आतंकवाद
किसी को मारकर,
जन्नत मिलतीं नहीं,
ये बात तुम भी जानते हो,
कितने बड़े ज़ाहिल हो सब,
जो क़साब को अपना मानते हो,
बैर रखना कोई मज़हब शिखाता नहीं,
किसी को दुःख भी पहूँचाना,
शीख नहीं किसी गीता या कुरान का,
बस एक मानव जाती हैं,
एक इंसानियत ही धर्म हर इंसान का,
अगर प्यार हैं आतंकवाद से,
तो जहाँ इनकी पनप हैं,
वहीं जाकर बस जाओ न,
यहीं का खाकर इसी को झूठा बतलाओ न,
तुमको अलक़ायदा जैसो से लगाव हैं,
पसंद करतें हो मासूमों को मारने वाले हैवान को,
अपनों गैरों का फ़र्क़ नहीं,
जाने कैसे नादाँ तुम इंसान हो,
किसी भी धर्म को मानो,
इस बात से कोई मनाही नहीं हैं,
पर धर्म के नाम पर आतंकवाद,
ये पाप है कोई बेगुनाही नहीं हैं,
मुझें बुरे लगते हैं आतंकवाद लोग,
औऱ उन जैसे विचार रखने वाले,
क्योंकि मुझें,
इंसानियत औऱ हैवानियत का फ़र्क़ पता हैं,
तुम्हें अच्छे लगतें होंगे,
क्योंकि,
सच समझ न पाना तुम्हारी इकलौती ख़ता हैं।
©amar61090