"अभी सहर भी है"
है वक़्त का टुकड़ा कोई, काली ये रात पहर ही है
तू हँस के उठ चल दे यूँ ही, आगे अभी सहर भी है
ए वक़्त तू मौका तो दे, हूँ बाक़ी में अब भी कही
बूँदे मुझी में है बसी, और मुझमें ही लहर भी है
नज़रे झुकी है बेशक़ अभी, राहों में हूँ ठहरा हुआ
सन्नाटे देखें हो मेरे, तो देखना अब कहर भी है...
"लफ्ज़-ए-लव"
©thepoeticvyas