मेरे देश की मिट्टी बदनसीब, जो हर पल खून में लथपथ रहती है,
कभी हिंदुस्तान, कभी पाकिस्तान की,नफरत से रंगी जो रहती है,
सरहद के उस पार भी तो अपने हैं, उनके भी तो सपने हैं,
उस पार वाले भी तो इंसान हैं, उनके भी तो परिवार हैं,
लेकिन हर दिल में नफरत भरते हैं, यह जो सियासतदान हैं,
क्या कीमत है इस मिट्टी की, सरहदों पर बैठे किसी जवान से पूछना,
अगर पूछना हो जहन्नम के बारे में, तो मेरे देश की आवाम से पूछना!
थोड़ा सच लिखा हूं, पर यू ना बिका हूँ,
माना बाजारों में दाम बड़े अच्छे अच्छे हैं,
एक कानून ही हमारा अंधा, जिसे दिखता नहीं कुछ,
वरना सच को तो देख लेते नन्हे नन्हे बच्चे हैं,
अपने ही घर में असुरक्षित हैं बेटियां,
देखो ना यही तो हमारे संस्कार हैं,
सच है झूठ झूठ है सच,
देखो ना साहब क्या खूब ये व्यापार है,
क्या होती है मौत से बदतर जिंदगी, ये किसी बेजुबान से पूछना,
अगर पूछना हो जहन्नम के बारे में, तो मेरे देश की आवाम से पूछना!
©happy_rupana
happy_rupana
Mera har ik alfaaz apne aap mein ik mukamal dastaan hain... Aur phir bhi na jane kyon log iss shayar ko bezubaan keh jaate Hain!
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happy_rupana 22h
Poem : Agar!
कैसे बदलता है रंग गिरगिट, यह किसी सियासतदान से पूछना,
अगर पूछना हो जहन्नम के बारे में, तो मेरे देश की आवाम से पूछना!
यह वो आवाम नहीं है, जो अक्सर समाचारों में दिखती है,
यह वो आवाम है जिसे देख कर भी अनदेखा कर दिया जाता है,
हमारे मंत्री साहब की एक छींक से अखबार हिल जाते हैं,
और एक "बेजुबान" बेजुबान सा मर जाता है,
रोटी तक ही सीमित रह जाती हैं जिनकी ख्वाहिशें,
पेट नहीं भरता तो बन जाती है तवायफे़,
ऐसे ही हर एक घर की कहानी, बेजुबान से पूछना,
अगर पूछना हो जहन्नम के बारे में, तो मेरे देश की आवाम से पूछना!
ढेर हैं चारों ओर, लाशों के! सिर्फ लाशों के,
वो लाशें जिनकी मौत भूखमरी से होती है,
एक दिन रोटी ना मिले तो पागल से हो जाते हो आप,
सोचो कितनी खौफनाक होगी वो मौत, जो भूख से होती है,
और हमारे मंत्री साहब भाषण पर भाषण दिए जाते हैं,
एक वक्त पर जो 50 हजार का भोजन खाते हैं,
क्या होती है एक दाने की कीमत,
किताबों को छोड़ किसी भूखे इंसान से पूछना,
अगर पूछना हो जहन्नम के बारे में, तो मेरे देश की आवाम से पूछना!
जो खुद भूखा रहकर आवाम का पेट भरता है,
देखो ना वही अन्नदाता हमारा आज सड़कों पर मरता है,
सोने के पलंग पर हाकम सो रहा है,
और किसान का बच्चा हक मांगते सड़कों पर रो रहा है,
गलत को सही सही को गलत बताते हैं,
जमीर तो बेच दिए, ना जाने ये नेता और क्या-क्या बेचना चाहते हैं,
कैसे बिकते हैं इंसान ये हमारे नेता साहब से पूछना,
अगर पूछना हो जहन्नम के बारे में, तो मेरे देश की आवाम से पूछना! -
happy_rupana 4d
Poem : एक लाश मिली!
मैंने देखा वो मंजर इन आंखों से,
जिस मंजर से......
इन लोगों को एक तमाशा,
और मेरी आंखों को बरसात मिली,
उसने घुंघट क्या उठाया
.....दुल्हन की जगह एक लाश मिली!
हां वो लाश,
जिसके टूटे थे आज सारे ख्वाब,,
हां वो लाश,
जिसके लफ्ज़ थे खामोश और नम थी आंख,
हां वही लाश,
जिसकी उम्र थी महज़ 14-15 के आस पास,
हां वो लाश,
लाल जोड़े में लथपथ पड़ी थी जो आज,
हां वही लाश,
हां वही लाश, साहब....हां वही लाश!
उसके चरित्र पर उठ रहे थे सो तरह के सवाल,
लेकिन किसी ने ना देखा,
कि कितनी बेदर्दी से आज,
....फिर एक नादान! बाल विवाह की भेंट चढ़ी,
उसने घुंघट क्या उठाया
.....दुल्हन की जगह एक लाश मिली!
कुछ घंटे पहले का माहौल,
भी तो कितना अजीब था,
उसने मुझे भी ना बताया,
जबकि मैं उसके सबसे करीब था,
झूठी मुस्कुराहट लिए फिरती रही वह सारा दिन,
पता नहीं कैसे सांस ले रही थी वो इन हवाओं के बिन,
जला कर आई थी वो,
किसी बंद कमरे में अपनी किताबें,
मोन पड़े थे आज,
जो चेहरे बेवजह थे मुस्कुराते,
अभी तो उसने पूरे करने थे अपने ख्वाब,
अभी तो उसने जीना था बेहिसाब,
पर देखो ना आज,
कमबख्त एक रात! उसकी जिंदगी का कर व्यापार गई,
उसने घुंघट क्या उठाया,
.....दुल्हन की जगह एक लाश मिली!
"इसके मां-बाप ने पता नहीं,
क्या क्या संस्कार दिए थे,
शादी वाले दिन ही आत्महत्या कर ली,
पता नहीं ऐसे क्या क्या इसने काम किए थे",
"लगता किसी के साथ चक्कर था इसका,
सुना है पढ़ने शहर भी जाया करती थी",
हां हां मैंने भी सुना है और देखा नहीं तूने,
कितने छोटे कपड़े पाया करती थी",
ऐसी ही बातें समाज की कुछ औरतें कर रही थी,
और एक "बेजुबान", बेजुबान सी मर गई थी,
जिसने पंखों के साथ है अभी उड़ना शुरू किया था,
आज वही मुझे इस जमीन पर, "हताश" मिली,
उसने घुंघट क्या उठाया
.....दुल्हन की जगह एक लाश मिली!Please read from the caption!
उसके हाथों में लथपथ एक चिट्ठी मिली,
जिसमें अल्फाज कम और जज्बात ज्यादा लिखे है,
पढ़ते-पढ़ते जिन लफ्जों को रो पड़ा मैं,
न जाने उसने कितनी बेदर्दी से वो लिखे हैं,
कुछ यूं लिखा था उस चिट्ठी में,
" कहां से शुरू करूं कहां पर खत्म,
माफ कर देना पापा जो मैंने किया यह सितम,
इतनी कमजोर भी नहीं थी जो यह कदम उठाती,
लेकिन एक 14 बरस की लड़की और कितना कुछ सह पाती,
पापा अभी तो मैंने पढ़ना था,
अपने ख्वाबों को पूरा करना था,
शादी की अभी उमर नहीं थी मेरी,
मुझे तो अभी और आगे बढ़ना था,
कह दिया इन किताबों ने आज मुझे अलविदा,
सांस कैसे आएगी तू ही बता मेरे खुदा,
बड़ी आवाज उठाई मैंने बड़ा चीखी चिल्लाई मैं,
पर आपके इस समाज के आगे बेजुबान ही कहलाई मैं,
पापा कहा था आपको,
नहीं करनी मुझे यह शादी,
लेकिन जब आपने कसम ही दे दी,
तो कुछ ना कर पाई मैं!
जिस बुड्ढे से आप मेरी शादी कर रहे हो,
ना जाने वो कितने दिन और जिंदा रह पाएगा,
अब सुहागन उस बुड्ढे की, फिर भी विधवा भी उसी की ,
और ऐसे ही मेरा दिल, दिन काटता जाएगा,
कह दो इस जमाने को कि तमाशा ना बनाएं,
हर रोज की तरह एक निर्दोष ही तो मरी है,
कह दो इस जमाने को, झूठे आंसू ना दिखाएं,
कोई खुदा नहीं मरा, एक बोझ ही तो मरी है!
.................... हां! एक बोझ ही तो मरी है!"
उसकी ख़ामोशी कोई ना सुन पाया,
अभी भी वो उन इल्ज़ामों के साथ मुझे बदनाम मिली,
उसने घुंघट क्या उठाया,
.....दुल्हन की जगह एक लाश मिली!
©happy_rupana -
happy_rupana 1w
Note : Please Read from the caption.
रात के 12:00 बज गए, लेकिन वो अभी भी मुझे वैसे ही देख रहा है। बेचैनी सी हो रही है। क्या वो भी मुझे अभी तक नहीं भूला। रोज शाम को आकर यहीं मेरी दहलीज पर खड़ा हो जाता है।....और मैं दूर अपने कमरे की खिड़की से उसे देखती रहती हूं और कुछ पल बाद मैं चली जाती हूं। लेकिन पता नहीं वो कब तक यूं ही खड़ा रहता होगा, मेरे इंतजार में। आज भी वो वैसे ही खड़ा है। ठंड भी बहुत है और आज हल्की हल्की बर्फबारी भी हो रही है। लेकिन वो वैसे का वैसे ही खड़ा है।
तभी रेडियो पर यह गीत चलने लगा,
"मैं किसी और की हूं फिलहाल के तेरी हो जाऊं!"
और वो उसे देखती देखती फिर से उन्हीं ख्यालों में खो गई, कुछ साल पहले के ख्याल,
" कितना अच्छा था ना जब वो मेरा था और मैं सिर्फ उसकी। सारा दिन उससे बातें करना, उसे देखते रहना, साथ में किताबें पढ़ना, एक दूसरे को बस निहारते रहना। आंखों की आंखों से बातें होती थी, कितना अच्छा था। मुझे कभी बोलने की जरूरत ही ना पड़ती, वो अक्सर मेरी खामोशी समझ लेता था।
मैंने कहा था उस दिन उसे इतनी देर मत रुको कोई आ जाएगा पर वो नहीं माना, बस मुझे देखता रहा और उधर से पापा आ गए। उसे तो पापा ने कुछ ना कहा और वो चला गया। लेकिन मेरा यहां मरना हो गया, जब पापा ने 10 दिन बाद मेरी शादी किसी और से तय कर दी थी। मैंने उसे मैसेज किया और उसने कहा था कि "मैं ऐसा नहीं होने दूंगा, तुम सिर्फ मेरी हो मेरी! मैं आ रहा हूं।"1 दिन बीता, 2 दिन बीते, 3 दिन बीते, ना उसका कोई फोन ना मैसेज और ऐसे ही दिन बीतते बीतते आखिर वो शादी वाला दिन भी आ गया। मैं फेरों तक उसका इंतजार करती रही, पर वो आया ही नहीं! मेरे दिल में मातम और मेरे घर में शहनाई थी। मेरी शादी हो रही थी किसी अजनबी से जिसे मैं जानती भी नहीं। और वो आया कब.... 3 महीने बाद! जब मैं किसी और की हो चुकी थी। और अब हर रोज मेरे घर के बाहर मेरी दहलीज पर खड़के मुझे देखता रहता है। बारिश हो, सर्दी हो या बर्फबारी हो, बस वो वैसे का वैसा ही खड़ा रहता है, उस दिन के बाद उससे कभी बात भी नहीं हुई और ना ही कभी करनी है। तब कहां था वह जब मुझे उसकी जरूरत थी अब आ गया प्यार जिताने को।
यह कहते कहते हैं उसकी आंखों में आंसू आ गए और वह किसी कोने में बैठ गई रोने को। लेकिन फिर खुद को संभाल कर फिर से उसे देखने लगी उसी खिड़की में से।
और वह गीत अभी भी चल रहा है,
"Hun roni aa pastauni aa,
k chand nii hoyeya chakor da,
Hun main bhi aa kise hor di,
te tu bhi ae kise hor da !"
और वो देखती है कि एक लड़की आती है और उसे संभालती हुई अपने साथ ले जाती है शायद वो उसकी पत्नी है।
©happy_rupana -
जिंदा हूं मैं!
फिरता हूं गली-गली पाने को मौत, ऐसा एक काफिर बाशिंदा हूं मैं,
माना कि यकीन ना होगा तुम्हें, पर सच यही है कि जिंदा हूं मैं!
सुबह कहां हो ना जाने शाम कहां हो, जन्म कहां हुआ ना जाने शमशान कहां हो,
उड़ता फिरता है जो बेवजह सा, ऐसा इक मुसाफिर सा परिंदा हूं मैं!
रातों को रोता रहता हूं बेवजह, दिन का चैन कहीं खोने लगा है,
कहते हैं लोग मुझे इश्क हुआ है, लेकिन नफरत से भरा दरिंदा हूँ मैं!
आया था तेरे शहर दुनिया जीतने, खैर अब... सब हार कर लौट रहा,
लड़ रहा हूं हर पल इस तन्हाई से, और लोग कहते हैं कि अहिंसा हूं मैं!
कुछ उधारे पल तो दे जा मुझे, लुटा दूंगा, इस शायर का वादा रहा,
यूं हर पल इश्क तुझसे ही होता है, यह बात है अलग, के अब शर्मिंदा हूं मैं......,
..........पर सच यही है कि जिंदा हूं मैं!
©happy_rupana -
happy_rupana 1w
लिखने का तो चंद अल्फाज सोचा था,
गजल या नजम ये नहीं सोचा,
लिख कर उस पर किताब "हैप्पी",
सोच रहा हूं कि कितना कुछ लिखना बाकी है,
लग जा गले फिर एक दफा,
..............कि तेरा इश्क अभी मुझमें बाकी है!
©हैप्पीलग जा गले!
लग जा गले फिर एक दफा, कि तेरा इश्क अभी मुझमें बाकी है,
पिलाता नहीं जो ये जाम_ए_जहर, जालिम बड़ा ये साकी है।
..................लग जा गले फिर एक दफा!
गुजरता हूं रोज गलियों से उनकी, बूहे बंद अक्सर वो रखते हैं,
हो जाता इश्क दोबारा मुझे, जब-जब खुलती उसकी ताकी है।
..................लग जा गले फिर एक दफा!
भूल जाऊंगा तुम्हें मैं कल से ही, ये कहते हुए जमाने बीत गए,
हर सुबह मेरी मुस्कान में तू, हर रात को आंसुओं में नजर आती है।
..................लग जा गले फिर एक दफा!
मांगा था खुदा से बस तुझे ही, तू ही ना मिला तो और क्या मांगू?
सिर्फ एक ही ख्वाब था, वो भी अधूरा रहा, जैसे अधूरी सी ये रात बाकी है।
..................लग जा गले फिर एक दफा!
माना कि मैं काफिर बन गया, जब से खुदा उसको मुझसे छीन लिया,
लेकिन ऐसे भी मैंने क्या किये है गुनाह जिसके लिए छोटी पड़ गई माफी है।
..................लग जा गले फिर एक दफा!
काट दी है आधी तेरे प्यार में, आधी काटनी तेरे इंतजार में बाकी है,
माना सांस नहीं आ रही, पर मरा तो नहीं, जीने के लिए तेरा एहसास काफी है।
..................लग जा गले फिर एक दफा!
©happy_rupana -
कब सुबह हुई कब शाम पता ना चला,
दिल भी ना जाने किन लम्हों में खो गया,
आज भी बरकरार है इस दिल में वो वैसी की वैसी,
जिसकी मोहब्बत में पागल हुए मुझे एक जमाना हो गया!
बहुत गजलें लिखी हैं उस पर, बहुत अल्फाज लिख लिए,
मशहूर उसे लिख दिया, हम खुद को बदनाम लिख लिए,
उसे क्या बेवफा लिखते हम,
इससे अच्छा तो हम खुद को "बेजुबान" लिख लिए!
©happy_rupana -
happy_rupana 2w
घर ही आना था!
गांव में उस कच्चे से मकान के अलावा,
और मेरा क्या आशियाना था,
चला था दुनिया को जीतने मैं,
पर भूल गया था कि लौटकर तो घर ही आना था!
मैंने चारपाई को छोड़ दिया,
महंगे पत्थरों के शहर में, महंगे बिस्तर खरीद लिए,
पर भूल गया था कि उस महंगे शहर में,
उस बिस्तर पर भी, नींद को ही आना था!
बड़ा नाम शोहरत कमाई मैंने,
बड़ी महंगी हवेली पाई मैंने,
पर भूल गया था एक दिन ,
सब मिट्टी में मिल ही जाना था!
सारी जिंदगी मैंने पैसा कमाने में ही निकाल दी,
आज मुझे वक्त मिला तो.. मां की लाश है सामने पड़ी,
मुझे क्या पता था कि मेरी मां की जिंदगी को खरीदने,
पैसे ने भी काम ना आना था!
करता रहा मैं वादे सदा ही हमसफर बनने के ,
क्या पता था इस जिंदगी ने, बीच में ही छोड़ जाना था!
चला था दुनिया को जीतने मैं,
पर भूल गया था कि लौटकर तो घर ही आना था!
©happy_rupana -
तुम्हें यह खूबसूरत आंखें तो दिख जाती हैं,
मगर उनके पीछे छुपे आंसू क्यों ना दिखते हैं,
मुझे रूह खरीदनी है तुम्हारी,
जिस्म तो बाजारों में ओर भी बहुत बिकते हैं।
कभी इन होठों को निहारते हो,
कभी इनमें आप मदहोश हो जाते हैं,
तुमने वो मेरे लफ्ज़ सुने ही नहीं कभी,
जो दिल से जुबान तक आते-आते खामोश हो जाते हैं।
रुक जाती है तेरी ख्वाहिश है सिर्फ जिस्म तक मेरे,
ना जाने क्यों तुम मेरी रुह को ना पढ़ पाते हो,
जो ज़ख्म है मेरे दिल पर कभी वो भी देख लेना,
जिस्म पर तो जख्म तुम अक्सर दे जाते हैं।
मुझे रूह का प्यार चाहिए,
और तू अक्सर करता जिस्मों का व्यापार है,
अब मत कर नाटक "जानी" मशहूर होने का,
देख तो ले जरा, तू तो अपने आप में ही "बदनाम" है।
©happy_rupana -
happy_rupana 3w
Please read from the first part #pyaar_by_happy_rupana
Story : Pyaar (part :2)
"ए किताबों की दुकान, क्या किताबी डायलॉग मार रहा है? यह बातें ना सिर्फ किताबों में अच्छी लगती है, जिंदगी में ऐसा प्यार ना कभी किसने किया है ना ही कोई करेगा। और तू तो ऐसे कह रहा है जैसे तुझे फिर प्यार होगा ही नहीं?"
"मैंने यह कब कहा कि मुझे फिर से प्यार नहीं होगा? होगा! जरूर होगा। लेकिन मेरा पहला प्यार वही रहेगी। उसके लिए जगह कम नहीं होगी।"
"अच्छा! तू बता अपने प्यार के बारे में, सुना है काफी इस कॉलेज में तेरी कहानियों के बारे में"
"तो उनसे की एक कहानी और सुन लीजिएगा ना! मुझसे क्यों पूछ रहे हो?"
"क्या तू आज भी उस से प्यार करता है?"
"पहले भी करता था, आज भी करता हूं और जब तक जिंदा हूं करता रहूंगा, आखिर प्यार है यह मेरा, कोई मौसम थोड़ी है जो बीत जाएगा!"
"अच्छा यह तो बता दे क्या बात थी उसमें जो मुझ में नहीं?"
"कुछ भी खास नहीं था, या यूं कह लो कि उसमें सब कुछ खास था! अगर मेरी निगाह से देखो थे तो वो किसी खूबसूरत ग़ज़ल सी लगेगी, लेकिन खैर आप तो अपनी निगाह से देखोगे ना। और हां, वजह तो अक्सर में व्यापार में होती है, प्यार तो अक्सर ही बेवजह होता है।""तुमने कभी उससे अपने दिल की बतायी नहीं?"
"बताई थी, लेकिन उसने सुना ही नहीं! शायद वो सुन नहीं पाई।"
"तेरा कभी मन नहीं किया कि उसे अपनी GF बनाऊं?"
"नहीं।.... मैं तो उसके साथ जिंदगी बिताना चाहता था। कुछ पल, कुछ घंटे, या कुछ दिन नहीं।"
"तुमने जब उसको अपने दिल की बात बताई थी, तो उसका जवाब क्या था?"
"वो कह रही थी कि वो अपने पहले प्यार को धोखा नहीं दे सकती, अगर उसने छोड़ दिया तो वह मुझे अपना लेगी। अगर नहीं छोड़ा तो उसके साथ ही जिंदगी बिता लेगी। लेकिन उसे शक है कि शायद वह भी छोड़ कर चला जाएगा, तो शायद वो मुझे अपना ही लेगी"
"तुम्हें गुस्सा नहीं आया? जब उसने ऐसा कहा! आखिर तुम उसके लिए क्या क्या सोचते हो और वो तुझे सिर्फ एक चॉइस समझती है?"
"नहीं!... मैंने कहा कि आ जाना! तुझे अपना लूंगा।"
"अगर वह सच में आ गई तो क्या सच में तू अपना लेगा?"
"हां! अपना लूंगा मैं तो आज भी उसके आने का इंतजार करता हूं"
"तभी कहता हूं कि मुझ पर तुम अपना वक्त जाया ही कर रही हो।"
......... बस शायद वो पहली मुलाकात ही आखिरी मुलाकात थी। लेकिन मैं यह देखना भूल गई कि जो उससे प्यार भी नहीं करती, वो उसके लिए कितना कुछ करने को तैयार था। जो उससे प्यार करेगी वो उसके लिए क्या-क्या नहीं कर सकता??
मुझे आज भी उसके वह आखरी अल्फाज याद है,
"तो यह सब जानकर भी मुझसे प्यार करेगी क्या?.......नहीं ना? क्योंकि यह सब तो सिर्फ किताबों में अच्छा लगता है, असल जिंदगी में नहीं।"
©happy_rupana -
happy_rupana 3w
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Story : Pyaar (part : 1)
आज 10 साल हो गए उससे बिछड़े हुए। लेकिन ना जाने क्यों ऐसा लगता है कि जैसे आज भी वह मेरे दिल में वही रहता है। आज भी उसे याद करके मेरी आंखें नम हो जाती हैं, तो कभी चेहरे पर मुस्कान आ जाती है। आखिर था ही वो अजीब सा। हंसता रहता था पागल सा। हां मुझे याद है उससे वह पहली मुलाकात, शायद आखरी भी.......,
"Excuse me!"
"yes"
"hii, I am Tanya!"
"hlo, I am Rahul..."
"do you believe in love at first sight?"
"maybe yes"
"मुझे भी तुमसे वही हो गया"
"what....?"
"अरे इतना embraced feel मत कराओ,
सुन, मुझे तुमसे कुछ कहना है...... "I love you" तुम को पहली बार देखते ही प्यार हो गया!"
"तो मैं क्या करूं?"
"अरे बुद्धू इतना भी नहीं पता, जब कोई लड़की प्रपोज करती है तो क्या करते हैं?"
"Sorry, but तुम यहां सिर्फ टाइम ही खराब कर रही हो! मैं किसी और से प्यार करता हूं।"
"जानती हूं, मैं क्या पूरा कॉलेज जानता है! but शायद तुम यह नहीं जानते कि उसका already एक BF है। उसका भी BF है, तो तेरा क्या जाता है मुझे GF बनाने में?"
"जानता हूं, लेकिन शायद तुम ये नहीं जानती कि उसका वह BF मेरा ही दोस्त है, और हां! तुम्हारी जानकारी के लिए बता दूं कि मैंने ही उन दोनों को मिलाया था।""अच्छा रांझा साहब!"
"चलो आप यह बताओ कि आपको मुझसे प्यार हुआ कैसे?"
"तुम्हारी बातों से, तुम्हारी रूह से, तुम्हारी आंखों से जिनमें कोई बेजुबान सी कहानी छुपी है, मुझे उनसे प्यार है।"
"oh very nice, BTW.....तुम्हारी नजर में प्यार क्या है?"
"प्यार जिसे याद करते ही चेहरे पर मुस्कुराहट आ जाए, जिसके बारे में सारा दिन सोचते रहो, सारी रात उसके ख्यालों में ही बीत जाए, वो है प्यार। आप जिसके लिए और जो सिर्फ और सिर्फ आपके लिए बना हो, वो है प्यार!"
"oh very nice..., sorry to say but मेरी डिक्शनरी में प्यार का यह मतलब नहीं है। मैं आपसे पहले ही कह चुका हूं कि आप सिर्फ और सिर्फ अपना वक्त जाया कर रहे हो।"
"...होने दो ना वक्त जाया, अच्छा लगता है। BTW तुम्हारी डिक्शनरी में क्या मतलब है प्यार का?"
" प्यार दो रूहों का मेल, जिस्मों में जितनी भी मर्जी दूरियां हों, लेकिन रूह हर पल एक दूसरे के करीब रहे, वो है प्यार। उस से प्यार करने की कोई वजह ना हो, बस आप उसे बेवजह ही प्यार करो। अरे प्यार ऐसे नहीं कि आज ज्यादा है, अगर कल को कोई और आ गया तो कम हो जाएगा, जो कल भी वैसा था, आज भी वैसा है और कल भी वैसा का वैसा ही रहेगा, वो है प्यार। प्यार बिना सोचे समझे होता है। आपको कोई फर्क नहीं पड़ना चाहिए वो जिस से मर्जी प्यार करें, बस आपकी मोहब्बत पाक होनी चाहिए। आखिर आपका प्यार है, कोई कैद नहीं! जो आप उसे कैद रखो। वो जो दिल में आए वो कर सकती हो, आख़िर उसके पास भी तो दिल है ना। उसे उड़ने दो, बाहें फैलाकर अपनी जिंदगी खुद जीने दो, कैद मत रखो क्योंकि प्यार तो आजादी का नाम है। ऐसा प्यार दो जो उसे जो से मुस्कुराना सिखा दे। आपके चेहरे पर उसे याद करने से मुस्कुराहट आए या ना आए लेकिन उसके चेहरे पर आपकी वजह से हर वक्त मुस्कुराहट आनी चाहिए।"
To be continue.........
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#rachanaprati7 के संचालन की बागडोर मेरे हाथ में देने के लिए @neelthefeelका हार्दिक आभार ।
इस श्रृंखला को आगे बढ़ाने हेतु मेरा विषय है "अधूरा ख्वाब"। उम्मीद है यह सभी को पसंद आये एवं अधिक से अधिक रचनाएँ पढ़ने को मिलेंगी, इस आशा के साथ आप सभी से आग्रह है 7 अप्रैल समय साय 8 बजे तक अपनी दमदार लेखनी में रचना प्रस्तुत करें।
©mamtapoet -
fromwitchpen 4w
Just for some people who used me in every way they wanted :)
I'm grateful to you , you showed me a new image of this world .And soon my pen broke down
Not a writer anymore
I screamed all night
Rustling of leaves
Those memories and metaphors
I died , I gave up on my dreams
Ink in my veins
Shrieked, weeped all night
Slowly the world where I wrote
Changed into a chaos
People changed
Words changed
Priorities changed
Some left
Some walked in
Some the most luckiest
Some on people shower sorries
They forgot
I learned a new lesson
They just play with minds to be all famous and to shine . They forget you in seconds . Those sugary and buttery comments I received they thought I felt happy but in reality I was hurt .
In the end I understood
Even you give your hundred percent half of your heart and soul to someone they will forget you in seconds . Cause , glamour and fame makes people blind .
Here I want to say everyone stop calling me Ma'am I'm not this much worthy to be called this . I'm a little girl with very little knowledge of writing . Let me be that . I don't need anything anymore .
Thank you so much :))
©fromwitchpen -
gunjit_jain 4w
काश कि ये 'काश' अब पूरा हो❤️
अगर आपका ये 'काश' पूरा हो चुका है, तो पीरियड्स के टाइम लड़की को हग करके हमेशा यह बताओ कि दर्द से लड़ने को वो अकेली नहीं। कोई है जो उसके साथ उसका दर्द बाँट लेगा ❤️
गर्ल्स, यू ऑल आर ब्रेव❤️यूँ तो हर वक़्त कुछ न कुछ बहाना मिल जाता है तुम्हें सोचने का, पर कई कई बार ऐसे भी मौके आते हैं जब लगता है,
कि काश!
काश मैं दिल के जितना करीब हूँ, हकीकत में भी उतना ही करीब होता!
खैर!
हर 'काश' यूँ ही पूरा नहीं हो जाता।
इन सांसो के साथ साथ एक तलाश उम्र भर चलती रहती है, इस काश को पूरा करने की।
वैसे तो हम विडियोकॉल पर हर रोज़ मिलते हैं।
बट, आई रियली मिस यॉर प्रेजेंस अ लॉट।
पर शायद तुम, मुझसे भी ज्यादा मिस करती हो।
है न?
मेरा क्या है, हर रोज़ किसी काम में खुदको व्यस्त कर लेता हूँ। पर तुम!
हाँ आम दिनों में तो तुम भी खुदको व्यस्त रख लेती हो। पर पीरियड्स! उनका क्या? उस समय तो दर्द इतना होता है कि काम भी नहीं हो पाता। सोते जागते बस दर्द!!
आई नो,
तुम मेरे आगे दर्द बयां कर देती हो!
मगर, तुम उस वक़्त मुझे सबसे ज्यादा मिस करती हो,
दिस टू आई नो।
और मैं!
निहत्था सा उस विडियोकॉल पर हर महीने की तरह खड़ा हो जाता हूँ।
और कर भी क्या सकता हूँ।
उस 'काश' को पूरा करने की तलाश अब तक खत्म कहाँ हुई है!
पर जल्द पूरी होगी। है न?
मुझे याद है,
उस दिन भी तुम्हारे पीरियड्स चल रहे थे। दूसरा दिन।
उस दिन तो दर्द वैसे भी बहुत होता है।
उन्हीं दर्द के अनगिनत दौरों के बीच हुए उस विडियोकॉल में तुमने मुझसे एक सवाल किया।
"मुझे सबसे ज्यादा कब मिस करते हो"
"हर वक़्त" मैंने अपना चेहरा उजाले में करते हुए, मुस्कराते हुए कहा।
"पर सबसे ज्यादा कब?" तुम्हारा सवाल अब भी वही था।
"सच कहूं?" मैं पूछा
"हाँ। बेशक!" तुमने मुस्कराते हुए कहा
"जब तुम्हारे पीरियड्स होते हैं। तब।
आई रियली वांट टू हग यू एट दैट टाइम। काश मैं करीब होता तुम्हारे! दर्द कम तो न कर पाता मगर बाँट जरूर लेता" ये कहते हुए मैंने चेहरा फिर रोशनी से दूर कर लिया। शायद चेहरे पर आई उदासी छुपाना चाहता था।
इतना कहने तक, तुमने अपने तकिये को कसकर गले लगा लिया। फिर मैंने भी।
उन्हीं तकियों में, हम अक्सर एक दूसरे को खोजते हैं।
क्योंकि,
वो 'काश' अब भी अधूरा है। इन शब्दों की तरह।
©गुंजित जैन -
अन्न के दाता,जब चढ़े फांसी पर थे
हुआ उपजाव कम,और उजड़े कितने घर थे।
खुद का थोड़ा सा फायदा,और रुलाया किसान को
क्यों दिखाया फांसी का फंदा,अन्न के भगवान को?
जिसके वजह से आज जीवित है पूरी आबादी
उनको क्यों बोला गया आतंकवादी?
हां हिंसा किया उन्होने ,तोड़ फोड़ भी किया
पर अपने फायदे के लिए,क्यों उनका निवाला छीन लिया?
चलो माना गलत किया बहुत लोगो को नुकसान पहुंचाकर
पर उस दर्द का क्या जो मिला उन्हें बिना गलती की सजा पाकर?
क्या दिल्ली की सड़के ऐसी ही लथपथ पड़ी रहेंगी?
कब तक आंखों पर पट्टी,और बस खामोशी रहेगी?
उठो,देखो उन लचारो को
मत बुझाओ उन चमकते तारों को।
देदो उन्हें भी इंसाफ,न्याय के वो भी हैं हकदार,
हस लेने दो उन्हें,कुछ तो सोचो उनके बारे में एक बार।
- सानिया -
mamtapoet 4w
#rachanaprati3 @rnsharma65, @go_win_the_hearts
जात पात से ना किसी मजहब से मेरी पहचान हैं
करता हूँ मेहनत दिन रात खेतों में,
मेरा कर्म ही मेरी पहचान है।।किसान
मेरे गाँव तक पहुँच गयी सड़क
मेरे घर तक आना अभी बाकी हैं
बिजली हर पहर आती नहीं
पानी की शिकायत भी अभी बाकी हैं
बुनियादी सुख सुविधाएं मुझे
कहीं कभी हासिल नहीं
आवाज उठाऊ कभी अपने लिए
क्या किसान इस काबिल नहीं।।
कुछ मांगे क्या हमने उठाई
रोष जो थोड़ा अपना जताया
आतंकवादी ही हमें ठहराया
लाठीचार्ज, पथराव हम पर हो रहे
अन्न मेरा खा के आप बैचेन हो सो रहे
कभी अपने ही खेत पर पेड़ से जो लटका
हारा जो प्राकृतिक आपदाओ से
वो इंसान हूँ, मैं किसान हूँ।।
साथ ना दे सको तो ना सही
पर गलत तो हमें ठहराओ नहीं
जायज ही मांगे रख रहे
फिर भी आप क्यों न मान रहे
हारकर भी न कभी हल जोतना ना किया बंद
मालूम है भूख से नहीं जीत सकता कोई जंग
हर मौसम के दिन और रात
अक्सर खेतों में गुजरते फसलो के साथ।।
©mamtapoet -
mamtapoet 4w
#rachanaprati3
17 March 2021
@rnsharma65, @ruchitashukla, @lovetowrite990, @rangkarmi_anuj@rnsharma65 sir के द्वारा सौंपी गई जिम्मेदारी हेतु इस संचालन को आगे बढ़ाते हुए मैं सभी लेखको से अनुरोध करूँगी की वो ""किसान आंदोलन ""पर अपनी रचनाएँ प्रस्तुत करे एवं इस विषय पर अपने अपने विचारों को काव्य के माध्यम से प्रस्तुत करे। आशा करती हूँ आप सभी को विषय पसंद आयेगा एवं अधिक से अधिक लेखक अपना सहयोग प्रदान करेगें। अपनी रचना के साथ सभी #rachanaprati3 किसान आंदोलन के अंतर्गत प्रस्तुत करे। 19 मार्च शाम 6 बजे तक का समय हैं। संचालन में कोई त्रुटि हो तो क्षमा करे।
©mamtapoet -
rani_shri 4w
TRIGGER WARNING :- STORY OF A WHOLE MENSTRUATION TIME
NOTE- HAVE TIME HAVE A READ. AND READ ONLY IF YOU FIND IT WORTHY. BETTER YOU DON'T COMMENT RATHER THAN THE FAKE ONE..❤❤
It was midnight. The clock was showing 3AM. I felt something uncomfortable which had interrupted my sleeping. I felt like something wet in my lower undies. As I'm habitual, I got my periods was started. And then I get to know about the reason behind the pain that occurred two days ago. I woke up and opened my closet to take out the pad. While changing the pad, I could see the reddish black blood as a wet spot. I attached the pad with my undies keeping the adjustments in my mind. I checked the front, back and the sides that if I had fit the pad correctly or not. Done with this, I came back to the bed and tried to sleep again but the periods pain had came along with it, which was provoking me to wake up and fight with it. The baby sleep had turned out into the temporary insomina. Changing the sides in every five minutes, I was trying and trying...
Any how the time passed and the night turned out into the morning. Doesn't matter if I had remembered the date and was mentally prepared for it but still the pain is pain.The killer pain had increased now which couldn't be removed by any painkiller. But still, I had to fight with it. I woke up for the daily basic routines. Went to washroom, while peeing, I could see the reddish black blood flow on the toilet seat.
The pain and the cramps were increasing by the time. I was clearly feeling the pain in my vagina which was continuously laying me down. The pain and cramps in my pellet,waist,thighs,legs, backs, buts and even in breasts were breaking me. All the inside functions were affecting the outside part of my body. It seemed like someone is spearing the poke inside the uterus and it's walls. I can't have the painkiller as it's not the matter of a single day and having painkillers every month will affect the health. There aren't any perfect ointment to massage over them but some exercises help out in reduction in the pain. The hot water bags help out in this. The period cup, tampons are useful in absorbing the blood. I'm thankful that I don't use leaves and old clothes.
I choose the wooden stool over the bed to sit down. Everytime I check if there is any spot on bed or on my trouser if i sit there. I don't have to touch the auspicious things. I don't have to go to the temple and kitchen. I can't touch pickles as it is said that touching pickle in periods can decay them. I have to wash my clothes by my own.I avoid wearing white clothes because of blood stain. I have to wear a smile everytime to hide the pain. The day passes with the changing mood and different mood swings, but I have to hold them as a secret. I can't share my pain with anyone nor I can talk over it with my father or brother. They say what happened why are you acting weird and sitting like that,but I can't answer them. The periods makes me feel like stranger and untouched at my own house. Or I myself had isolated myself from the crowd. I want to shout but I can't. Any type of tension or stress can affect the date and bleeding. To maintain the hygiene, I have to wash my body part, where the blood comes out from. Everytime I have to wrap the pad into a paper to throw it. Even when i go to buy it, they wrap it into a the newspaper.
I can feel the hot flow of the blood and the thick blood clots. I have to wash every garment that I wore, doesn't matter if for 24 hours or for 24 minutes. I can't eat something sour. I can't eat pickles as it will increase the bleeding. I can't move any where. I feel like lazy. Sometimes I get pimples because of periods. I have to face the orthodox. People with a different mindset say that "you are a girl and periods comes so that you can have a complete rest of 4 to 5 days". But how do I tell them that, "I can have a rest just from daily works but I can't have the rest with all these pains and cramps". I have to check for the leakages and I have to change my pad time to time. Sometimes the pungent smell of blood vanishes the fragrance of pad. The wet pad sticks with the butts and everytime I have to unstick it and bring it back to the position. The night passes in changing the sides but I'm directed to sleep by left side.
Fighting all the night, I move to the second day. I can see the blood spot on the bed sheet. I can see that the bleeding this time was much more than the previous one, that's why it leaked out from the side and it is now on the bed. I have to wash the bed sheet. Earlier I used to cry over this but now I am mature by the mind so I think it's normal but still cursing 'why I am a girl?', shouting and abusing 'why I am a girl?'. I am bound to wash the bedsheet. I am feeling weak but I can't do anything. I call my bestie, she catches me with my voice and ask if I was fine and then I say 'no I am going through my periods'.
She says 'I am also going through it, ok which day?'
'The second day'.
'OMG, it's the second day of mine too'. Laughing over the true best friendship, we are going through it.
Ugh it's itching now and it is itching very badly and irritating me now. Oh no! I just sneezed & I am feeling like the blood is flowing like hell ,does it change into the sea of blood whenever i sneeze? Suddenly my mommy sees a blood spot on my lower that makes me feel embarrassed and she scolds me to change it as soon as possible and says me to take a shower. The bleeding is more than the first day. Also I'm feeling like vomiting and headache. My body is motionless. I use two to three pads a day and sometimes forth one too.
The third day, the bleeding reduced still I'm suffering all the unconditional discomforts. The number of using pads also gets less. This is how these days pass. It's the fourth day when I have to do shampoo to change my impurity into purity. And eat something sweet. The pain has also decreased so as the bleeding. As I know it will bleed less, so I use the small pad instead of the big. I'm free of the periods after the fifth day. A pinch of pain ,I felt on the fifth day as well. My periods are over but just for this month. It will come again and again the every month and I'll have to face and suffer all those things. It's the tragic story of every month that every girl or woman goes through.
So this was the story of periods. It isn't easy the way it looks. It's not easy to bleed for continuous five days and suffer the pain and pressures..
We don't need sympathy, we need some love , hugs and a lot of cares, that's it...
~Shree
PC:- rightful owner
#a_must_read_post_by_shriTHAT PERIOD OF THE "PERIODS"
Written by many people
Explained in many books,
But suffering periods isn't
that easy,the way it looks.
READ THE CAPTION. -
rani_shri 4w
और आपके सामने एक खास सिफारिश पर पेश है ये गाना!! तभी
रेडियो पर गाना बज उठा "तू इस तरह से मेरी जिंदगी में शामिल है, जहां भी जाऊं ये लगता है, तेरी महफिल है", मोहम्मद रफी जी द्वारा गाया हुआ।
"ये गाना याद है?"
"हाँ यही ना?"
"हाँ जो तुमने मुझे डेडिकेट किया था पहली दफ़ा? "
"हाँ ना, ये गाना ना? अरे ये कैसे भूल सकती हूँ, मुझे शुरू से ही ये गाना बहुत पसंद था और जिस दिन तुमने मुझे ये गाना डेडिकेट किया,इस गाने को पसंद करने की वजह और भी बढ़ गई।"
"हमारी पसंद कितनी मिलती है ना?"
"हाँ! शायद तभी हम एक दूसरे को भी पसंद हुए और न्यूटन का सिद्धांत यहां गलत हो गया। हम एक ही प्रकृति के हैं फिर भी एक दूसरे को कितना पसंद करते हैं।"
हम साथ ही इस गाने को गुनगुनाए जा रहे हैं और शायद हमारे दिल भी, जिन्हें भी इस गाने से इश्क़ हो रखा था।
तभी तुम एक शायरी पढ़ते हो मेरे लिए, "तुम याद हो इस कदर हमें जानेजां! कि फ़िर हम कहीं भी जाएं, तुम्हें याद करना नहीं भूलते। कि जब से तुम मिले हो तब से कोई शिकायत ना रही, ना ख़ुद से ख़ुदा से न ज़माने से।"
"अरे वाह!! "
मैंने ज़ोर से तालियां बजाई और काफ़ी देर तक बजाती ही रही, तब तक जब तक कि मुझे ये होश ना आ गया कि शारीरिक रूप में बस मैं वहां थी वो भी बिल्कुल अकेली, जहां अभी अभी तुम थे मगर अब तुम नहीं हो।
••••••••••••••
"क्या ये तुम थे? "
खामोशी ....
"कुछ पूछा मैंने? अभी तो सब कुछ कह रहे थे अब चुप क्यों हो गए? क्या तुम आए थे हकीकत में? मुझसे बात करने को? क्या ये मेरा वहम था? क्या तुम्हारी आवाज़ का सुनाई देना मेरा वहम था? "तभी अचानक से मेरी दोतरफा बात एकतरफा हो गई। समझ नहीं आया कि वह एकतरफा ही थी जो एकतरफा ही रह गई या वाकई तुम आए थे? क्या अब तुम सिर्फ मेरी वहम में हीं आते हो? हकीकत में जब तुम्हें बुलाती हूं तो तुम आते क्यों नहीं? क्यों सिर्फ एक वहम तक ख़ुद को मुझसे जुड़े रखा है? क्यों मेरे होश संभालते ही तुम गायब हो जाते हो?
क्या मुझसे किया वादा निभा रहे हो कि जब तक जिंदगी है तब तक सामने रहोगे फिर चाहे वह हकीकत हो या बस एक वहम?
बोलो अब क्यों नहीं बोल रहे? थोड़ी देर पहले तक तो मेरे साथ गुनगुना भी रहे थे ना? तो अब खामोशियों की चादरों को ओढ़ कर क्यों बैठ गए? क्या मेरे होश आते ही तुम्हें भी होश आ गया कि हकीकत में तुम्हें मुझसे अब रूबरू नहीं होना है क्योंकि हकीकत में तो तुम बहुत पहले ही मुझे अलविदा कह चुके हो?
क्या तुम मुझे यह एहसास करा रहे कि मैं जहां भी जाऊं वहां तुम्हारी महफ़िल रहेगी फिर चाहे मैं अपने अंतर्मन में, खुद में ही क्यों ना खो जाऊं, तुम वहां भी चले आओगे अपनी महफिल लेकर। ऐसे ही कई सारे सवाल हैं तुमसे। अगली बार आओगे जब मुझसे मिलने, तो पूछूंगी जरूर।
ओह!! तो मैं ख़ुद से बातें कर रही थी। ख़ुद को तुम बनाकर या शायद तुम ही आए थे मेरा अंतर्मन बनकर। लेकिन वो शायरी जो तुमने अभी पढ़ी? वो? ओह ये तो किसी पुरानी चिट्ठी के बोल थे, तुम्हारे ही लिखे हुए।
दो बार मैंने ख़ुद से बातें कीं। एक बार तुमने जवाब दिया एक बार तुम खामोश रहे क्योंकि पहला वहम था और दूसरा हकीकत।
मुझे शुरु से ही ख़ुद से बातें करने की आदत थी जो कि मुझे बहुत अच्छी लगती थीं। अब यही आदत न जाने क्यों मुझ पर ही भारी पड़ने लगी है। अब ख़ुद से बातें करते हुए मैं ख़ुद नहीं रहती, मेरा वह रूप तुम बन जाता है और फ़िर जब हकीकत में आती हूं तो याद आता है कि तुम तो बस मेरे अंदर हो और मैं अपने अंतर्मन में बसे तुमसे ऐसे ही बात किये जा रही।
मैंने ख़ुद को संभाला। बिखरे हुए आंसुओं को एक जगह समेटकर होठों की मुस्कान में बदला और खुद को वहीं छोड़कर निकल गई।
रेडियो पर अभी भी वही गाना बज रहा था "तू इस तरह से मेरी जिंदगी में शामिल है"। -
sparkling_ 4w
बरसात का मौसम शुरू ही था,सब अपने में मगन। कुछ को घूमने की पड़ी थी कुछ चाय की चुस्कियां मन ही मन लगा रहे थे,किसी कोने में कोई ख्यालों में डूबा था तो किसी को बूंदों के साथ फोटो खिंचवाने का इंतजार था।
उसी बीच एक वो शख्स जो आंसूओं से बातें कर रहा था और थोड़ा गुम सुम भी था।उसे ना किसी के बातों में दिलचस्पी थी और नाही किसी चीज में।
वो बस हाथ में किसी को निहारते हुए गुम सा कोने में बैठा था।
तभी रेडियो बजा और शुरू हो गया "ये मौसम की बारिश...ये बारिश की बूंदें" और वो जो गुम सूम सा था उसके आंखों से मानो बाढ़ ही छूट गई हो!
वो सहम सा गया और क्यूंकि उस संगीत में कुछ ऐसा था जिससे शायद वो जीने की सारी वजह भूल जाता था।
वो फिर से चला गया उन्ही पलो में जब उसके आंसूओं के लिए रुमाल उसका इश्क़ था...जब उसके। खामोशी के लिए एक शोर उसका इश्क़ था और सूखेपन के लिए वो बारिश उसकी इश्क़ थी।
जीने लगा उन्ही लम्हों में जब वादा किया था हाथ कभी ना छोड़ने का और जब कसम खाई थी किसी का दिल ना तोड़ने का।
महसूस करने लगा उन्ही बारिशों को जिन बूंदों के बीच बहती ठंडी हवा और सुनसान सड़क पर वो दोनो।
माहौल इतना खूबसूरत था कि मानो गानों की लेखनी आस पास नाच रही हो और समय ठहर सा गया हो।
वो पल बस उन्ही दोनो के लिए बना था, उसी बीच ज़िद्द हुई एक चाय पीने की।मन तो नहीं था लड़के उसे छोड़ कर जाने का पर ज़िद के आगे क्या ही होगा।
वो दौड़ते गया और जब आकर देखा तो उसका इश्क़ कुछ अजीब सा होगया था।
वो फटे कपड़ों के साथ रोते रोते बेंच पर बैठी थी और उसे देखते ही लड़का मानो पागल सा हो गया।
उसने झटपट उसे गले लगाया और दोनो ही रोने लगे।
वो खूबसूरत रात एक डरावनी रात सी बन चुकी थी और वो बेहया अवारे जो सड़क पार किए सुकून से जा रहे थे मानो दुनिया की सारी खुशी मिल गई हो।
अब भभकती हुई आग मानो उन्हें जला कर राख है कर देती।
पर वो उसे छोड़ कर जाता भी कैसे...
वो उसे तो समझा रहा था पर खुद को सम्भाल नहीं पा रहा था।
ना जाने कैसे एक पल के लिए उसने उसका हाथ छोड़ा और तभी कुछ खून के छिटे उसके चेहरे पर आए।चौंक कर उसने देखा तो उसका इश्क़ अब लाश बन चुका था।
बीच सड़क पर बारिशों के बीच उसका हाथ पकड़ पागलों की तरह चिल्लाया जा रहा था और वो गाना अब भी ख़तम नहीं हुआ था "ये बारिश की बूंदें तुझे ही तो ढूंढे"।
और तब से वो बारिश कुछ ऐसी चीज बन चुकी थी जिसे वो जानता था पर अब जानता नहीं।
©सानिया -
सौरभ
Sportperson:- मुझे game खेलना बहुत पसंद है जैसे कुछ game का नाम है लुका छिपी। लुका छिपी मुझे बहुत पसंद है।
ये सबसे ज्यादा तब खेलता हूं जब मेरे घर कोई रिश्तेदार आ जाए।
जितने दिन तक वो लोग रहते है उतने दिन तक मैं छिपा रहता हूं।बस जब वो घर छोड़ कर जाते है तो मैं उनके सामने आ जाता हूं जो की मैं लालची नही हूं तो उनसे बोल देता हूं कि मुझे सिर्फ पांच सौ रुपया का एक ही नोट चाहिए दो नोट की जरूरत नहीं है।
Loving family:- मेरी फैमिली मुझे बहुत ज्यादा प्यार करती है।कल की बात ही है एक कांड की वजह से मेरी पिटाई मेरे पूज्य पापा जी डंडे से कर रहे थे तो मेरी मां ने गुस्से से डंडा पकड़ लिया।बोली "आज बुधवार है ,आज तो मेरी बारी थी इस नालायक को पीटने की "। उधर दीदी रो रही थी की मेरी बारी ही नहीं आती हफ्ते में किसी दिन। इतना प्यार करते है मुझे घर वाले
Bitching:- मुझे चुगली और चुगली करने वाले दोनों से सख्त नफ़रत है।परसों की बात है मेरे दोस्त बात कर रहे थे कि अभिनव का शिवानी के साथ चक्कर चल रहा है,मुझे गुस्सा आ गया उन दोनो पर मैंने बोला " अरे अभिनव का शिवानी के साथ साथ रितिका और प्रियंका के साथ भी चक्कर चल रहा है"।मुझे सख़्त नफ़रत है चुगली करने से।
Truth:- मैं सच बोलने से कभी नही डरता।कल मां ने मुझसे पूछा
"अरे इस नसपीटे मोबाइल के अलावा इस दुनिया में और कोई चीज़ जरूरत है तुझे?" मैंने बोला " हां उसका चार्जर" ना जाने मेरी मां ने मेरी पिटाई क्यूं की।
Patience:- मेरे पास ढेर सारा धैर्य है।बचपन से अपने रिश्तेदारों से पैसा इक्कठा करके मां के पास जमा कर देता हूं और मां बस यही कहती आई है की कल तुझे पैसा दे दूंगी।लेकिन ये कल कब आएगा ?? मेरे 24768₹ मुझे कब वापस मिलेंगे??
Traveller: मुझे घूमना बहुत पसंद है क्लास fifth से ही मैं classes छोड़ कर भाग जाता था और बाहर साइकिल लेके इधर उधर घूमता था। मेरी वजह से ही स्कूल की दीवार ऊंची करनी पड़ी थी।और ये घूमने का सिलसिला इंजीनियरिंग तक चल रहा है
P.S. मेरे मां ने मेरी लिखी हुई कहानी पढ़ ली है तो आपके शहर में कोई room खाली हो तो बताना।
