#rachanaprati169
ममता जी का मुझे संचालन देने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद...
जैसे कि हम देखते हैं आज के इस आधुनिक competition युग में हर क्षेत्र एक इम्तिहान है और हमे हर चीज़ के लिए तैयार रहना पड़ता है... तो...
#rachanaprati169 के लिए विषय है -
"पेपर / Exam/ इम्तिहान"
©gannudairy_
gannudairy_
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gannudairy_ 2w
#rachanaprati169
विषय - पेपर/Exam/इम्तिहान
@anusugandh @mamtapoet @_do_lafj_ @alkatripathi79 @jigna_a -
gannudairy_ 3w
तुम्हारा प्रेमी होने का मोह नहीं हमे...
हम बिना रिश्ते के भी प्रेम निभा लेंगे..!!!
#rachanaprati168
@anusugandh @mamtapoet @_do_lafj_ @alkatripathi79 @jigna_a✍
हमने एक हमदर्द गले लगाया..
पर वो हमदर्दी अधूरी थी..,
उससे बस मैं तुम का हम ही नहीं मिला..
पर दर्द तो पूरा था...!!!
©gannudairy_ -
gannudairy_ 3w
#rachanaprati168
@mamtapoet जी विषय बहुत खूबसूरत है...
इस विषय के साथ इस कविता के माध्यम से मैं आपको दुनिया की सच्चाई बताना चाहता हूँ... दुनिया का साथ सिर्फ श्मशान तक है... किसी को अगर फर्क पड़ता है तो वो हैं हमारे प्रियजन बस... यही दुनिया का असली दर्द है कि सब मतलबी हैं सबको सिर्फ मतलब से मतलब है वो समय नहीं रहा जब सब दर्द में साथी हुआ करते थे....
आशा है आपको ये मेरे सपने का दर्द पसन्द आयेगा.. ♥️✍
आ रही थी लंबी साँसें रुक रही थी धड़कने मेरा जिस्म दर्द की हद उतार गया,
हुआ सपने में ऐसा कि रब्बा तू कर कमाल गया..
वो जो बुलाए नहीं आए हर कोई मुझे देखने आया था,
कोई खोले मुँह कोई गंगाजल पिला रहा था,
आ रही थी गाड़ियों की आवाज और कोई खरीद के लकड़ी ला रहा था,
था बहुत गहरी नींद में मैं भाई मुझे पकड़ पकड़ जगा रहा था,
फिर लगी जगाने बहन बोली भाई अभी और सोएगा,
माँ ने कहा फूंक मत्त देना मेरे लाल को बहुत दर्द होएगा,
नहीं थे याद वो नाम पुराने सब ले दिए,
किया गजब ओढ़ा के कफन मार के फूल उठा पांच फुट सारे गाँव के झूले दे दिए,
जिसके नाम करी मोहब्बत उसका ताज लुट रहा था,
शायद पगली बहुत रोई थी आंखों में लाल सूरज उग रहा था,
फिर शरीर ने पकड़ी गर्मी कहाँ निकलने का सोझ था,
टपक रहा था घी में कुछ लकड़ियों का बोझ था,
था कुछ घण्टे का खेल सारा करके रस्म मुहँ मोड़ गए,
जोड़ के हाथ मांग के दुआ तपती राख में तड़पता छोड़ गए,
तू भी उपर बैठा मुस्करा रहा रब्बा माना तेरी दुनिया में तेरा लिखा होएगा,
कभी आ के देख कलयुग में तू भी रोएगा..!!!
©gannudairy_ -
gannudairy_ 3w
Satnam Shree Waheguru.. ♥️
@anusugandh @mamtapoet @_do_lafj_ @alkatripathi79 @jigna_a
Complete Believe in God doesn't mean Superstition. There is Power beyond Science.
By changing Picture or Lyrics of Prayer.. Power doesn't Change.
It remains the same.
So just Pray the Power not the Picture.
©gannudairy_ -
✍
ऐ बालिग-ऐ-हिन्दुस्तान पूरा असमान नापना है तुझे...
यूँ झरोखों में रील बनाने पैदा नहीं हुआ तू..!!!
©gannudairy_ -
gannudairy_ 4w
तुम्हें पाने की हर आखिरी कोशिश करूंगा..
तुम्हें किस्मत के हवाले नहीं छोड़ सकता..!!
@anusugandh @mamtapoet @_do_lafj_ @alkatripathi79 @jigna_a
धागा खत्म हो गया मन्नतों में तुझे मांग कर..
धड़कने बाँध कर आया हूँ अबकी बार तेरे नाम पर..!!
©gannudairy_ -
हर कोई बोलने का शौकीन है और मैं बस लिखता जा रहा हूँ,
हर कोई जीतना चाहता यहाँ और मैं बस सीखता जा रहा हूँ,
ये दुनिया सबूत मांगती है हर बात का और मैं बस कोई झूठी खबर ढूंढ रहा हूँ,
दुनिया पैसे कमाना चाहती है और मैं बस जिंदगी में सबर ढूँढ रहा हूँ..!!
©gannudairy_ -
gannudairy_ 4w
@soonam mam ने ये विषय दिया "खूबसूरत" उनका आभारी... मैं खूबसूरत "मानवता" के बारे में लिखा है...
मानवता को हम भूल चुके हैं बस धर्म जात भाषा के भेदों में फस के रह गए.. आशा करता हूँ पसन्द आयेगा..!!!
#rachanaprati166✍
साम्राज्य छोङ बुद्ध ने कहा- मानवता हित और सेवा सबसे ऊपर हम भूले, विश्व में फैला बुद्धत्व।
ईशु ने दिया विश्व शांति, प्रेम और सर्वधर्म सम्मान संदेश।
कुरआन ने कहा जहाँ मानवता वहाँ अल्लाह।
गीता का उपदेश-" कर्मण्यवाधिकारस्ते मा…… "
– निस्वार्थ कर्तव्य पालन करो।
गुरु नानक ने भी कहा -
"एक नूर ते सब जग उपजया"
कर्ण ने सर्वस्व और गुरु गोविंद ने किया सारा वंश दान,
कितना किसे याद है, मालूम नहीं।
मदाधं मानवों की पशुवत पाशविकता जाती नहीं।
मानव होने के नाते, हमारे पास ज्ञान की कमी नहीं।
बस याद रखने की जरुरत है, पर हम ङूबे हैं झगङे में –
धर्म, सीमा, रंग , भाषा……..
हम ऊपरवाले की सर्वोत्तम कृति हैं !
कुछ जिम्मेदारी हमारी भी बनती है
©gannudairy_ -
gannudairy_ 4w
बस थामे रहो तुम हाथ मेरा,
हम बताएंगे जमाने को इश्क़ की हद क्या होती है..!!
@anusugandh @mamtapoet @_do_lafj_ @alkatripathi79 @jigna_a
मैं वक्त निकाल के नहीं वक्त को एक तरफ निकाल के फिर तुझे मिलूंगा,
कि जब हम मिलेंगे तो वक्त की हमे परवाह ना हो,
मैं बस बेपरवाह सा होके फिर तुझे मिलूंगा,
हम बात करें तो बात खत्म हो जाए पर वक्त खत्म ना हो,
सच्ची बात ये मेरी जान कि जब हम मिले तो मुझे ये ना कहना पड़े कि मैं फिर मिलूंगा..!!!!
©gannudairy_ -
gannudairy_ 4w
बैसाखी का त्योहार हो,
आनंदपुर लगा दरबार हो,
हो एक शीश की जरुरत आपको,
मुख शेर जैसी ललकार हो,
मेरे सतगुरु बाजां वाले,
मेरा सिर तेरी तलवार हो...!!!
आप सभी प्रियजनों और उनके प्रियजनों को बैसाखी की लाख लाख बधाईयाँ.. कुछ पाठकों को इस दिन का इतिहास शायद ना पता हो तो मैं आपको कुछ अवगत कराना चाहता हूं इस गीत से.. ये गीत Sukshinder Shinda जी का है जो कि बचपन में मैं बैशाखी पे गाया करता था स्कुल में!!
1699 जब हिन्दुस्तान की धरती औरंगजेब के जुल्मों और जात पात के ऊँच नीच के भेदभाव से कांप रही थी जब दसवें गुरु श्री गुरु गोबिंद सिंह जी ने निर्णय लिया कि मैं एक अलग पंथ शुरू करूंगा जिसमें ऊँच नीच का भेद खत्म हो जाएगा और वो पंथ शेरों से भरा होगा जो जुल्मों के खिलाफ लड़ेगा.. तो उस दिन गुरु साहिब के पाँचवे पुत्र खालसा का जन्म हुआ..
आनंदपुर की धरती पर गुरु साहिब ने बड़ी संख्या में संगत बुलाई और तलवार लेकर कहा मुझे 5 सिर दान में दो.. तो जिनके नाम गीत में हैं उन 5 सूरमाओं ने शीश दान किए और वो 5 प्यारे बने... उनको गुरु साहिब ने अमृत पिलाया और फिर उनसे भी पिया और ऐसा करके ऊँच नीच का भेद खत्म कर दिया.. और सबको एक नाम सिंह और कौर से नवाजा..
आप सभी को बैसाखी और खालसा सृजना दिवस की बहुत बधाई... ♥️
आपको एक और सलाह चाहता हूँ मैं अक्सर कहता हूँ युवा पीढ़ी को इतिहास का नहीं पता कि हम किनके वारिस हैं और हम कहाँ जा रहे हैं तो मैं रोज किसी भी शख्सियत की कहानी पोस्ट करा करूंगा.. आप सभी को ये सुझाव कैसा लगा कमेन्ट करके बताना जरूर.. धन्यवाद!!
@anusugandh @mamtapoet @_do_lafj_ @alkatripathi79 @jigna_aबैसाखी
सतगुरु ने संगत बुलाई होया इकट्ठ था बड़ा,
सन्न 1699 दिन था बैसाखी वाला,
5 को चुना 80 हजार से,
खालसा प्रगट किया तलवार की धार से..
1. "दयाराम" आके कहते मेरे पे दया कर दो,
सिखी से सिर नहीं महँगा उतार के एक तरफ धर दो,
दिखती है कोई खेल न्यारी आपकी ललकार से,
खालसा प्रगट किया तलवार की धार से..
2. आके फिर "धर्मदास" ने चरणों में शीश नवाया,
धर्म पे धर्म कमा दो प्यार से अरदास जताया,
टपक टपक पड़े नम्रता आपके सिख के किरदार से,
खालसा प्रगट किया तलवार की धार से..
3. "हिम्मतराय" हिम्मत मारी बड़ा सा करके जिगरा,
सतगुरु के चरणों में बैठ कहता सिर हाजिर मेरा,
एक दिन तो जाना होता अखिर संसार से,
खालसा प्रगट किया तलवार की धार से..
4. "मोहकम चन्द" तोड़ के आया मोह के सब फंदे,
मेरे से पहले आ गए उनके भाग्य थे चंगे,
मुझे भी जीवन बख्श अपनी तलवार से,
खालसा प्रगट किया तलवार की धार से..
5. "साहिबचन्द" साहिब के आगे बैठ गया पकड़ के पल्ला,
थोड़ा सा देर हो गया उतार दो सिर मार के हल्ला,
मिलते हैं ऊंचे रुतबे आपके दरबार से,
खालसा प्रगट किया तलवार की धार से..
पांचो से अमृत लिया पांचो को आप पिलाया,
कहे आनंदपुर की धरती अलग इतिहास रचाया,
गीदड़ों को शेर बनाया,
सबको एक सिंह नाम के धागे में लगाया अलग अलग नाम से,
खालसा प्रगट किया तलवार की धार से..!!!
©gannudairy_
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बचपन
पांव की पद चिन्ह है यह
या है माटी,धूल की बस।
यादों का है सुनहला पिटारा
या खिलौना खेल का बस।
झांक बचपन में जो देखा
कीमत उसकी मुट्ठी भर बस ।
पर जो सोचा आज फिर यह
बेशकीमती हर एक कोना।
दोस्तों के, जो संग बीती
शाम थी वह अपरिमित निराली।
विघ्न होता रात ही बस
सुबह फिर अनूठी बातों वाली।
ना फिकर कब पहर दोपहर
बीत जाती साथ माली।
गर जो लौटे शाम को घर
फिर उछल कूद वहीं डाली डाली।
काश !लौट आए वो बचपन
साथ यारों वाला वो लड़कपन।
बात बस स्वच्छंद हो और
लौट आए रिश्तो में वो अपनापन ।
सुबह की वही धूल माटी
चूल्हे की वही सोंधी रोटी।
लौट आओ साथ लेके
पल वही कोषों उमंग वाली।।
©camyyy -
बचपन एक याद
बचपन को भूलना क्या इतना आसान
वो भी क्या दिन थे दिल था नादान
गुड्डे गुड़ियों की शादी रचाना
सबके साथ मिलकर वह खिलखिलाना
ना भूले हैं अबतक ना भूलेंगे कभी तक
यादों के सिक्के खनकते हैं आज तक
स्टापू खेलना और गिट्टे बजाना
पूरा दिन मस्ती में बिताना
हाथ होंगे सख्त चूड़ी भी ना आएंगी
मां का प्यार से यह सब समझाना
क्या याद करूं क्या भूलने की बात करूं
हर छोटी छोटी बात पर बचपन तुझे याद करूं
पता है ना लौटा है हर बीतने वाला पल
बस अब यादों में ही जी लो जो बीत गया पल
बचपन की यादों के अब सपने सजाते हैं
चलो बचपन को अपने बच्चों में लौटा लाते हैं
सुनते थे दादी नानी के अजूबे से किस्से
जिंदगी के बन गए आज खूबसूरत हिस्से
उन हिस्सों में फिर पल-पल दिन बिताते हैं
चलो बचपन की यादों को फिर से लौटा लाते हैं
©anusugandh -
बचपन के वो दोस्त
बचपन को सोचू तो कुछ दोस्त बहुत याद आते हैं,
कुछ है खुशियों के खजाने तो कुछ आंखे नाम कर जाते है,
रिश्तों को निभाने की चिंता न थी,
न परवाह दुनियादारी की थी,
दोस्ती में थे सभी रिशतें और स्कूल ही पूरी दुनिया थी,
दोस्त यदि नाराज हुआ तो गुमसुम मेरा जहा हो जाता था,
उसे मनाने कभी अध्यापक तो कभी पूरा परिवार खड़ा हो जाता था,
छोटी छोटी बातों में नाराजगी,और हर लम्हे में चेहरे पर हंसी थी,
किसी की मुस्कान गजब थी ,किसी की आवाज में खनक थी,
किसी में लीडरशिप की कशिश थी,
किसी की हर बात में कसम थी,
किसी के टिफिन की महक जोरदार थी,
चित्रकला में माहिर कोई तो कोई अभिनय,नृत्य में था निपुर्ण,
सब मे अपनी अपनी ख़ूबी, हर एक था किसी न किसी में प्रवीण,
जब भी किसी प्रसिद्ध व्यक्ति को देखते वहीं बनने के ख्वाब हम देखते,
स्लेट ,पेंसिल ,ब्लैकबोर्ड के सिवाय श्वेत श्याम न कुछ भी,
सपनें थे रंगीन और वो दुनिया थी बड़ी हसीन,
।
©mamtapoet -
रचनाप्रती
सभी का तहे दिल से शुक्रिया की आपलोगो ने अपना कीमती समय निकालकर ,इतनी सुंदर रचनाए प्रस्तुत की।
सभी को बहुत बहुत धन्यवाद
स्पेशल थैंक्स @anusgandh ma'am & @kamini_bhardwaj1 ma'am को जो उन्होंने मेरा invitation accept Kiya aur बचपन विषय पर लिखकर हमे कृतार्थ किया।
Thanku so much ma'am
@gannudairy_
@psprem
@satender_tiwari
@aryaaverma12
@khaire_patil
को शुक्रिया की उन्होंने इस रचनाप्रति में participate किया।आपलोगों की बचपन पर लिखी कविताएं इतनी अच्छी थी की दिल को छू गई ,और बचपन की याद दिला गई।
बेहद उम्दा प्रस्तुति थी आप सब की।
आज के दो विजेता जिनकी रचना उत्कृष्ट रही उनके नाम है
@gannudairy_
@aryaaverma12
आप दोनो की रचनाए लाजवाब थी
मैं @rachanaprati174 ke sanchalan ka bhar @gannudairy ko सौंप रही हूं।
धन्यवाद
©camyyy -
~~
जब तुझे ले जाती हुई बाराती लारियाँ निकलेंगी,
कुछ नहीं बस मेरे मुहँ से गालियाँ निकलेंगी!
कई ग़मों के तहखाने खुल जाएंगे मेरे ही भीतर,
मेरी जेब से उन तहखाने की चाबियां निकलेंगी!
ग़ैर ख्यालों में भी मैंने तुझे कभी आने न दिया,
किन हाथों से तेरे कानो की बालियां निकलेंगी!
©ajit___ -
बातें
बड़ी तकलीफ होती है रात में ये सोचकर
कोई था जो कहता था
अभी सोना नहीं पगली
अभी बहुत सारी बातें करनी है
©tejasmita_tjjt -
#rachanaprati
जिगना दीदी का तहे दिल से शुक्रिया
की उन्होंने मुझे संचालन की जिम्मेदारी सौंपी है।
आज का विषय है-: बचपन - क्या भूलूं, क्या याद रखूं
©camyyy
सबकी सहभागिता की उम्मीद है ।
सहाययुक्त
समय सीमा 14 मई रात 12 बजे तक । -
तबियत नासाज़ चल रही है। हर व्यक्ति का हृदयपूर्वक धन्यवाद मेरे आमंत्रण का मान रखते हुए लिखने के लिए। लंबा विश्लेषण नहीं डाल रही। सबका लेखन उत्कृष्ट था।
आज के दो विजेताओं के नाम है s ram verma और cammy दोनों की रचनाएं विषय के अनुरूप और लाजवाब थी। मैं संचालन का कार्यभार cammy जी को सौंप रही हूँ। धन्यवाद -
anusugandh 5d
आहार
विपरीत आहार गर ना खाओगे
बिना बात बीमारी ना बुलवाओगे
खाओ शुद्ध घर का बना ही भोजन
तभी स्वस्थ निरोगी काया तुम पाओगे
©anusugandh -
मां को छांव चाहिए थी,
मां ने रोपा एक बरगद।
पिता जी को छत चाहिए थी
उन्होंने बनाया घर।
मां दिनभर तपती रहती हैं रसोई में,
कितना भी करलू मैं बरगद की छाया वहां तक जाती नहीं।
घर में भी पिता जी महीने में एक आध दिन ही रह पाते हैं।
छोटा हूं न, समझ नहीं हैं,
मैंने उगाया गुलाब,
मां जिसे भगवान को चढ़ाती है।
और पिताजी भी कभी कभी गुलाब तोड़कर
मां के बालों में लगाते हैं।
मिल जाती हैं फ़िर मां को और
पिताजी को एकसाथ एक छत ,
छाया भरी।।
©mamtapoet
