पहेली तू अलबेली!
एक रात तू
एक पहेली।
ख्वाब तू
एक अलबेली।
एक खुमार तुम हो
लाजवाब तुम ही।
तारीफ करू तो
है बस काम ही।
दुनिया सारी बंजर
एक हसीन तू अकेली
ख्वाब तू....
धड़कन मेरी तू
दिलेजान तू।
दिलग्गी दिल की है
और अरमान है
हमनशी मेरी सजीली
ख्वाब तू....
दिन ढलता है
पर प्यार नहीं।
गूंजती दिल में वो
तेरी बाते कहीं।
अनमोल मेरी तू कली।
ख्वाब तू
एक अलबेली।
एक रात तू
एक पहेली।
ख्वाब तू
एक अलबेली।
ख्वाब तू
एक अलबेली।
एक रात तू
एक पहेली।
©SmartSam
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smartsam 43w
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srikys 58w
ಕಲ್ಲು ಹೃದಯ
ಭಾವನೆಗಳಿಗೆ ನಿರಂತರವಾಗಿ
ಏಟು ಬೀಳುತ್ತಾಹೊದರೆ
ಹೃದಯ ಕಲ್ಲಾಗಿ ಬಿಡುತ್ತದೆ.
ಸ್ವಗತ
©s_r_i_k_y -
कुछ रात के अंधेरे से होते है
सब किस्से कहानियां थोड़ी होते है |
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shubham7_official 102w
उसूल मोहब्बत के कुछ ऐसे भी
उनकी गली से अब हम अब आते-जाते नही
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shubham7_official 105w
मंजूर था मरना , ग़र मरना एक ही बार होता
इस दर्द-ऐ-इश्क़ ने जिंदगी तबाह कर रखा है
©shubham7_official -
shubham7_official 108w
अब साथ आएं है तो मौत तक जायगें
मुझमें और मेरी तन्हाई में बनती बहुत है ।।
©shubham7_official -
shubham7_official 108w
मेरे दिल में वो ठहरा है आज भी
उसके दिल से गुज़र मैं ना कभी ।।
उसकी ठोकर से हुआ था चूर-चूर मैं
उसी की वजह से बिखरा ना कभी ।।
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shubham7_official 109w
ज़िन्दगी के तलाश में मौत के करीब आ गया हूँ
जहां से शुरू किया था फिर वहीं आ गया हूँ ||
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shubham7_official 109w
क़लम की स्याही ख़त्म होने को है
दास्तान-ए-मोहब्बत लिखना अभी बाकी है ।।
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❤️
मै कोरे काग़ज पर अपने ख्वाब लिख दूँगा
मेरे जाने के बाद पढ़ लेना
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shubham7_official 109w
शब्दों की कमी हो गयी है
आँखे बंद करते ही यादों में आना ||
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मोहब्बत रही चार दिन ज़िन्दगी में,
अधूरी मोहब्बत के किस्से रहेंगे उम्रभर ।।।
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khusi_the_happiness 117w
इन हवाओं से पूछ लो
दिल मे मेरे कितनी हलचल है
खुद ब खुद जान जाओगे
बिन तुम्हारे जीना कितना मुश्किल है
सांसे लेती हूँ बड़ी ही गहराई से मैं
जिसमे डूबे रहते हैं सिर्फ ख्याल तेरे
लहरों की तरह बेचैन है ये मंजर मेरे दिल का
टकरा के जाती है रोज
वक्त बेवक्त तेरी चाहतें मेरे सीने से
थाम लेती हूँ दोनों हाथों से दिल को अपने
कि धड़कनों की बदमाशियां न देख ले कोई
टोक देती हूँ इन बेवजह की मुस्कुराहटों को
कि इनके खिलने की वजह न पूछ ले कोई
सिमट जाती हूँ खुद में ही
लिपट जाती हूँ खामोशी से ही
एकांत से अकेले में मिलना जुलना
खुद में ही बूँद बूँद घुलते रहना
जचने लगा है अब मुझे भी
न कोई पाबंदी है तेरे ख्यालों को आने की यहां
ना ही है कोई दिखावा दूर रहने का तुझ से यहां
आज़ादी है यहां, स्वछंद है ये ख्यालों का जहां
बस बंद हुई पलके और तेरे होने एहसास
घिर आता है लिए हाथों में किस्से पचास
चंद बातें होती है बेखबर सी
और तुझ में सिमट जाने का आभास
ले जाता है और भी दूर कहीं
और बस फिर क्या
मेरा मुझ से ही, न रह जाता है परिचय कोई
खो जाती हूँ मैं पूरी की पूरी
तुझ में ही कहीं
थामे तेरे एहसास की एक उंगली
किसी से प्यार तो नही है मुझ को
बस किसी से प्यार होने के एहसास से
बहुत प्यार है मुझे
बस इस लिए बुन दी है
आशिकाना सी एक दुनिया
न जाने किस ने मेरे लिए
जहां सब कुछ है सच्चा सा
झूठ की चादर ओढ़े
रूठना भी है, मनाना भी है
टूटना भी है, बिखर जाना भी है
रोना भी है, हँसाना भी है
साथ हो के अचानक खो जाना भी है
फिर अनंत की बाहों में
अंत मे जाके सिमट जाना भी है
इतना बड़ा झूठ है ये
कहते है लोग सभी
पर ये झूठ ही मेरी सच्चाई है
ये जानता ही नही कोई
क्योंकि "हकीकत " में वो बात ही नहीं
जो बात मेरे ख़्वाबों की गहराइयों में है
दुनिया की भीड़ में वो "साथ" ही नही
जो साथ इस वीराने की एकांत गोद मे
न जाने कैसे मिल ही जाता है
रोज बैठा बंद पलकों के पास ही......
ख़ुशी
January 24 2019
4.15 am
Thursday
©khusi_the_happiness -
khusi_the_happiness 122w
मुखौटों पे अनगिनत मुखौटे
चेहरों पे अनेकों चेहरे
मानो हों
आसमान में हर पल बदलते
बादलों के वो काले सफेद घेरे
सुना है जमीं पर तो
शक्ल ही नहीं,रंग भी हैं बदलते है लोग
फिर कहो कैसे हम तुम्हें पहचानते
किस रूप का सहारा लेते
किस रंग से भला तुम्हें आँकते
तुम करते हो बातें दिलों की
कहते हो दिल खोज लेता है
दूसरे दिल की छवी
कहो तो सही वो दिल था कहाँ
जब खो रही थी थमी साँसें सभी
धुंधला रहे थे चेहरे के भाव भी
पर अंत तक जुबां बुलाती रही
सिर्फ तुम्हारे नाम की गिनती
क्या वहां नहीं थी दिल की तारें जुड़ी
क्यों न आ सके तुम आखरी बार
थामने हमारी मुरझाती उंगली
नही आ सके तुम भी! है ना!
अब जब हम अनंत नींद से है जागे
लोग कहते हैं
लौटे हैं हम फिर नया जन्म लेके
सामने है अनेकों चेहरे
मुस्कुराते हुए होठ ढेर सारे
पर
तुम तो नही हो अब भी इनमें कहीं
कहो कैसे पहचानते हम तुम्हें अब भी?
बिना किसी एहसास के
बिन किसी पहचान के
कहो न हम फिर
तुम्हें पहचाने भी तो पहचाने कैसे?
तुम्हारी शिकायतों का जवाब
दें भी तुम्हें , तो दें किन शब्दों से
जब हमारे दिल मे कोई बात
तुम से जुड़ी बची ही नहीं
बेरुखी नहीं है ये हमारी
सिर्फ नज़रों में अब तक
तस्वीर नहीं उतरी है तुम्हारी
न तुम्हारे शब्दों की गूंज है कानों में
न ही निशान बचे है तुम्हारे
दिल के गलियारों में कोई
कैसे कह दें यूँ ही, कि तुम हो हमारे ही?
देखो वक्त की लहरे सागर की रेत से भी
छीन लेती है नाम अनेकों बेवजह यूँ ही
फिर हम तो है जान नन्ही सी
जिस की सांसें भी छीनी थी
न जाने किस ने, क्यों, कभी
कैसे लौटा लाते हम यादों के भारी लबादे
जब बदल दिए हैं ईश्वर ने हमारे तन के भी तार सारे
चलो कोई बात नहीं
तुम नाराज हो, तो नाराज ही सही
जो वक्त की लहरें लौटा लाई
तो पकड़ लेंगे यादों की भी गहराई
फिर उन यादों में तुम दिखे हमें तो
तुम्हें भी दिखा देंगे दर्द की काली परछाई
वैसे भी पाने खोने के इस खेल में
सारे कदम सिर्फ हम ही को तो हैं बढ़ाने
तुम बस यूं ही बैठे रहो ,
बन के वो मूक दर्शक
जो शिकायतों से हैं सिर्फ उंगली उठाते
है ना!!!!!?
Khusi
Thursday
20 december 2018
10.15 am
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khusi_the_happiness 122w
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अक्सर हालात और नाते
नन्हे नन्हे लमहों को तै कर के
दूर निकल जाते है जुड़ाव के पल से
और फिर ये दूरिया दरमियां उनके
बन जाती है अनगिनत खाइयां
रोज जाने अनजाने
दोनों ही मिल के
खोद देते हैं गहराइयाँ
हाँ... अंधेरी तन्हाइयों की गहराइयाँ
शायद उस जुड़े हुए पल की गांठ
अब लगती है चुभने
रोज रात के खामोश अंधेरे में
जब झूलती हैं दूर होती दो डोरिया
दूर वहां से यहां तक
देखो कैसे एक से दो हो गए है वो
इतना फांसला है कि
भूल ही गए है
एक दूजे से जुड़नाअब सवेरे बड़े मशरूफ़ से लगे है रहने
और शामें भी रहती है बड़ी ही गुमसुम
पर इस बात से दोनों को अब
बिलकुल भी होती नही उलझन
दोनों ही रहते है मशरूफ
झूठी दुनिया मे अपनी
मुस्कुराहटों को भी है बिठाया
आजकल उन्होंने होठों पे अपने
पर ख़ुशी का कहीं नामोंनिशान ही नही
दूरी नापे नही नपती
एक कमरे की दो धड़कनों में
खामोशी तोड़े नही टूटती
दो बंद लबों की कश्मकश में
दिलों दिमाग के बंद कर के दरवाजे
लो ये भी दुनियादारी समझ बैठे
जीना है..... क्योंकि जिंदगी है
उलझनों पे न कोई अब पाबंदी है
सब होगा यहां नन्हे दिल के साथ
ये किस्मत किसी ने... पहले ही चुन दी है
कदमों के निशानों से
अब कटती नही ये दूरीयां
दाग से है लगे हुए
मिटते ही नही अब
चाहे उड़ेल लो जितनी बाल्टियां
आसूं है ये जनाब
दाग पे दाग ही नमक के
दिलों के शामियानों में छोड़ेंगे
बड़ी कशमकश है लेकिन
इस दिल को शाम ओ सवेरे
उस एक जोड़ के सहारे
तैरते ही जा रहे हैं हम
एक पल भी अरसे से न ठहरे
टूटने से डर भी है लगता
जबकि अनगिनत टुकड़ों में ही
हम तुम पल पल हैं जी रहे
घबराते है दूरियों से
जबकि दूरियां ही है जो
डोरियों को बैठी है थामे
न दूरियां है गवारा,
न नज़दीकियों को है पालना
शायद बस यूं ही अब
जिंदगी को है खामोशी से काटना
न जाने किस लिए है महसूस होता
वो प्यार का एहसास
जो है झूठा
जो है ही नहीं कहीं
या फिर पीछे कहीं छूटा
वही कहीं पीछे
इंतेज़ार में होगा बैठा
पर अब न राहें लौटेंगी
न ही हवाएँ मुड़ेगी
जिंदगी है....ये तो बस आगे बढ़ेगी
ये हमें भी है खबर, औऱ उन्हें भी है पता
इस लिए शायद दोनों ने
पहन लिया है झूठी खुशी का मुखोटा
खुश है दोनों
किसी बात की कमी नहीं
यहां तक की
दूर से देखने वालों ने
उन जैसी जिंदगी की
हज़ारों दुवा भी है मांग ली
उफ़! ये नकली खुशी के नजारे
न जाने किस किस को
इस जाल में फंसायेंगे
और कितनी ही मोहोब्बतों को
नुक्ताचीनी के दलदल में गिराएंगे
Khusi
19 december 2018
7.32 pm
Wednessday
©khusi_the_happiness -
khusi_the_happiness 124w
बिन बोले जाना नही था मुझे
तुम्हें बिल्कुल खोना नही था मुझे
पर वक्त ने वक्त ही नही दिया
और मुझे एक रात
दूर तुम से दूर बहुत दूर कर दिया
मैंने देखा था तुम्हें थक के सोते हुते
अपनी उंगलियों से मेरे उंगली को जकड़ के
हथेलियों से मेरा माथा सहलाते हुए
रूठी नींदों को मेरी रातों में बुलाते हुए
जानती हूं कितना वक्त दिया था तुमने मुझे
कितनी ही रातें आंखों में बिताई थी तुमने
तुम ने बैठ नज़दीक बहुत करीब मेरे
कितने सवेरे जागे थे तुम
सिर्फ मुझे जगाने के लिए
थकते ही नही थे तुम
मुस्कुराते ही रहते थे तुम
तुम ने हर दिन सिर्फ खुशियों से मुझे सवार
इतनी खुशियां मेरे नन्हे से जीवन को देदी
की दुनिया मुझे ही खुशी समझने लगी
जब वक्त ने मुझ से तुम्हरा वक्त छीना
मेरी आँखों मे आसुओं के सिवा कुछ भी न था
मेरे दिल मे सिर्फ तस्वीर थी तुम्हारी
मेरी चीखों में सिर्फ नाम था तुम्हारा
मुझे साथ तुम्हारे कुछ और था जीना
पर ईश्वर भूलता जा रहा था हर बार
मेरे जख्मों को ठीक से सीना
कैसे रहती इस उधड़े हुए तन से
हर दम मैं साथ तुम्हारे
कब तक तुम सिलते रहते
मेरे जख्मों को यूं पत्थर बन के
बस यही सोच के में निकल पड़ी
वक्त की कलाई पकड़ के
सोचा था
वक्त ले आयेगा तुम्हारे लिए भी
कुछ सुहाने से पल खोज के
पर तुम ने तो बन्द ही कर दिए
वक्त के लिए भी दरवाजे सारे
गर पता होता कि ऐसे तुम जीयोगे
कभी न जाती मैं तुम्हें यूँ छोड़ के
रुक जाती इस उधड़े तन को ही लेके
तुम ही सिलते इन्हें हर रोज सवेरे
और फिर सहलाते उन्हें रातों के किनारे
दे देती ये हक भी तुम्हें
गर जानती की तुम रहोगे यूँ अकेले
काश की देखा होता मैंने
वक्त से लड़ने का जज़्बा तुम्हारा
मैं भी लड़ जाती वक्त से
कस के पकड़ के हाथ तुम्हारा
अब हूँ ऐसी जगह
की सिर्फ तड़प के रह जाती है रूह
और हर दिन तुम्हर दर्द को
सहती जाती है रूह
न लौटने के है रास्ते खुले
न कोई और तरीका सूझे
इंतेज़ार ही है अब नैनों तले
इतना लंबा इंतेज़ार कि बस
जन्मों से जन्म बीतते ही चले गए
Khusi
5 december 2018
9.00 pm
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khusi_the_happiness 124w
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जब बरसात की बूंदे
लगने लगी थी बेहद बर्फीली
और उस पर शर्द हवा ने भी
बिखेरी थी फूक कटीली
तन्हाई ने भी न छोड़ी
कोई कसर तुम्हें चिढ़ाने की
तब मैंने पुकारा था तुम्हें
बांहे खोल इस दिल की
खुद में छुपाया था तुमको
खींच के कलाई तुम्हारी
उस सर्दी के बसेरे को भी
निकल फेका था तुम से ही
अपनी गर्म सांसों के तप से
सहेजी थी काँपती देह तुम्हारी
क्या याद है तुम्हें ये बात अभी?
भीगी हुई यहीं तुम
ठिठुर रही थी खुद में
बून्द बून्द उलझे बालों से
खामोशी फिसल रही थी तुम से
डर भी बड़ी जोर से
लिपट हुआ था तुम से
अनजान थी तुम हर फ़िज़ा से
और थी बेखबर हर घटा से
तब मैंने प्यार के कंबल में
नर्मी से छुपाया था तुम्हें
डर से दूर , नज़दीक अपने
फीकी पड़ रही थी
गालों की रंगत तुम्हारी
दोनों हथेलियों को घिस के
तब तुम्हें जगाया था मैंने
बालों को उंगलियों से सुलझा के
तुम्हारा जूड़ा बनाया था मैंने
फिर पास बैठा के तुम्हें अपने
खुद में समेट लिया था मैंने
हर डर को कुरेद कुरेद के
दूर किया था तुम से
क्या याद है ये सब तुम्हें?जब बेहद बेलगाम हो के
आसमान ने गरज गरज के
सारी रात डराया था तुम्हें
बिजलियों के कड़कने के शोर ने
हर सांस में सहमाया था तुम्हें
लोरी सुना के धड़कनों ने मेरी
प्यार से बहलाया था तुम्हें
करीब सीने से लगा के
थपकियां दे के प्यार की
बाहों में तुम्हें सुलाया था मैंने
सहम के जब भी तुम उठी
फिर माथे को सहलाया था मैंने
सारी रात जागे जागे
करीब अपने तुम्हें सुलाया था मैंने
क्या याद है ये सब तुम्हें?
सूरज ने जब भेजी किरण पहली
तुम्हारी आँखों को हथेलियों से
छुपा लिया था मैंने
तुम्हारे सपने न टूटे जाए
इसलिए तुम्हें न जगाया था मैंने
खुद में तुम्हें समेटे हुए
बहुत करीब दिल के
तुम्हें सजाया था मैंने
सारी सारी रात जग के
तुम्हें सुलाया था मैंने
क्या याद है ये सब तुम्हें?
न जाने सुबह ने
ऐसा क्या कर दिया जादू
कि रात की लिखी किताब को
उजालों ने कर दिया बेकाबू
और जा उड़ा हर लम्हा
जैसे कभी था ही नहीं
उठते ही अंगड़ाई लेके
जब तुम ने फिर सहम के मुझे देखा
और डर के दूर हो के
मुझ से पूछा
"कौन हो तुम, क्या कर रहे हो यहाँ"
मेरी जुबान को जवाब में
एक शब्द भी न मिल सका
बस मन ही मन तुम से
ये सारे सवाल करता रहा
और पूछता रहा
क्या तुम्हे याद है कुछ भी ?
दूर से ही बस तुम्हारी हैरानी को
हैरान आंखों से देखता रहा
तुम्हारी हड़बड़ी को
बस देखता ही रहा
जब जब तुम लड़खड़ा के गिरी
दूर से ही बस तुम्हें सहेजता रहा
पर पास आ के
तुम्हें कुछ भी बताने से डरता रहा
आंखों ही आंखों में बस
तुम्हें सवाल करता रहा
क्या कुछ भी याद नहीं है तुम्हें?
Khusi
4 december 2018
6.45 am
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khusi_the_happiness 125w
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एक लड़की है
जो मेरे दिल में
मुझ से बिन इज़ाज़त
न जाने किस कोने में
चुप से, छुप के रहती है
मेरी हर बात मुझ से पहले
न जाने कैसे वो जान जाती है
दिल के कोनों से जो शब्द
मेरी ज़ुबान अब तक चुन न पायी
उन लफ्जों को भी न जाने कैसे
मुझ से पहले वो बुन लेती है
एक लड़की है जो मुझ को
मुझ से पहले सुन लेती है
चुलबुली सी वो तितली
कभी तो मुझ पर हर वक्त
कुछ यू मंडराती है
मानो मेरे हर दर्द को बस
मधू रस बना चूस जाती हो
और फिर कभी बिन कारण ही
वो धुँए सी विलुप्त हो जाती है
मैं इंतेज़ार में ही खड़ा रह जाता हूँ
और वो अरसे तक न लौट पाती है
एक लड़की है जो
अपनी गैर मौजूदगी में
मुझे बहुत सताती है
नादान है वो, या अनजान है
न जाने क्या उस की पहचान है
पर हर बार मेरी पहचान भूल के
मुझ से ही वो अनायास आ टकराती है
और फिर खामोश सी खड़ी सामने मेरे
मासूमियत लिए सवालों में
मुझ से ही मेरी पहचान पूछने
शून्य सी आँखे लिए चली आती है
एक लड़की है जो मुझे हर रोज
नई सी बन के फिर नई पहचान दे जाती हैनाराज़गी जताऊं भी तो कैसे
और किस पे?
नाराज़ होने का वो मुझे
मौका ही कहाँ एक देती है
खो जाती है जब भी वो मुझ से,
हो के दूर किन्ही तूफानों में
तब भी हर जगह वो
मुझे ही खोजती सी नज़र आती है
औऱ फिर अंत मे न जाने कैसे
मुझ से ही से मेरा पता पूछने
अनायास ही आ टकराती है
मुझे ही आ के पूछती है
कि क्या खोया है उसका ?
क्यों उसे वो पता नहीं ?
पर बिन उस के
अब एक क्षण भी
उस के दिल को चैन नहीं
एक लड़की है जो मुझ में रह के
मुझे ही मेरा पता पूछने अती है
और फिर मुझे बातों बातों में
एक पता और पहचान देके
मुझे ही खुद को
खोज लाने को कह जाती है
नाराज़ रहूं भी तो कैसे
वो कभी मुझे भूलें भूल नही पाती है
दिन हो या रात मेरा ही अक्ष
अपने नैनों में लिए भटकती है
एक लड़की है जो
मुझ में रह के
मुझे ही मुझ को
खोज लाने को कहती है
आज बादल जब बरसेगा
उसे आसमान का रोना कह के
मेरी पंखुड़ियों में वो आ बैठेगी
और फिर मुझ में खुद को खो के
मेरी ही बातें मुझ से कह देगी
कभी हँस के तो, कभी रो के
वो सिर्फ याद मुझे करती रहेगी
बार बार बस ये कहेगी
"एक ऐसा है साथी मेरा,जो है मुझ से खो गया"
क्या तुम खोज सकते हो,ऐसे किसी शख्स का पता"
क्या कहूँ उस से
मुझ को हर बार की तरह
आज भी पता नहीं
बस कह देता हूँ
आएगा एक दिन ऐसा
जब मिल जाएगा तुम्हें
अपने ख़्वाबों का पता सही सही
बस इतना सुन न जाने फिर
उड़ जाती है बिन कहे वो अलविदा
मैं अवाक ही रह जाता हूं
खामोशी से वही खड़ा
और खो जाती है न जाने वो कहाँ
डर लगता है खोने का उसे
दिल रोता है न पास पाके उसे
न जाने कैसा है ये नाता
पर मन हर बार यही है कहता
वो लौट आएगी फिर लेके
आयाम कोई औऱ ही नया
जिस का आकर मुझ सा ही होगा
पर रंग नए से होंगे फिर इस दफा
एक लड़की है जो
मुझ से पूछे बिना
रहती है मेरे दिल के पास
करती है जादूई पंखों से
मेरे सपनों को
बड़ी ही खामोशी से
न जाने कैसे वो साकार
Khusi
2 december 2018
6.00 am
©khusi_the_happiness -
khusi_the_happiness 125w
कोमल एहसासों की दुनिया थी मेरी
इन आँखों के उस पार
जब चाहे कर ली बंद पलके
और जा पहुची मीठे ख़्वाबों के पास
उंगली पकड़ी हुई थी मैंने
हाथों का न था कोई पार
कोहरे की थी घनघोर दीवार
पर किसी के साथ होने का
दिल को था पूरा ऐतबार
देखी न जाती थी जमाने से
मेरे बेपरवाही, खुश मिज़ाजी के हाल
कभी बाढ़ लगवाते थे काटों भरी
तो कभी खड़ी कर देते थे दीवार
ख़्वाबों के झूठे जनजाल से
कहते है रहों बहार
खुशी के एहसास को भी
करो दो ऊंची दीवार के उस पार
और कहते है वो सभी
झूठी है दिल मे उठती
खुशी के इरादों की हर बात
देखो कितनी ऊंची है अबकी
उन की खाड़ी की गई ये दीवार
न सपने आते है, न ही आती है नींद
न कोई नज़ारे दिखते है, न ही कोई बहार
न उंगली आती है थामने, न सहलाने कोई हाथ
उफ्फ कितनी घुटन है दीवार के इस पार
मानो दम ही घुट जाएगा, बैठे बैठे लगातार
पर सांसे चल रहीं है, पलके झपक रही हैं
नजर एक टक देखती है वहीं लगातार
मानो आने को है, कोई चिट्ठी या तार
लेके कोई प्यार से समाचार
देखो कैसे
अकड़ के खड़ी है एहम की दीवार
फिर भी न जाने कैसे बन जाता है
बार बार ये छोटा सा रोशनदान
रिसता है जहां से लगातार
अनजाना सा मधुर प्यार व्यवहार
नज़ारे नही दिखते अब यहां से, तो क्या!
पर खुशबू आती है हवा के झोकों के साथ
उंगली नही आती है थमने मुझे तो क्या
पर कोहरा चला आता है हर रोज मेरे पास
क्या कहूँ इन दीवारों को
और क्या कहूँ इन रोशनदानों को
क्या कह दूँ कोहरे को
और क्या ही कहूँ इन वीरानों को
ये तो एहसास हैं खोखले से कोई
खास है पर, इनके सर पैर नही कोई
शायद वहम है एकांत का
या किताब है बिना लिखी हुई
ये दीवार और इस दीवार का रोशनदान
ये बहते हुए एहसास, ये सिसकते जस्बात
ये किसी अजनबी का ख्वाब, और अधूरी किताब
न जाने कितनी दफा चुवायी गई
ये बेफिजूल की बात
पर न जाने क्या है कि उभर आते है
धुंधले से निशान
न पड़े जाते है साफ साफ
न किये जाते है नज़रअंदाज
कैसे करूँ दूसरी तरफ
मैं अपना ये ध्यान
जब इन आँखों के आगे
खड़ी है इतनी बड़ी दीवार
और उस दीवार में खुला है
एक छोटा सा रोशनदान
कहो क्या है मालूम तुम्हे
कोई इस का भी इलाज़ !
Khusi
4.26 pm
29 november 2018
©khusi_the_happiness -
khusi_the_happiness 125w
तू फिर एक दफा
ख्वाब बन के आजा
तू फिर एक मर्तबा
एहसास बन के आजा
खोई खोई सी हूँ
जब से तू है खोया
सोई सोई सी हूँ
जब से तूने नहीं जगाया
ठहरी हुई सी हूँ
जब से तू नही आया
तू एक बार फिर
नींद बन के आज
ख़्वाबों की दुनिया
फिर एक बार
सुनहरे रंगों से सजा जा
तू हौले से मुझे सुला जा
उंगलियों से
मेरे बालों की उलझन
और मेरे जीवन की उलझ
साथ ही में सुलझा जा
तू हथेलियों को फिरा के माथे में मेरे
तू मेरे माथे की सिलवटे
और जीवन की करवटें
साथ ही में मिटा जा
तू थपथपा के मुझे
मेरे ठहरे दर्द को
और रुके रास्तों को
नर्मी से सहला जा
तू आ के एक बार
मुझे जरा देख तो जा
तेरे बिना कितनी अधूरी सी
है ये ख़्वाबों की रहें
और जिंदगी के चौराहे
भीड़ बड़ी है यहां पर
लेकिन कोई साथी संगी नही
तेरे बिना कोई भी
बहारों में अब रंग ही नही
ये बेजान से नजारे
ये सन्नटे के किनारे
बस इंतज़ार में हैं
कि कब तू यहां से गुजरे
याद है न तुझे
तेरे बिना जीती हूँ मैं
पर जीने का सलीका आता नहीं मुझे
याद है न तुझे
तेरे बिना सोती हूँ मैं
पर ख़्वाबों को बुनना आता नही मुझे
याद है न तुझे
तेरे बिना एहसास तो हैं मुझ में
पर छूते नही वो मुझे
तेरे बिना सब है
पर मैं ही नही हूँ मुझ में
तो फिर अब आज
देर न कर यूँ समझने समझाने में
क्योंकी
मैं हूँ तेरी और तू है मुझे में
Khusi
27 november 2018
10.40 pm
©khusi_the_happiness