भाग 6
० चित्र स्रोत : अमर उजाला समूह, चित्र में बायीं ओर बच्चन साहब है और दायीं ओर सुमित्रानंदन पन्त
#ansunekh✍️✍️✍️✍️
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harshvardhan__ 8w
आज के प्रसंग में इन चार हिंदी साहित्यकारों का ज़िक्र है। शीर्ष पर निराला जी हैं, एक योगी के भाँति देदीप्यमान, नीचे बायीं ओर से दायीं ओर का क्रम है, सुमित्रानंदन पंत, हरिवंशराय बच्चन और अमृतलाल नागर।
यह प्रसंग लिखा है बच्चन साहब ने, जब एक मर्तबा निराला जी उनके यहाँ पंत जी से मिलने अचानक पहुंच जाते हैं क्योंकि उस दौरान पंत जी, बच्चन साहब के यहाँ कुछ दिनों के लिए रहने आए हुए थे। आइए, प्रसंग पढ़ते हैं :
अप्रैल-मई 1948 की बात है। प्रयाग में जोर की गर्मी पड़ने लगी। पंतजी पहाड़ जाने की तैयारी में थे, अमृतलाल नागर उनसे मिलने आये हुए थे, हम तीनों लगभग चार बजे के आसपास अपने कमरे में चाय पी रहे थे। बरामदे में किसी के पाँवों की आहट सुन पड़ी। मैं पर्दा हटाकर बाहर निकला।
देखता हूँ एक पहलवान बाहर खड़ा है - अरे ये तो निराला जी हैं ! पाँवों में पंजाबी जूता, ऊपर मटमैली तहमत, शरीर पर लंबा कुर्ता, मुंडे सिर पर छोटी सी साफी बाँधी हुई, गर्दन गाल पर मिट्टी भी लगी हई और आंखों में लाल डोरे उभरे।
मुझे देखते ही पूछा, 'पंत ?'
'हैं'
'मिलूँगा'
'आइए'
कमरे में घुसते हुए ही उन्होंने आवेश-भरे स्वर में कहना शुरू किया - "पंत, तुमने कविता तो बहुत अच्छी लिखी, आज हमारी तुम्हारी कुश्ती भी हो जाए, मैं निराला नहीं हूँ, मैं हूँ तुत्तन खान का बेटा मुत्तन खान, मैंने गामा, जुविस्को और टैगोर सबको चित किया हुआ है। आओ आओ...." आदि
यह सब कहते कहते उन्होंने अपने सारे कपड़े उतार दिए, सिर से साफी उतार कर लंगोट की तरह बांधी और फिर डण्ड पर डण्ड लगाने लगे। फिर ताल ठोंकी।
अमृतलाल जी सतर्क हो गए, मूर्ति हिल सकती थी पंत जी नहीं हिल सकते थे। उन्हें जड़वत देख निराला जी ने मेरी तरफ देखा, कहा "तुम आओ !"
मैंने कहा, "मैं तो आपका चरण छूने योग्य भी नहीं हूँ, कुश्ती क्या लड़ूँगा !"
निराला शांत हो गए।
मैंने कहा "निराला जी चाय पीजिए"
बोले "निमंत्रित नहीं हूँ, पानी पी सकता हूँ, लोटे में लाना"
निराला को कौन सरेख कहे ? कौन पागल ? कौन बहोश कहे ? कौन बेहोश ?
उन्होंने गट गट पानी पिया और झपटकर कमरे से बाहर हो गए।
० लेख स्रोत : बच्चन ग्रंथावली भाग -६
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harshvardhan__ 8w
पाकिस्तान में एक बार जोश मलीहाबादी से एक बूढ़े शख़्स ने पूछा कि जोश साहब, 'क्या आप मुझे बता सकते हैं कि लखनउआ सफ़ेदा और जौहरी सफ़ेदे (सफ़ेदा आम की एक प्रजाति है) में क्या अंतर है ?'
जोश ने जवाब दिया, 'क़िबला आपकी बात पर मुझे पतरस बुखारी का एक लतीफ़ा याद आ गया पहले वो सुन लीजिए। एक बार रेडियो स्टेशन पर बुखारी साहब से मिलने एक ज़ईफ़ शख़्स आए। उन्होंने बातों बातों में बुख़ारी साहब से पूछा। बुख़ारी साहब, तानपूरे और सारंगी में फ़र्क़ वाज़े कर दीजिए। बुख़ारी साहब ने जवाब दिया - गुस्ताख़ी माफ़, लेकिन क्या मैं आपकी उम्र जान सकता हूँ। उन्होंने जवाब दिया। अस्सी बरस। बुख़ारी ने कहा कि जब ज़िंदगी के अस्सी बरस आपने तानपूरे और सारंगी का फ़र्क़ जाने बग़ैर गुज़ार दिए तो बाक़ी के दो चार बरस और सब्र कर लीजिए।'
इसके बाद जोश ठहाका मारके हँसे। मगर बूढ़ा खिसिया गया। जोश ने उससे माज़रत तलब की और उसे सारे आमों के बारे में तफ़सील से बताया।
० लेख स्रोत : राजकमल प्रकाशन द्वारा प्रकाशित हिमांशु बाजपेयी की पुस्तक 'क़िस्सा क़िस्सा लखनउवा'
✍️✍️✍️✍️(पहले के भाग यहां से पढ़ें।।)
#ansunekh
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harshvardhan__ 8w
बिस्तर में लेटे लेटे बस टूक मिलाता चला गया। क्या बना नहीं पता।आप सब पाठकों के नाम। कौनसा मक्ता सबसे ज्यादा पसंद आया जरुर बताएं।
@gunjit_jain,@rani_shri,@gazal_e_vishal,@bhawnapanwar,@pritty_sandilya,@parle_gग़ज़ल
आहट से बिखर जाएंगे पत्थर मकान के,
इतने पास से ना गुजरो जर्जर मकान के।
लुढ़कते है इधर उधर दो चार धड़ी दाने,
कहां चले गए तमाम कनस्तर मकान के।
अगर नया चाहिए,पुराना तोड़ना पड़ेगा,
बेशक खुल तो जाएंगे मुकद्दर मकान के।
आई नहीं है नींद या सोया है बे सलीका,
सिकुड़े पड़े हैं मुद्दत से बिस्तर मकान के।
मैं तो गांव से हूं, मुझे मालूम नहीं लेकिन,
तुम ही सुना दो किस्से बेहतर मकान के।
मिरी जमींदारी पर कोई सवाल किसलिए,
अब भी पड़े हैं गांव में खंडहर मकान के।
इरादा था शहर सी कोठी बनाऊं लेकिन,
बुजुर्गो ने मना कर दिए दो दर मकान के।
अभी तो हाथ में आई नहीं रंग की कूंची,
उधर कांपने भी लगे प्लास्टर मकान के।
इस कान की खबर उस कान को ना हो,
इसलिए फासले रखिए दफ्तर मकान के।
ये मालूम है कि लौटकर आएगी नहीं मां,
मगर इंतजार में रहते हैं मंजर मकान के।
"मुंतशिर"हाथ जो छोड़ दिया बूढ़े दरख़्त ने,
पसीने में तर हुए अस्थिर पंजर मकान के।।
© मुंतशिर -
harshvardhan__ 8w
बहुत दिनों बाद ग़ज़ल लिख रहा हूं। पता नहीं कैसा हुआ है। फिलहाल बिस्तर पर हूं। हालही में मेरा कल ओप्रेशन हुआ है।
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कभी अपना भी सुंदर जमाना रहा है,
टूटे दिल का भी कोई फसाना रहा है।
कोई हंसी से ना तौले मिरे किरदार को,
दर्द से दिल का रिश्ता पुराना रहा है।
मुझे लगता नहीं डर तुफानों से अब तो,
एक भंवर से मुद्दत में आशियाना रहा है।
तिरी यादों से दिल ने साफ़ तौबा किया,
हम भूल गए कभी तुझसे याराना रहा है।
"मुसाफिर" सीढ़ियां उनकी उन्ही को मुबारक,
जिनका मकसद ही हरदम ही गिराना रहा है।।
© मुसाफिर -
harshvardhan__ 9w
मुम्बई आकर मनोज कई दिन फूटपाथ पर रहे।आते समय उनके पिता ने उन्हें ३०० रुपए की जगह ट्रेन के टिकट के लिए ६०० रुपए दिए। बता दूं कि उस समय गौरीगंज से मुम्बई के लिए एक ट्रेन चलती थी पुष्पक एक्सप्रेस,जिसका किराया ३०० रुपए था। उनके पिता ने उनसे कहा बेटे तीन सौ रुपए की जगह छह सौ रुपए ही रख ले। क्यों कि जिस तरह तू जा रहा है वैसे ही तुझे एक दिन बापस लौटना पड़ेगा। लेकिन एक बार जो मनोज घर से गए तो कामयाब होकर ही लौटे।उनकी शादी भी उनके सपने के कारण ही टूटी।और दिन बताऊंगा यह कहानी। मनोज उस वक्त गर्मियों की छुट्टियों में अपने घर आए थे।
अचानक एक दिन उनके घर के टेलीफोन नंबर पर उस लड़की का कॉल आया। इस बार उन्होंने सीधे सीधे उससे पूछा कि तुमने क्यों किया ऐसा मेरे साथ? क्या तुम मुझसे प्यार नहीं करती थी?
लड़की ने कहा नहीं मनोज मैं आज़ भी तुमसे प्यार करती हूं। लेकिन मेरे पापा को तुम पसंद नहीं हो।लोग प्रोफेसर, डाक्टर बनने का सपना देखते हैं और तुम सिर्फ एक मामूली गीतकार! इस रिश्ते को यही खत्म करो। मेरे तस्वीर और खत मुझे लौटा दो। मनोज ने उन्हें समझाने की बहुत कोशिश की लेकिन वह नहीं मानी। एक वक्त मनोज को बहुत गुस्सा आया। उन्होंने कहा ये तस्वीरें, ये खत मेरे हैं। मैं तुम्हें यह वापस नहीं करूंगा। ये खत मुझे दस चिट्ठियां लिखने के बाद बहुत मेहनत से हासिल हुई है, तुम्हारे एक जवाब के रूप में। Chemistry period में लैब में प्रेक्टिकल पर ध्यान देने से ज्यादा मैं उस मौके का इंतजार करता था कि कब टीचर की नजर थोड़ी देर के लिए मेरे ऊपर से हटे और मैं फटाक से तुम्हारी एक तस्वीर ले लूं। ऐसे हासिल की है यह तस्वीर। मैं तुम्हें यह वापस नहीं करूंगा।
उन्होंने लड़की को बोलने का मौका ही नहीं दिया। और जोर से फोन पटक दिया। और उन्होंने उसी दिन लिखी अपनी वह रचना जो आज हम जैसे हर नाकाम आशिकों की anthem बन चुकी है।
आंखों की चमक जीने की लहक सांसों की रवानी वापस दे,
मै तेरे खत लौटा दूंगा, तू मेरी जवानी वापस दे।
#ansunekh ✍️✍️✍️✍️
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harshvardhan__ 9w
आज मोहब्बत का दिन है।पूरे विश्व में ये दिन मनाया जा रहा है। लेकिन मुझे यह सब फालतू लगता है। क्या मोहब्बत का इज़हार सिर्फ एक ही दिन हो सकता है। क्या एक दिन के लिए यह दिखाना जरूरी है कि हम अपने माशुका से कितना प्यार करते हैं। अगर ऐसा है तो यह सब बस ढोंग है। इसमें सच्ची मोहब्बत की कोई जगह नहीं।आज का दिन भारतवासियों के लिए एक काला दिन है।जरा सोचकर देखिए उन परिवारों के बारे में जिनके शौहर, मेहबूब, बेटे बापस लौटने का वादा कर के भी लौट नहीं सके। पुलवामा और कारगिल के उन शहीदों को शत शत नमन।।
@gunji_jain,@rani_shri,@dipps_,,@bhawnapanwar,@iamfirebird,@abhi_mishra_,@aryaaverma12जिन्दा रहने के मौसम बहुत आते हैं,
मगर जान देने की रुत रोज आती नहीं।
हुस्न और इश्क दोनों को रुसवा कर,
वह जवानी जो खून से नहाती नहीं।।
© मुसाफिर
१४.२.२१ -
harshvardhan__ 10w
मनोज नए लेखकों और कवियों को पाठकों के समक्ष लाने का बहुत ही प्रशंसनीय कार्य कर रहे हैं। उन्होंने कुछ दिनों पहले अपने YouTube channel manoj muntashir पर एक series शुरू की थी जिसका नाम था the new ink poetry। इच्छुक पाठक उनके YouTube channel पर ये सीरीज देख सकते हैं। उन्होंने बाहुबली दो की पटकथा भी लिखी है। वह १९९९ से मुम्बई में रहते हैं। लेकिन उन्हें आज भी गौरीगंज से बिछड़ने का रंज रहता है।उनकी अपनी भाषा में-
मै अपने गलियों से बिछड़ा इसका मुझे रंज रहता है,
मेरे दिल में मेरे बचपन का गौरीगंज रहता है।।
हाल ही में उनकी एक किताब मेरी फितरत है मस्ताना प्रकाशित हुई है। इसके द्वितीय भाग का काम भी चल रहा है। प्रकाशित हो गई तो भी मुझे खबर नहीं।
उसदिन उस लड़की के साथ मनोज की कोई बात नही हुई। वह लड़की बस इतना कहकर चली गई कि मनोज तुम जरा भी प्रेक्टिकल नहीं हो।सब सोच रहे हैं कि कोई डाक्टर बनेगा, कोई प्रोफेसर बनेगा और तुम ख्वाब देख रहे हो फिल्मों में गाने लिखने का। लाइफ को लेकर ज़रा सिरीयस हो जाओ मनोज। तुम्हारा फिल्मों से क्या ही वास्ता है,कौन जानता है तुम्हे वहां मुम्बई में। मुझे एक नोर्मल लाइफ चाहिए। मुझे नहीं चाहिए तुम्हारी ये ख्याली पुलाव वाली लाइफ,जिसमे कोई security नहीं है।
मनोज सिर्फ हंसे। वह उस लड़की से कुछ नहीं कह पाए। क्यों कि दो सालों से वह लड़की जुनून की तरह उनपर सवार थी। वह अगर एक बार कहती तो वह अपनी जान दे देते। लेकिन उसी लड़की ने एक दिन मनोज से कहा था देखो मनोज मैं तुमसे प्यार करती हूं। और तुम मुझे भले ही भूल जाओ लेकिन मैं तुम्हें हमेशा याद रखूंगी। फिर एक दिन भी वह लड़की मनोज से मिलने नहीं आई। फिर मनोज इलाहाबाद विश्वविद्यालय चले गए B. Sc. करने के लिए।
(आगे की कहानी कल।।)
#ansunekh✍️✍️✍️✍️
@rani_shri,@rangkarmi_anuj,@gunjit_jain,@mai_shayar_to_nahi_,@ek_ahsas,@pritty_sandilya,@amateur_skm,@iamfirebirdकिस्सागोई
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कबिले -ए- इश्क मैं नहीं
मुहब्बत -ए-जुस्तजू तु नहीं
©saurabh_yadav -
जिंदगी की अब एक ख़्वाहिश पूरी हो
कि मुहब्बत और चाँदनी रात तेरे संग हो
©saurabh_yadav -
leena_afsha_ishrot 7w
18.
#leena_unsaidwords #hindiwriters #wod #pod #wn
@mirakee @writersnetwork @writerstolli @hindiwriters @hindiurdu_saahitya
Thank you for the ❤️ @hindiwriters
Fakhar - glory/pride
Guroor - arrogance/haughtiness/conceitedness
Welcome to highlight my mistakes28 - feb - 21 4:06 p.m.
फ़खर नहीं है मुझमें कोई
तुम्हारे नाम की किताब ही तो छपि है
जश्न तुम मनाओ
तुम्हारे जाने के बाद भी
तुम्हें जिंदा रखे हूँ
गुरूर तुम रखो
आफात़ मैं लाउंगी
अफसोस तुम्हें भी होगा
मेरे साथ न होने की
यूं ग़लतफहमी में मत रहना
फ़कत तुम से नाराज़ हूँ
हां...
कुछ शिकायतें ज़िंदगी से है
पर मैं भी लोह हूं
फ़खर नहीं है मुझमें कोई
तुम्हारे नाम की किताब ही तो छपि है
जश्न तुम मनाओ
तुम्हारे जाने के बाद भी
तुम्हें जिंदा रखे हूँ
©leena_afsha_ishrot -
parle_g 7w
जो मिरी शबों के चराग़ थे जो मिरी उमीद के बाग़ थे
वही लोग हैं मिरी आरज़ू वही सूरतें मुझे चाहिएँ।
~~ ऐतबार साज़िद
@officialhimanshu आपकी नजर में कुछ गुस्ताखी !!
अच्छा लगे तो.... बतलाना जरूरअर्ज़-ए-मुज़्तरिब !
कुछ भी तो नही अहबाब बस कभी अर्ज-ए-मद्दुआ नही समझा,
यहाँ इक़ कम-बख्त मैं ही था,जो ता-उम्र तिरी वफ़ा नही समझा।
यूं तो मिरे भी मिज़ाज में नही आ'ता मुड़के देख लेना किसी को,
तुमसे हजारों मीलों का फासला रखा है, म'गर जुदा नही समझा।
तिरे इल्ज़ाम रख लिए, बेवफाई रख ली,तो क्या बचा था माशूक़,
अब तो ख़ुदा के वास्ते कुछ मत कहो,कि तुम्हें ख़ुदा नही समझा।
आज भी ज़िंदगी नही दिखती मुझ'में,मिरी नब्ज देख लो आकर,
आओ कोई लम्हा बतलाओ,जब तिरे जहर को दवा नही समझा।
मुना'फ़िक़ सब कुछ है यहाँ, तू भले यकीं ना करे मिरी बा'तों का,
तू फिर आग तक सम'झ जाता है,और मैं कभी हवा नही समझा।
फाएदा क्या है, देर त'लक तुम्हें इक़ तस्सवुर में बिठाए रखने का,
फाएदा क्या है,इक़ हफ्ता भी तू मिरे जेहन की स'दा नही समझा।
किसकी हिदायतें है तुम'को,दर्दों की जमा'खोरी पर लगे हो मियाँ,
लानत है, तू भी कभी इंसाँ के इरादों की बंद-ए-कबा नही समझा।
लुटाने को क्या है दर'मियाँ, मिज़ा से मिरे ख़्वाब तोड़ लो अख्तर,
ये अच्छा नही रहा, मैं कभी जफ़ा नही समझा सफ़ा नही समझा।
मुझे नही मिला कोई रम्ज,क्यों दश्त-ए-सहरा आज वीराँ है इतने,
गालि'बन मैं ही हूँ, जो कभी तबी'अत से कोई फ़ज़ा नही समझा।
सितारों की कोई उम्र नही होती,फ़क़त आसमाँ चलाता है सबको,
मि'री माँ, मैं जब तक तिरे आँचल में रहा, बस क'जा नही समझा।
©parle_g -
जिंदगी से सवाल
ऐ जिन्दगी तुझसे कुछ सवाल है
जिसकी मुस्कुराहट अच्छी है, तू मुस्कुराने नही देती
जो गाता अच्छा है, उसे गुनगुनाने तक नही देती
किसी की आवाज़ छीन ली, किसी को चुप्पी देती
जो सरल है, उसे सता रखा है,
जो कठिन उसे दुख की हवा तक नही देती
कुछ खुश है तुझसे ,कुछ को मलाल है
ऐ जिंदगी मेरे सवालो पर तेरा क्या ख्याल है
जो खुदगर्ज़ है, उसे खुशी देती है,
जो हार गया , उसे खुदखुशी देती है
शीशे को पत्थर बना दिया, गूँगे को बोलना सिखा दिया
फर्श से अर्श का सफर पल में तय करा दिया
ऊँची उड़ान को पिंजड़े में सज़ा दिया
तेरे ऐसे सितम पर 'पंछी' ने मचाया बवाल है
बता ऐ जिंदगी मेरे सवालों पर तेरा क्या ख्याल है
©anushka_singh_panchhi -
parle_g 9w
हो भी कैसे इस दर्द-ए-दिल की दवा मुझसे
मिरा जख्म ही पूछता है, वजहा क्या है !
~~ ज़िया खान !!
@cosines @rani_shri @iamfirebird @prashant_gazal
लगने को तो.... सब लगता है....
महज कहने की... वजहा नही लगती !!
@samridhi_mahajan आपकी नजर में... कुछ गुस्ताखी ❤️जाँ तिरे वसवसे!
फ़िरसे इक़ रंज-ओ-गम लौट आने में आब-ओ-हवा नही लगती,
अब मैं उसे क्या कहूं,क्यूं मुझे दुआ नही लगती दवा नही लगती।
किसकी तरफदारी में उतरना है,कोई खबर नही अब इंसानों को,
कौन सी नि'गाह है वो, जिन्हें पहेली-ए-इ'माम जफ़ा नही लगती।
तू मुझ'से मत मांग मिरे अ'हद-ए-वफ़ा, तन्हा ठीक रहूंगा मैं यहाँ,
तू मिरे वादे छोड़ जाएगा, तिरे नकाब में बंद-ए-कबा नही लगती।
तग़ाफ़ुल और भी बहानों से थमा'या जा सकता था मिरे दिल को,
यह भी कह सकता था मा'शूक़,ज्यादा देर मिरी वफ़ा नही लगती।
सफ़र-ए-ज़िंदगी ख़ामुशी से काटते,तो कुछ तो कट जाता मुझ'से,
मस'अला यह भी था मुर्शिद, मिरी उसे कोई इक़ सदा नही लगती।
जाओ तुम, जिस'के भी हो पाओ,उसी के होकर रह जाना ता'उम्र,
क्यों आ'ज भी तिरा चे'हरा देख लूँ तो, तिरे बा'तें दगा नही लगती।
मिरे पैकर को जला रही है तिरी या'दों की हिक़ारतें अब रात-दिन,
औ'र तू कित'नी आ'सानी से कह देता, कि मुझे सजा नही लगती।
देख कितने महीनों में बनाया था तूने मुझे अपने जिस्म में रखकर,
मिरी माँ!तू ही तो इक़ ख़ुदा है इस ज'हाँ में, मुझे ख़ुदा नही लगती।
©parle_g -
Wanna travel thai beautifully world with my hand in urs ....
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Never cry after hurting one with love !!
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rani_shri 9w
तुमको ना देखूं तो घबराती हूँ,
जाने क्यों पागल सी हो जाती हूँ
तुम दूर जाया ना करो,
ऐसे सताया ना करो।कहां है रे तू मोरा चंदा, तोहे देखने को मोरी नज़र ये तरसे,
जान में जान आ जाए,बस एक झलक तोहे देखने भर से।
©rani_shri -
उसकी मेहंदी की खुशबू, फिजाओं में छाई है
अरसे बाद वो फ़िर से , मेरे ख्यालों में आई है
©mai_shayar_to_nahi_
