जानना चाहती हूँ
©nehapriyadarshini
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nehapriyadarshini 108w
शोषित, उत्पीड़ित, वंचित, परवश एवम् दीन
स्त्रियों पर लिखे गए साहित्य
उन तक कभी पहुँचते ही नहीं।
ऐसी स्त्रियाँ नहीं जानतीं
इन शब्दों के अर्थ तक;
वे खुशियों की प्रतिमाएँ होती हैं
बिम्ब होती हैं अबोधता का।
स्वयं पर हुए अत्याचार को वे दिन
एवम् रात के होने जैसी सामान्य
घटनाएँ मानती हैं।
और विरासत में अपनी बेटियों
और अपने परिवेश को भी देना चाहती हैं।
ऐसी स्त्रियाँ तिलमिला उठती हैं
विरोध के स्वर से ही!
और विरोधी स्त्रियों की सबसे बड़ी शत्रु
भी ऐसी महिलाएँ ही होती हैं।
मैं सोचती हूँ फिर स्त्री सशक्तीकरण
पर लिखने वालों ने किसे सशक्त किया है?
उन्हें जो स्त्री अंगों पर बनी गालियों को
पढ़कर स्वयं को सशक्त समझती हैं
या उन्हें जो पुरुषों के चरित्र की परीक्षा
के उद्देश्य से बलात्कार की योजना
बनाती हैं।
या शायद उन्हें जो बेशर्मी को बेशर्मी
ना कह कर उसे धारण करना सशक्तीकरण
की दिशा में अपने पग मानती हैं।
क्योंकि शोषित, उत्पीड़ित, वंचित, परवश एवम् दीन
स्त्रियाँ तो आदि काल से अपने स्थान पर ही विद्यमान है।
#poetry #women #tellmeabout
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