उत्तरजीविता की होड़ में भागती मैं
विलीन होती जाती हूँ
गोधूलि की बयार में।
मेरी अलक से उलझती टहनी
झर देतीं रात रानी के फूल
मेरी झीनी चुनरी में निमेष-पूर्ण आँखों से
मुस्कुराते हुए,
मेरी सुवासित चुनरी रात-रानी को समेट
हो जाती और अधिक सफेद।
यथार्थ की शोध में समाधिस्थ तुम
परिणत होते जाते हो
तिमिराच्छन्न के जल प्रपात में
जिसकी नीरव प्रवाह से टकराती शशि किरणें
पहिरा जाती हैं तुम्हें रजत शेखर।
तुम्हारे कुर्ते की बहोली
मद्धिम लहरों के टकराव से सरक कर
कलाई पर आ रुकती है,
और रोक देती है तुम्हें शोध में आगे बढ़ने से।
रजनी के भींग जाने से ठीक पहले
तुम ठहरा देते हो खुद को
शिलाओं के मध्य उतर कर,
जिसे देख व्याकुल नभ बुला लेता चँद्र को और करीब
कि भींगने लगती रजनी और जल्दी!
बढ़ती आर्द्रता से भारित मेरी चुनरी
रुक जाती शिलाओं के टेक पर कुछ क्षण विश्राम हेतु
कि अचानक!
गिरने लगते रात-रानी के पुष्प
उन्हीं शिलाओं की गोद में ,
जैसे तुम्हारे माथे पर थपकी दे
सार्थक हो जाने को आतुर हो उनका जीवन।
मैं अमूक, एक टक देखती रहती
तुम्हारे और पुष्पों की परस्पर क्रीड़ा,
कि तभी अपनी बाध्यता तोड़ तुम
घूमने लगते अपनी प्रवाह में पुष्प-माल समेटे
मेरे इर्द गिर्द।
सारे दिन की अलसायी मैं,
मूँद लेती हूँ आँखें तुम्हारी बहती बहोली के सिरहाने,
उषा की बजती धुँधली सीटी
जगा जाती मुझे पौ फटने से थोड़ा पहले।
मैं , नींदाई आँखों से अवाक
देखती रह जाती हूँ मेरी सफ़ेद चुनरी
जिसपर रात भर की साधना से
तुमने गढ़ दिए रानी के उजले पुष्पों को
रंग-बिरंगी कढ़ाई बना कर!
हे संगतराश!
कहो? कल पुनः रुकोगे ,
मध्य शिलाओं के?
~ अपर्णा शाम्भवी
#paki
244 posts-
aparna_shambhawi 38w
12 0 1अनंत
हमने बचपन से जाना
दो समानांतर रेखाएँ
मिल जाती हैं अनन्त पर जा कर,
अनंत पर ही रुकती है
उस वृत्त की त्रिज्या को ढूँढती सुई
जिसकी परिधि समतल पर आ मिलती हो।
बिना विलंब हमने भी
उसी बुद्धिमत्ता से
बना दिया रेखाओं एवं प्रेमियों को
परस्पर उपमान-उपमेय,
हक़ीकत से परे उपरोक्त बताई बातों को सच मानकर।
अनंत मानव शब्दकोष का सबसे भ्रामक शब्द है।
इसे गढ़ने वाले ने नहीं बताया था
कि अनंत पर जा कर भी
ये रेखाएँ मिलने की प्रतीक्षा करती हैं
अगले अनंत की!
विवहोपरांत सिन्दूरी रेखा को ही
बता दी जाती है वह परिधि
जिसका केंद्र वास्तव में
यौतुक में आई वस्त्राभुषणों में निहित होता है।
हम बिना परखे बातें मान लेने के आदी हैं।
हमने नहीं की कोशिश अनंत ढूंढने की।
यदि होती,
तो अनंत मिलता वृद्ध नदी की तट पर
जहाँ अपना अस्तित्व त्याग
मिलती है सरिता सागर के ख़ार से,
परंतु सागर नहीं मिलता,
मिलती है उसी नदी की थकी अस्थियाँ
जो ज्वार सह सह कर धँस चुकी है मिट्टी में।
ढूंढने पर उस वृत्त के केंद्र को
मिलती एक पिता की जेब
जिसकी त्रिज्या पर टिके कुछ स्वप्न समतल ही प्रतीत होते हैं।
इसीलिए
तुम आना तो इन विभिन्न भ्रामकों का
क्षय करते हुए आना,
कि तुम्हारे आने के बाद
कुछ भी शेष न बचे मेरी
काव्य-कुशलता दर्शाने को,
ताकि बचाए हुए समय में
मैं ढूँढ सकूँ एक नए अनंत को
जिसके तट पर बैठी मेरी कविता
आँखें मूँद, सर टिकाए बैठी हो
तुम्हारे प्रेम के कंधे पर।
~ अपर्णा शाम्भवी16 0 2aparna_shambhawi 51w
रात भर चौखट पर बैठी
अलख जगाती, अमंगला
तुम्हारे प्रेम गीत से व्याकुल इस शहर की नदियाँ
मार्ग बदल लेतीं अपना।
यहाँ की गलियों में बजती शहनाई,
नहीं पहुँचती तुम्हारे आँगन ये कह कर
कि तुम्हारे गीत भ्रामक हैं,
शोक कभी प्रेम नहीं हो सकता।
उसे नहीं मालूम कि वास्तव में
तुम स्वयं ही आँगन हो उस मकान की
जिसे सभ्यताओं में "अशुभ" कहा जाता है।
काशी की नगर वधू!
तुम्हारा वैराग्य तुम्हारे देह पर लगे सिगरेट के राख बताते हैं,
तुम्हें अपवित्रा कहने वाले तुम्हें नहीं जानते
पर तुम उन सभी को जानती हो,
तुम्हें पता है उस मोहल्ले के छोटे साहब को बाटियाँ पसंद है,
तुम्हें पता है कि अगली गली के तीसरे मकां में बंद रहने वाला शख्स
आत्महत्या से लौट कर आया है,
और नीले कुर्ते वाले की जेब खाली है नौकरी से।
तुम्हारे कंधे जो गहनों के भी बोझ न उठा पाते,
उनपर इस पूरे शहर के दुःखों को कैसे टाँकोगी तुम?
यहाँ के मानचित्र पर बिखरे लाल रंग
तुम्हारी सिन्दूर रेखा है,
पूरे नगर के सुख की कामना करने वाली,
कई देवता भी तुम्हारे चौखट पर
प्रेम भिक्षा माँगते हैं।
तुम्हें ज्ञात है कि प्रेम पाना तुम्हारे अधिकार में नहीं,
परंतु सभी को समान प्रेम बाँटती तुम, कहाँ से लाती हो इतनी ऊर्जा?
ये धरती तुम्हारे सौंदर्य का ताप नहीं सह सकती,
इसलिए भी सभ्यता की आँखों में खटकती हो तुम!
देखना! तुम्हारी मृत्यु पश्चात
तुम्हारी अस्थियों से फूल उगेंगे,
मंदिर की हर मूर्ति को व्याकुलता से भर देने वाले अलौकिक सुगंध वाले,
और ये शहर,
दैव प्रतिमा पर अर्पण करने के बदले
जला देगा उन्हें भी अमंगल कह कर,
और तुम हँसती हुई चली जाओगी
यहाँ के सौभाग्य को अपने साथ ले कर,
हमेशा-हमेशा के लिए।
~ अपर्णा शाम्भवी41 14 13- iamankyt Waah.... Behatreen
- rudraaksha निशब्द
- ek_ehsas अद्वितीय और अनुपम
- cosines Bht hi behatareen likha hai aapne ❤️❤️
-
the_heartful_shayari
Have gone through your writings, and had found this opportunity for you. You can become a published Author.
An Anthology Srijan Inked 2.0
(A collection of English and Hindi Poems).
WhatsApp Message on 9473022367 for more info.
aparna_shambhawi 52w
अपनी धुरी पर घूमती पृथ्वी
लगाती है परिक्रमा सूरज के
बिना परस्पर स्पर्श के पहुँचा आता है सूरज
अपना प्रेम धरती तक अपनी ऊष्मा से,
अपने आसन पर विराजित सूर्य
बैठा देखता है पृथ्वी को आँगन में नाचती अल्हड़ स्त्री मानकर,
और अपने सुख-दुःख से अकुलाई धरती
कराती है अनुभव सूरज को जीवित होने का।
हे सूर्य मेरे!
मेरी कविता तुम्हारी धरती है,
और मैं शशि,
तुम्हें अपनी पृथ्वी का जीवन-दायक मान,
प्रणाम करती हूँ!
~ अपर्णा शाम्भवी35 9 13- hindiwriters बहुत अच्छा
- vipin_vn अनुपम बहु सरस..!
- aparna_shambhawi @vipin_vn dhanhawad sir
- cosines Khubsurat ❤️❤️
aparna_shambhawi 53w
ज़माने की बातें समझने की बातें,
गाहे-बेगाहे चौराहे की बातें।
छुपी इन बातों में वे सारी बातें,
जो छपती नहीं अखबारें की बातें।
तुम सुनना नहीं और समझना ना जांना,
ये कस्बे, मुहल्ले, शरीफ़ों की बातें।
जो की है मोहब्बत तो बातें बनेंगी,
घबरइयो न सुनकर सखियों की बातें।
वे रोकेंगी तुमको के कुर्बत न जाना,
तुम झूठी सुना आना फुर्कत की बातें।
ये बातें उड़ी हैं आज छत से तुम्हारे,
जो है मेरे घर की, छतों की बातें।
फूलों की कलियों की रतियों की बातें,
सखी! मेरा मन जो ज़माने की बातें।
तुम चलना अगर तो फिर रुकना न पाकी,
मोहब्बत में कहाँ है ठहरने की बातें।
~ अपर्णा शाम्भवी 'पाकी'37 5 12- pushpinder_1 Beautiful... Kya baat hai khoobsoorat
- hindinama बहुत अच्छे) :
- hindiwriters बहुत उम्दा :)
- ek_ehsas Ohho.... marvelous
- anusugandh Bahut khoob
aparna_shambhawi 53w
तितली के निस्पृह पंख
छू लेते धरती पर बिखरी
हरसिंगर की पत्तियों को
जिनका अंत सफल हो जाता,
स्वर्ग से अज्ञात प्रकाश वर्ष की दूरी पर भी!
सवेरे की खिड़की पर
कोहनी टिकाए बैठा लाल सूरज
झाँकता है भीतर चोरी-चुपके
और दे जाता है थपकी नन्ही गवरैया के माथे पर।
किसी सुनसान बियाबान के हृदय में
छिपा हुआ तालाब
जिसमें खेलता है हँसों का जोड़ा
तो पत्ते भर जाते रंगों से और दे जाते नल-दमयन्ती की उपमा।
रात की फैली चादर में
चमकता लालटेन चाँद का
या कहीं जुगनु के जलते दिये से
देख लेती मैना तोते को!
मुक्ताकाश में नक्काशी करते बादल
झुक आते धरती की ओर
आसमान के प्रेम को थोड़ा और भर कर।
मैंने सोचा इक बार को यूँ बँटवारा करते हैं
कि हो जाओ
तुम तितली, मैं पारिजात!
तुम गवरैया, मैं सूरज!
हम-तुम हँस, नल-दमयन्ती,
तुम तोता, मैं मैना!
तुम आकाश, मैं धरती!
तुम यथेष्ट! यथोचित हर रूप शोभायमान तुमपर!
पर इतने विकल्पों के बाद भी
मैंने चुना खुद को कविता होना,
कि फूल मुरझाएँगे,
सूरज डूबेगा,
नल भी होगा गिरफ्त में मृत्यु के,
होगी अमावस कभी न कभी,
कभी मेघ-विहीन होगा आकाश,
पर मैं सदैव पूर्ण रहूँगी तुमसे,
के वियोग मुझे तुमसे दूर लाएगी भी तो यहीं ठहरेगी,
इसी कविता में!
~ अपर्णा शाम्भवी33 17 10- ek_ehsas Itni sundar upmaye...har upma Prem ras me bheegi hui, bahut badiya
- vipin_vn अपूर्व कलमकारी....!
- aparna_shambhawi @ek_ehsas ji shukriya aapka
- aparna_shambhawi @vipin_vn shukriya sir
- iamankyt Avval
aparna_shambhawi 53w
बेला
विछोह की असीमितता पर बिछी
श्वासों की चादर
समेटे हुए है अश्रुओं को
जैसे हों मोगरे के फूल
जिसे अभी-अभी तोड़ा गया है
दैव-मूर्ति को चढ़ाने हेतु!
जैसे सौंप दिया था सिद्धार्थ ने
यशोधरा को एक बुद्ध
बिना आज्ञा
वैसे ही सौंप दी थी तुमने
एक उच्च कोटि संबंध
मुझे, स्वयं से
बिना यह जाने कि
हो सकता है इस बार
बुद्ध ने पुनः सिद्धार्थ बनना चुना हो।
तुम युद्ध के सैनिक!
तुम्हारी प्रतीक्षा में मैंने
नहीं लगाया है साँकल किवाड़ का
कि मुझे विश्वास है तुम्हारे न लौटने पर
और मालूम है कि मृत्यु अभी भी जीवित समझती है मुझे-
या तो तुम आओगे या वो!
तुम्हारी छायाचित्र धुँधली हो चली है
मानस-पटल से मेरे,
तुम संसार के नियम नहीं तोड़ोगे
यही मान कर छोड़ दिया मैंने
चित्र को निरंतर पोंछना।
पर फिर भी तुम कभी आना
तो लेते आना बेला के फूल
मैं न कुछ पूछूँगी,
न तुम कुछ उत्तर देना,
बस टाँक जाना उन कलियों को मेरे केशों में,
तुम्हारे स्पर्श से निकली बेला की अलौकिक सुगंध
मुझे जीवन पर्यंत तुमसे दूर
तुम्हारे समीप होने के भ्रम में रखेगी,
उन कलियों को टाँकते हुए
देख लेना एक बार सामने दर्पण में
अश्रु पूर्ण मेरे नेत्रों को
मैं मान लूँगी कि तुमने तोड़ दिए हैं
संसार के समस्त नियम
और चले जाना युद्ध में,
पुनः!
~ अपर्णा शाम्भवी21 8 6- ek_ehsas Bahut hi khubsoorat, advitiya
- rudraaksha उम्दा
- aparna_shambhawi @ek_ehsas ji shukriya aapka
- aparna_shambhawi @rudraaksha shukriya aapka!
- iamankyt Umdaaa
aparna_shambhawi 54w
सप्तवर्णी के रंग
निब से पोर तक
अभी भी उफ़ान भरते हैं कलम में
कि लिख पाएँ कई वर्णों में बिखरे हमारे प्रेम को,
पर एक बूँद स्याही की
अटक चुकी है निब पर
जिसने मेरे सूखते आँसुओं को सहोदर मान
उड़ने दिया खुद को मुक्ताकाश में,
और विराम लगा दिया
समस्त भाव-तरंगों पर!
पुरानी डायरी के दिसम्बर के पर्ण
जिन्हें बचा रखा था मैंने तुम्हारे लिए
उनका श्वेत वर्ण वृद्ध हो चुका है
हमारे मौन में घुली रिक्तता लिखते-लिखते।
वो बस्ता जो उस डायरी का
सबसे सुरक्षित स्थान था
उसने त्याग दी है अपनी निजता चेन तोड़कर,
उसे विश्वास है कि उसकी प्रदत्त गोपनियता हेतु
अब कोई गोपनीय छंद नहीं।
वह घड़ी जिसने तुम्हारी प्रतीक्षा में
हर क्षण मेरा साथ दिया था,
आज रुक गई है प्रतीक्षा से थक कर,
आठ से नौ के बीच अटकती उसकी सूई
जैसे विनती करती है
कि नई बैट्री लगाने के बजाय
उसे अब विश्राम करने दिया जाए।
वस्तुतः हर चीज़ यहाँ की
ऊब चुकी है मुझसे
या शायद मेरी निरसता से।
तुमसे दूर मैं वह खिड़की हूँ
जो हर सुबह सूरज की प्रतीक्षा में जागती है
और सो जाती है सुनकर कि ढल चुका है सूरज।
वर्षों से बंद पड़ी वह खिड़की
एक रोज़
तोड़ देती है अपना दम एकांत के आलिंगन में,
उस टूटी हुई खिड़की से चला आता है
सूरज मचलते हुए उस बंद कमरे में
और उग आता है इक नन्हा पौधा
सैकड़ों सिगरेट की राख से!
~ अपर्णा शाम्भवी38 13 14- rangkarmi_anuj अप्रतिम सुंदर❤️❤️❤️
- aparna_shambhawi @hindiwriters shukriya!
- aparna_shambhawi @servant_of_words_csk thank you!
- aparna_shambhawi @dharmeshpatel shukriya
- aparna_shambhawi @rangkarmi_anuj ji dhanyawad
aparna_shambhawi 58w
निशा की बिखरी धुँध
तुम्हारे चेहरे पर तुम्हें दुलारते हुए
करती है प्रतिद्वंद्विता बादलों से
जिसने एक माँ की भाँति
ढक लिया है चाँद को
ताकि गुज़रते हुए धूमकेतु
सेंध न लगा जाएँ
उसके दुलारे की निद्रा में!
मेरी खगोल विद्या के तुम चँद्र!
न जाने कितने ही निमेष
हर रात तुम्हारी आँखों की गहराई मापने के होड़ में
ले जाते हैं तुम्हें स्वप्न देश
जहाँ तुम कर सको निःसंकोच
अपनी वांछाएँ पूरी
और तुम्हारी पलकें देती रहती हैं पहरा
जैसे नक्षत्र देते हो
आश्वासन बादलों को
चाँद की नींद का
कि वे रोक देंगे हर उल्का को
गति से परे
पर नहीं टूटने देंगे दुलारे की निद्रा।
हे चँद्र! जब तुम स्वप्न के आलिंगन में
सिकोड़ते हो भवें
तो एक ध्रुव पर बैठे चकोर की भाँति
मेरा मन हो उठता आह्लादित,
भावों के इन्द्रधनुष कर जाते
मेरे अंतस की रिक्तता को प्रतिस्थापित!
परिणामस्वरूप,
होता मन लालायित कि चूम लूँ तुम्हारे बिम्ब फल से अधरों को
या सहला जाऊँ केशों को
ताकि स्वप्न देश में मिल जाए तुम्हें एक ठंडा झोंका हवा का!
तुम्हारी प्रतीक्षा में
मेरे हृदय से प्रति क्षण उठता ज्वार
हो जाता फिर शांत
जब बादलें हटा लेती अपनी लटें
तुम्हारे मुख से
और तुमसे आलिंगन की कल्पना में
बीत जाती निशा
और रवि-किरणें लिख देती
एक लघु वियोग हमारी नियति में,
पुनः एक बार!
~ अपर्णा शाम्भवी36 9 6aparna_shambhawi 61w
आँगन बरखा अटरिया
सावन घिर आए भिगाए अँगनिया।
मोहे जावन दो न पहिराओ पैंजनिया।।
फेंकी पीरी चुनरी रे उघरी अटरिया।
लाजो न लजाए री गाई कजरिया।।
जेई रंग-रंगइनी सब बही-बही जाए।
मोरी पैंजनिया जब ताल मिलाए।।
बरसे झूमी झम-झम कारी बदरिया।
पियू भारी लगे लाली-झीनी चदरिया।।
मोहे बैरागन के रंग रंगा दो।
अरी पिया मोरा श्रृंगार हटा दो।।
बन जाऊँ मैं श्याम तू बन जा राधा।
जा बन जाएँ जुगल जोड़ी आधा-आधा।।
मैं नाचूँ ध्वनि जैसे नाचे मुरलिया की।
तू बाजे मधुर-धुन गोपी-पायलिया की।।
मैं हो करधन तोहे अंग लगाऊँ।
तू बन माखन मैं मिश्री हो जाऊँ।।
मोरे केश-कजर सब बिखरत जाए।
मोरा अल्हड़ रूप जासे निखरत जाए।।
पिया मोहे सखी की याद सताए।
तू सखी रूप में अति मन भाए।।
मोरी नथिया अाज मोहे रास न लागे।
तोसे लगन प्यास की अगन है जागे।।
अब दे उतार जेई रजत पैंजनिया।
मोहे भारी लगे घुँघरू झमकनिया।।
चढ़ी नाचूँ बिसर-सब उघरी अटरिया।
मोहे जावन दो न पहिराओ पैंजनिया।।
~ अपर्णा शाम्भवी43 12 11- hindinama वाह) :
- rudraaksha वाह
- neha_sultanpuri
- parana_de_rio सुंदरम
- aparna_shambhawi @lazybongness @hindinama @rudraaksha @neha_sultanpuri @parana_de_rio ji aap sabon ka dhanyawaad
aparna_shambhawi 61w
व्यंजन
अलंघ्य नहीं कि इह लोक की
पहली रोटी बनाई होगी
किसी अज्ञात स्त्री ने
कर्तव्य बाध्य हो कर,
संभाव्य है
कि उस अज्ञात स्त्री के प्रेमी ने
बड़ी चंचलता से
बाटी की लोई को
चिपटा दिया हो थाल से
जैसे गढ़ गया हो मुद्रणालय
किसी सुंदर चित्र की प्रतियाँ!
और अपनी प्रिया को
खिजाने हेतु रख दिया हो
अंगीठी पर रखे टूटे मटके के तल पर
कि फिर उग आया हो एक शशि
अग्नि-सूत बन कर
जिसने न केवल प्रेम को आनंदमय किया
अपितु बन गया प्रेम से अधिक प्रतिष्ठित
जो दिला सके तृप्ति क्षुधा से,
और कहला गया हो रोटी!
हो सकता है कि प्रथम बार
दूध का उबलना
रहा हो किसी बच्चे का आविष्कार
कि अपनी माँ से रूठ कर
रख आया हो दुग्ध-भाजन
जलते भाड़ पर
कि माँ पहिले-पहल
बलिहारी हो ऐसी शैतानी पर
और फिर हो गई हो मौन
विश्व को एक नव-विधि सौंपते हुए!
और पूड़ियाँ?
क्या साध्य नहीं कि हो एक अल्हड़ बहिन
जिसने डाल दी हो
पकौड़े की कढ़ाई में
रोटी का बेलन
माँ से छुप-छुप कर
कि वर्षों पश्चात लौट रहे भाई पर
लुटा सके पूरी अवधि का प्रेम
केवल एक व्यंजन में !
और खिल आई हो पूड़ियाँ एक दूसरे को ढकेलते हुए?
विश्व के समस्त व्यंजन
वास्तव में रूपांतरण हैं
प्रेम की अलग-अलग व्याख्या का,
और रसोई घर
प्रेम की भट्ठी
जहाँ धीमी आँच पर सिंकता रहा है प्रेम
इतिहास की उत्पत्ति से भी पूर्व से!
तुम जनेऊ पहने सादी धोती में अवश्य ही रहे होगे
यहाँ के कुल देवता,
जिसने अलग-अलग जन्म में
रूप लिया
प्रेमी का,
बच्चे का,
बहिन का
और देते चले गए
विश्व को व्यंजनों का उपहार
अपने श्रमबिंदुओं को
धोती में पोंछते हुए!
~ अपर्णा शाम्भवी25 7 5- hindinama अप्रतिम) :
- aparna_shambhawi @yuvrajnayak ji shukriya
- aparna_shambhawi @hindinama aabhaar aapka!
- rudraaksha अद्वितीय
- aparna_shambhawi @rudraaksha ji shukriya!
aparna_shambhawi 61w
(१)
धरती की छाती
नहीं भारी कहती
ऊँचे पठारों-पहाड़ों को
न ही गगन चुम्बी इमारतों को
जैसे हो कोई बुढ़िया के फूल
इसी भाँति उठा रखती है इन्हें
गोद में अपने।
पर दब जाती है
वही धरती
असहाय हो कर बोझ तले
जब चित सोता है एक बच्चा उसपर,
सारी रात,
भूखे पेट।
(२)
धरती की बाँहे
नहीं काँपती
मुसलाधार बारिश में,
न ही लरजती है शर्म से
जब खो रहें हों
प्रेमी युगल निर्निमेष
परस्पर आलिंगन में।
पर तड़प उठती है
वही वासुंधरी बाँहे
जब सिमटता है
एक युवक
वृद्ध पिता की बाँह में
अपनी नाकामयाबी के बोझ तले,
रोते हुए।
(३)
धरती नहीं मूँदती आँखें
मर जाने से
किसी लेखक के,
न ही झपकाती है पलकें
किसी भयावह
झंझावात के सामने।
पर हो जाती है धरती
शिकार
मुक्ताबिंद की
जब ले ली जाती है
एक परोसी थाली
वापस
अभावग्रस्त दैव-मनुज से
और वह हँसता रह जाता है
अवस्था पर अपनी
निस्सहायता को
हृदय लगा कर।
~ अपर्णा शाम्भवी40 17 13- aparna_shambhawi @kamini_bhardwaj1 ji shukriya!
- neha_sultanpuri Very nice...
- aparna_shambhawi @neha_sultanpuri didi thank you
- himalayan_pride @aparna_shambhawi हम अजनबी हैं। बस आपकी कविता ने अपना बना लिया था। बेहद सुंदर लिखती हो।
- aparna_shambhawi @himalayan_pride ji bahut bahut shukriya aapka!
aparna_shambhawi 71w
शोभा अँगनमा के
आजु बढ़ी गेल शोभा अँगनमाँ के!
गीत गावती सखिया-सहेलिया हे,
नाचत-झूमत सगरी महलिया हे,
सिय-तन सोsहत पियरी हरदिया हे!
आजु बढ़ी गेल शोभा अँगनमाँ के!
जग-मग, जग-मग भेलs जनकपुर हे,
सब दुल्हा कs देखs के आतुर हे,
उह पर चमके कँगनिया अलबेलवा के!
आजु बढ़ी गेल शोभा अँगनमाँ के!
आए सुंदर-सलौनवां दुअरिया हे,
सुग्गा बोले चढ़ी-चढ़ अटरिया हे,
सिर सोहतs सेहरा पहुनमां के!
आजु बढ़ी गेल शोभा अँगनमाँ के!
धन-धन भेल मिथिला नगरिया हे,
घर-घर उमगल आनंद लहरिया हे,
भेलs राम जी बिदेह जमईया हे!
आजु बढ़ी गेल शोभा अँगनमाँ के!
रामा पहिरन पियर पीताम्बर हे,
बीचे अँगना मँ पड़े लागल भाँवर हे,
बहिन सिय संग बन्हाए गेलs साँवर हे!
आजु बढ़ी गेल शोभा अँगनमाँ के!
-अपर्णा शाम्भवी
©aparna_shambhawi33 19 9- hindiwriters @parana_de_rio अधिकार लेकर सब आए हैं :) आप एक public platform पर किसी अन्य को चंपक नहीं कह सकते भाई । जहाँ तक बात समझ की है, अपने जीवन के 28 वर्षों में बहुत समझ आ गई है कि लोगों से कैसे बात करनी चाहिए । इज़्ज़त दें, तो ही इज़्ज़त मिलेगी । नहीं चाहिए तो अलग बात है धन्यवाद ।
- parana_de_rio @hindiwriters बेटा संबित! "चंपक के चंपक समझना बुराई है, कहना नही ". शब्द कैसे भी हों, आप प्रयोग कैसा कर रहे ये फर्क़ देता है. पब्लिक प्लेटफार्म के कायदे कभी बने हैं? इसमें तो मी टू से लेकर बैन कंगना तक की भीड है, अब तू मत समझा. काहें? अट्ठाइस बरस का तापमान झुलसा रहा? जो बोला वो करो, रिपोस्ट तक ही सीमित रहो।
- aparna_shambhawi @hindiwriters आपका आभार!
- aparna_shambhawi @iamankyt shukriya!
- himalayan_pride @aparna_shambhawi kamal aparna
aparna_shambhawi 71w
#paki #krishnras #rasik #vrindavana #brajgeet
@neha_sultanpuri @rudraaksha @shriradhey_apt @hindiwriters
(धुन- श्याम चूड़ी बेचने आया)
वृषभानु लली सखी प्यारी,
जाके पाछे पड़े बनवारी!
मटकी छछिया भरी
राधा माथे धरी,
चला गए गुलेल गिरधारी!
जाके पाछे...
राधा झटकी चली,
श्याम भागे चले,
मचाए गयो शोर बड़ भारी!
जाके पाछे...
लट बिखरन लगे
नूपुर थिरकन लगे
उलझन फँसाए गयो प्यारी!
जाके पाछे...
लली रूसी गई
लला पाछे चले,
कितनी करी री मनुहारी!
जाके पाछे...
अलियाँ घेरी पड़ी,
राधा हँसती अली,
पहनाए गयो मोहन को साड़ी!
जाके पाछे...
जमना तीरे खड़ी
मन-मोहनिया मोरी,
चले चाल अजब मतवारी!
जाके पाछे...
मुख मुरली लिए
पटरानी सजी,
साँवर सुध ही बिसर गयो सारी!
जाके पाछे...
करिया नाचन लगी,
साड़ी खिसकन लगी,
ससर गई चुनरी ज़रीदारी!
(शरमाए गयो आज बनवारी!)
(हँसी करती सकल ब्रिज नारी!)
जाके पाछे पड़े बनवारी!
~ अपर्णा शाम्भवीअलियाँ घेरी पड़ी,
राधा हँसती अली,
पहनाए गयो मोहन को साड़ी!
जाके पाछे पड़े बनवारी!
©aparna_shambhawi16 4 3- neha_sultanpuri Waah...Bahut khoob!
- parana_de_rio खूब यार, बहुत ही अच्छा लिखा
- aparna_shambhawi @neha_sultanpuri didi thanku
- aparna_shambhawi @parana_de_rio ji shukriya
aparna_shambhawi 71w
प्रक्रिया
मेरे जीवन में तुम्हारा आना
ठीक वैसा ही था जैसे
सूरज के डूबने से पूर्व
आती है लालिमा दबे पाँव
रंग-पट्टी के सबसे
चटकीले रंगों को समेटे।
तुम ठहरे
जैसे ठहरती है एक बूँद ओस की
छूई-मुई की कोपलों पर
जैसे वही अंतिम ध्येय हो
उसके जीवन का..
परंतु तुम्हारा जाना इतना सहज नहीं..
तुम गए जैसे जाती रहती हैं
शिलाओं की विखंडित स्मृतियाँ युगों-युगों तक।
तुम्हारा जाना एक पल की क्रिया नहीं अपितु निरंतर प्रक्रिया है
जैसे चलता है एक वैरागी एक ध्रुव से दूसरे ध्रुव
एक नए सीमांत की खोज में।
मैं उन्हीं ध्रुवों के बीच की
भूमध्य रेखा हूँ।
~ अपर्णा शाम्भवी30 13 6- aparna_shambhawi @shashiinderjeet thank you Ma'am
- aparna_shambhawi @kalaame_azhar shukriya
- himalayan_pride Wow!!!!! इतनी गहरी हिंदी की समझ, इतनी अच्छी बिंब रचना, इतना सुंदर सृजन । कमाल अपर्णा। जिओ
- aparna_shambhawi @himalayan_pride ji shukriya
kalaame_azhar 72w
शेर
इसी गली से अभी गुज़रे होके तन्हा हम
इसी गली में कभी होता था हमारा कोई
©gumnam_shayar15 8 4- kalaame_azhar @neha_sultanpuri Shukriya Nawazish jii
- endofeternity Too good dear 👏👏
- brokeninfinity Qaatilana!!
- kalaame_azhar @endofeternity Shukriya Nawazish
- kalaame_azhar @brokeninfinity Shukriya Nawazish mohtaram
aparna_shambhawi 101w
#paki #mirakee
@gumnam_shayarr @hindiwriters @adhuri_ankahi_baatein @prakhar_sony @rudraaksha
तुम्हारी छाया चित्र को
इतना सरल तो
नहीं होना था,
एक सिद्धि को
कागज़ के टुकड़े में
कैसे समेटा जा सकता है!
तुम वो ऊर्जा हो
जिसे प्राप्त कर पाना
ईश्वर के लिए भी सहज नहीं।
तुम कोई प्रेम पुष्प नहीं
जो अर्पित की जा सको
किसी प्रेम के देवता पर,
तुम तो मंदिर का
अनवरत जलता लोबान हो
जिसका स्पर्श वर्जित है
कई पीढ़ियों से
परंतु जिसके
हर-श्रृंगार सज्जित
केशों की अलौकिक सुगंध से
व्याकुल हो उठती
आ रही हैं
मूर्तियाँ युगों से!
तुम्हारे अलौकिक
देह को
नहीं बाँध सकता
दोष युक्त रेशमी वस्त्र ,
शायद बड़ी साधना से
बुन रहा होगा
कोई प्रेम तपस्वी
कपास से दो जोड़ी
सूती साड़ियाँ
जिसे पहन तुम
कर सको निःसंकोच
अटखेलियाँ नदियों में
बन उल्लास वनस्पतियों की,
अर्पण कर सको
तुलसी पर
पत्र अमलतास के
जो हर पीड़ा हर सके
पवित्र वृंदा की
और अंततः कर सको
स्व-श्रृंगार केशों का
हर-श्रृंगार के पुष्पों से
जिसकी दुर्लभ चित्र को
सामने रख
वह तपस्वी कर सके
पुनः अपनी प्रेम साधना!
©अपर्णा शाम्भवीतुम तो मंदिर का
अनवरत जलता लोबान हो
जिसका स्पर्श वर्जित है
कई पीढ़ियों से
परंतु जिसके
हर-श्रृंगार सज्जित
केशों की अलौकिक सुगंध से
व्याकुल हो उठती
आ रही हैं
मूर्तियाँ युगों से!
अपर्णा शाम्भवी
(Read in caption)37 13 8- aparna_shambhawi @drusha ji shukriya
- aparna_shambhawi @deepak_tekari ji pranam
- feelingsbywords बेहद सुंदर
- aparna_shambhawi @feelingsbywords ji shukriya aapka
- ek_ehsas बहुत सुन्दर
kalaame_azhar 109w
पूरी गज़ल
हद से गुजरेंगे गम के जो अंबार अब
छोड़ कर चल देंगे हम घर बार अब
पहले करते थे मियाँ हम शायरी
लब पे आते कोई ना अशआर अब
कट गएँ जब मुफ़लिसी में रात दिन
हो नवाज़िश आए हैं मिरे यार अब
कर के तौबा चल दिएँ जाने कहाँ
हो रहा था जीना यूँ दुशवार अब
ख़ौफ़-ए-कुदरत का अजब ये मामला
हो रहे सब चारागर बीमार अब
तब मेरी हर बात पर हामी भरी
कर रहे क्यूँ बात से इनकार अब
ख़ुश मिज़ाजी से करो अब बात तुम
बन रहे अज़हर कैसे फ़नकार अब
@गुमनाम शायर
#jaunfalsafa #gumnam_shayar #pakiहद से गुजरेंगे गम के जो अंबार अब
छोड़ कर चल देंगे हम घर बार अब
पहले करते थे मियाँ हम शायरी
लब पे आते कोई ना अशआर अब
कट गएँ जब मुफ़लिसी में रात दिन
हो नवाज़िश आए हैं मिरे यार अब
ख़ौफ़-ए-कुदरत का अजब ये मामला
हो रहे सब चारागर बीमार अब
तब मेरी हर बात पर हामी भरी
कर रहे क्यूँ बात से इनकार अब
©gumnam_shayar54 15 23- brokeninfinity
- eshaandpen Wahh behad khubsurat ❤️
- kalaame_azhar @neha_sultanpuri @iamankyt @bal_ram_pandey @shashank_tripathi @brokeninfinity Bahut Sukriya Nawazish ❤
- kalaame_azhar @73mishrasanju @my_sky_is_falling @yusuf_meester @_ahaana_ @brokeninfinity Bahut Sukriya Nawazish ❤❤
- kalaame_azhar @eshaandpen @unknown_feeling_of_souls @parth_101 @abdkhan @ekta__ Bahut Sukriya Nawazish apka❤❤
kalaame_azhar 110w
खाली हाथों में बस्ते अच्छे
सपने महँगे य सस्ते अच्छे
सारी दुनियाँ बेगानी करके
शहर-ए-जाना के रस्ते अच्छे
तेरी खुशियाँ ज़रूरी पहले
हम तो तबियत के खस्ते अच्छे
लोगों ने मुझ से हरदम बोला
लगते हो तुम जी हंसते अच्छे
जीवन ने हमरी आँखे खोली
पीड़ा में हम निखरते अच्छे
यादों से कुछ लगाव है ऐसा
संग जो होती बहलते अच्छे
दोनों काधो पे काबिज़ रहते
साथी मेरे फरिश्ते अच्छे
©gumnam_shayar27 5 13kalaame_azhar 112w
मुफ़्त में आशिकों को जुदाई मिलीं
जैसे मरने लगे तो दवाई मिली
उसकी यादो से कैसी शिक़ायत भला
जिसके सदके में उम्र ए ख़लाई मिली
खोए अंधेरों मे हम तो यूं उम्र भर
मौत की आहटों पर बीनाई मिली
मुद्दतो ख़्वाइशो का झमेला रहा
ज़िन्दगी आदमो की सताई मिली
ये तक़ाज़ा भी क़ैद-ए-वफ़ा का रहा
ना सज़ा ही मिली ना रिहाई मिली
बैर क़ुदरत से हमने कुछ ऐसा किआ
होश आया तो बे-दस्त-ओ-पाई मिली
शायरी चुप खड़ी लब की दहलीज़ पर
दर्द-ए-दिल बढ़ गया तो रसाई मिली
वस्ल-ए-यारा में नींदे नदारत रही
उनकी बाँहों में बस ख़ुश-नवाई मिली
©gumnam_shayar20 5 8- neha_sultanpuri
- roothi_qalam Waahhh बहुत ख़ूब है ये
- kalaame_azhar @roothi_qalam @neha_sultanpuri @empty__heart bahut sukriya ❤❤
- palbhagya ✍️