घुटन
घर से मकान निकलते जा रहें हैं
परिवार आएं दिन समाप्त हुए जा रहें हैं
वो बिना समझ का बचपन हीं थीक था
अब सब याद हैं और कमबख्त बर्बाद हैं
गए हुए आज भी घर न लौटें हैं
यह भरा हुआ विराना गला घोंटे हैं।
- बलराज सिंघ 'राज'
©bscpoetry
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198 posts-
11 2 1
मेहंदी
कुछ यूं थामा उसने हाथ मेरा
उसकी मेहंदी क रंग चढ़ गया
क्यूं छोड़ूं मैं वो साथ
जिस्म मेरा रिश्ते में घुल गया
तेरे मेरे तरीके कुछ अलग हैं
और तो कोई गम नहीं
तुम से कहें भीं तो कौन-से दर्द हम
किसी में तुम नहीं किसी में हम नहीं
ज़िंदगी में बहुत फासले करने होगें
कहीं तुम कहीं हम मजबूर होंगे
कहीं दूर गए भी तुम तो
एक बार दिल से लगा जाना
आंखों और दिल को न समझाना
बिन कहें होंठों से सब बता जाना
- बलराज सिंघ'राज'
©bscpoetry8 2लहु
तेरे जिस्म छुएं बिना दिल में उतर जाऊं,
समाऊ कुछ ऐसे की लहु हीं बन जाऊं।
©bscpoetry9 3-
gauravporwal
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मंज़ूर
बिछडू तुझसे बेशुमार नफ़रत दिल में हो
मोहब्बत में एक पल तेरे बिन मंज़ूर नहीं।
©bscpoetry4 2भूल
तेरी उदासी देख मैं हसना भूल जाता हूं
तेरी गोद में सर रख दुनिया भूल जाता हूं
©bscpoetry8 2 1बात
बात सबसे होती है बस उनसे नहीं होती
वो कहीं है हसती या कहीं हैं रोती
जवाब नहीं इन सबका उनसे बात नहीं होती
ज़िक्र नहीं इन जस्बातो का अब सवेर नहीं होती
मुश्किलों का हार हैं तकलीफ़ के है मोती
पता नहीं कब वो हैं जागती कब हैं वो सोती
क्या हैं वों पाती क्या है वो खोती
सच क्या हैं और क्या है बतलाती
जिस्म दों जान एक से कम नहीं होती
जागते हैं दोनों मगर रात एक नहीं होती
बात सबसे होती हैं बस उनसे नहीं होती।
©bscpoetry11 2दौलत
मेरा अमीर होने का जी करता हैं
कुछ रिश्ते और कमा लेता हूं
किसी अपने को बाहों में भरकर
सीने से लगा लेता हूं
©bscpoetry9 0इत्तेफाक़न
आज न रात भर मैं सोया कुछ कुछ सोचकर
तेरी फ़िक्र हो रहीं थीं कुछ कुछ सोचकर
यह तस्वीर दिल के बड़ी करीब सी हैं
वहीं दिल जिसकी तूं ज़िंदगी सी हैं
इस पल का इज़हार न करता हूं
इल्ज़ामात कुछ रख लेता हूं
कुछ देखा सुना था कुछ सम्भल गए
कुछ कुछ में रंग आंसु के बदल गए
झपकियों में रातों के नज़ारे सिमट गए
मानों सारे रास्ते यूंही निपट गए
दूरियों का एहसास हुआ और हुआ भी नहीं
तूने छुआ और छुआ भी नहीं
इत्तेफ़ाकन अगर कहीं सोया था मैं ?
कल रात भी क्या रोया था मैं?
©bscpoetry6 0तेरे तोहफे
कभी तुझे एक एक आंसु का हिसाब देंगे
तुझे भी उनमें भिंगा लेंगे
जी करेगा तेरा भी उनमें डूबने को ज़रूर
मगर हम तुम्हें कहीं तुफानों में छुपा लेंगे
बेफिक्र हैं हम बहुत मगर इतने भी नहीं
कि यूं सिर्फ़ क़लम की गलती पर ख़त जला देंगे
खुद ठहरा रहूं बारिशों में भला तेरे तोहफे बचा लेंगे
मगर यूं बेवफा नहीं की तुझे यूंही भुला देंगे।
©bscpoetry14 0ज़रा
कभी जाने का दिल करे तो बता कर जाना
जाते जाते कुछ जाम इश्क़ के पिला कर जाना
मैं मरू तेरी दूरियों से या अपनी बेताबियों से
यह सब भी ज़रा हमको समझा कर जाना।
©bscpoetry7 0 1The last rain.
Come and take me out in this all night rain
Kiss me like there's no tomorrow
Come before the night ends
Wrap me in your grip so tight
Take my heart on beautiful flight
Come baby take me out in this rain
Let your kiss fade away all my pains
Love me baby in this rain.
©bscpoetry7 0जिंदगी के सफ़र
मंजिलों से बेहतर यह सफ़र बन जाएं
सफ़र में मिलें हों तुम
काश यूं हों हम हमसफ़र बन जाएं
सफ़र ए हसीन था वों
जीवन ए रंगीन कर गया वों
क़िस्मत का खेल ही था हम दोनों का वहां होना
अपने अपने हिस्से का हमने किया था रोना
वो पल वो ज़मीं वो आज भीं ताज़ा हैं
ज़हन हमारे मे
वो क्या था जो दिल ले गया
शहर बेगाने में
यूं राहों का मिल जाना रूहों का खिल जाना
लगने को सब सपना ही लगता हैं
एक बार को दिल आज भी समभलता हैं
सपनों से बेहतर हकीकत हों गए
तेरे आतें हीं ज़िंदगी खूबसूरत हों गए।
©bscpoetry6 0इंतज़ार ए मनु
तुम्हें मालूम हैं क्या तुम बिन कुछ अच्छा नहीं लगता
तुम्हें मालूम हैं क्या तुम बिन कहीं दिल नहीं लगता
तेरी बाहों में ताउम्र गुज़ारने को जी करता हैं
अब तेरे सिवा हमें जहां में कहीं ना घर लगता
आजाना तुम कभी जब फुर्सत मिलें तो
इंतज़ार ऐसा की इंतज़ार बिन दिन नहीं लगता
लोग पूछते हैं अक्सर की कौन हों तुम इतना इश्क़ क्यूं हैं मुझे
अब कौन समझाएं उन्हें की तेरे बिन जीना जीवन नहीं लगता
ज़रा सीं फ़िक्र बहुत सा इज़हार ए मोहब्बत करता हूं
मिलें मौत भी अगर होठों पर तेरे तो उस मौत से डर नहीं लगता।
©bscpoetry7 0 1त्योहार
क्यूं जैसे जैसे हम बढ़ने लगें
होंठों पर खुशियों के पल घटने लगें
भागम भाग में त्योहार छूटने लगें
आएं दिन दर्जन रिशतें टूटने लगें।
©bscpoetry13 2 3इश्क़ ए हमसफ़र
आज तुझसे एक डर सांझा करता हूं
कैसे बताऊं तुझे खोने से कितना डरता हूं
ज़रा ज्यादा भावुक हूं जस्बातो में बेंह जाता हूं
जो मेरे कभी हो नहीं सकें उन्हें बड़ी जल्द अपना कह जाता हूं
दूरियां नज़दीकियां समझने में ज़रा देर लगती हैं
अकेले में संभलने में ज़रा सवेर लगती हैं
डरता हूं कहीं तेरी नज़र में बुरा न बन जाऊ
तेरे करीब होने से पहले कहीं खुद से दूर न हो जाऊ
थोड़ी देर से आती हैं समझ मगर सम्भल जाता हूं
ज़माने से दूर होते-होते तेरे करीब आ जाता हूं
जब तक हूं जहां में प्यार का मज़हब मानता हूं
किसी को इस्तेमाल करना नहीं जानता हूं
कभी कोई गलतफहमी हों जाएं तो मिलके सुलझा लेंगे
घर टूटा भी अगर तो हौले हौले फिर बना लेंगे
तुम से कीमती कुछ नहीं तूं हीं जीवन तूं हीं जान हैं
तूं हीं मेरा सुख दुख तूं ही मेरा मान हैं
यह ज़िंदगी खूबसूरत बस तेरे होने से हीं हैं
मेरा होना भी तो तेरे होने से हीं हैं
अब आं भी जाओ यह बाहें अब खाली तरसती हैं
इन नैनों से आए दिन बारिश बरसती हैं
वो स्पर्श वो साथ वो सुकून वो रात
वो घर जाने की आस एक अनकही सी बात
इश्क़ ए हमसफ़र मेरे इज़हार ए मोहब्बत करता हूं
तूं ज़िंदगी हैं मेरी तुझे खोने से डरता हूं।
©bscpoetry6 2तुमने
तुमने वो बहुत सारे तार छेड़ दिए जिनसे मैं अब तक भाग रहा था
तुमने वो ज़ख्म भर दिए जिन्हें मैं अब तक छुपा रहा था
तुमने वो अल्फ़ाज़ कह दिए जिनसे मैं ख़ुद को झुठला रहा था
तुमने वो जीवन जीना सिखाया जहां मैं घबरा रहा था
तुमने वो सुलझाया जो आज तक उलझता जा रहा था
तुमने वो खेल खिला दिए जिनसे मैं आज तक हारता आ रहा था
तुमने वो सारे खत कबूल करवा दिए जिन्हें मैं जला रहा था
तुमने वो सब किया जो कोई न कर सका
तुमने वो दर्द सहा जो कोई कह भी न सका
तुम भले माफ़ न करना बस दूर न होना
तुम दूर हुई तो यहां कभी सुकून न होना
नासमझ हूं तुम्हे रूला देता हूं
मगर तेरे आंसु देख ख़ुद के नैन भिघा लेता हूं
तुम बस साथ रहना बाकी हम आपस में बस सम्भाल लेंगे
थोड़ा इश्क़ तुम कर लेना थोड़ा हम मांग लेंगे।
©bscpoetry7 0कबूल
भगवान दरों पर नहीं घरों में मिलता हैं
वो कहीं नहीं सिर्फ़ दिलदारों में हसता हैं
कोई रूलाए तो सही इस शिद्दत से
कि सारे आंसु बह जाएं
कब तक झुठलाऊ उन आंसुओं को
किसी ख़ुदा के पास तो कबूल हो जाएं।
©bscpoetry7 0पगड़ी
वो सिर्फ़ कोई कपड़ा नहीं एक शान हैं
वो एक अभीमान वो एक सम्मान हैं
उस रंग बिरंगी पगड़ी का एक इतिहास हैं
कोई उस से खफां कोई उसके पास हैं
वो लाल उस लहु का जो बहा
एक दूजी जान बचाने में हैं
वो हरा उस प्रकृति का हैं
जिसका नाम दाने दाने में हैं
वो नीला उस आकाश का हैं
जिसके तले हम तुम बैठे साथ में
वो काला उन दर्दों का हैं
जिसने किए पीढ़ियों के फासले समाज में
थोड़ा कम ज़्यादा हर जहां में हैं
कोई मरता लुटता हर बिआबान में हैं
चलों आज इतनी ज़रुरत रखतें हैं
एक दूजे का सम्मान करते हैं।
©bscpoetry11 0 1मर्द ए दर्द
मर्द को दर्द नहीं यह रोज़ की बात हैं
जिस दिन वो कोई दुख कहें वो अंधेरी रात हैं
हुआ उसके साथ भी बहुत गलत उसके जस्बातो का भी अम्बार हैं
इसी संसार इसी ज़माने होता उसका भी व्यापार हैं
जिस्म उसका भी हैं नोंचा गया तकलीफ़ उस बेदर्द मर्द को भी हैं
उसकी तकलीफें उसे ही मारे क्या वो ज़मानें में इतना कम हैं ?
न वो किसी को दिखते हैं ना ही किसी को बेचारे हैं
हर खेल से सर काम में भी तो होते दो जिस्म हैं
फ़िर सवाल ए दास्तां एक तरफ की क्यूं हैं
क्यूं वो जब मुजरिम बने तब कहने को सबके पास बातें हज़ार हैं
क्यूं फिर वो पहुंची हुई मर्दाना ज़ात के ज़ख्म ओ अल्फ़ाज़ का न कोई करता इज़हार हैं
तुम भी उसी को पुजो जो तुम्हारी ज़ात हैं
क्या फ़र्क पड़ता हैं जिस्मों से यहा होता हर किसी का व्यापार हैं
जात लिंग सब सिर्फ़ भ्रम हैं तेरा जिस्म भी तेरे कहां संग हैं
लिख ज़रा तुभी दर्दों के प्रचार होते हैं
पता तो चलें क्यूं हर गली जिस्म ओ बाज़ार होते हैैं।
©bscpoetry13 2 1- bscpoetry @meeltanushree Thank you much beautiful. :) This means a world to me. Thank you for always being a pillar in my life. I wouldn't have been the present me without you. You'll always be my love. Keep smiling. We will do awesome. :)
अब के जब आओ
जब जब दिल हुआ हैं उदास तब तब तेरी याद आई
कभी अच्छी कभी बुरी लगती हैं यह जुदाई
वो तुझे रोज़ देखना तेरा कई रोज़ न दिखना
तुझे आते ही बांहों में भर लेना
नींद न आएं तो तकिया कस सो लेना
वो तुझे हसाना और वजह मैं बनु
तु वो सब समझ जाएं जो न मैं कहुं
तेरे होठों का वो प्यार उस नन्हें दिल की मुस्कान
बिन बताए तेरा हौले हौले क़रीब आना हर राह में मुझे समझाना
यूं तो इश्क़ सही या जान हैं न समझो तो महान हैं
ज़िंदगी खूबसूरत तेरे साथ लगती हैं
तुझे देख देख दिल की लौह बलती हैं
अब के जब आओ तुम तो बताना नहीं मिलने हमें बुलाना नहीं
जब तुझे याद कर आंसु बहाके सो जाऊं गहरी नींद में
उस सन्नाटे में तुम आना कुछ न कहना
चुप चाप बाहों में लेट जाना
एक सुकून की रात तुम भी लेना
दिदार सारी रात करना मगर चुप रहना
सुबह जब आंख खुले तुम्हारी
अपने होंठों से चूम मेरी आंखें खोलना
मेरे कुछ कहने से पहले मुझे रोकना
उस खामोशी में मुझे दिल से लगाए रखना
दुनिया की सारी बुराईयों से छुपाएं रखना
कुछ आंसु मेरी खामोशी के तेरे होठों को मिल जाएं
तेरे बाहों में आकर कुछ गुलाब यहां भी खिल जाएं
अब देर न करना आने में नींद न आएं मुझे ज़माने में
आते आते कुछ बादल साथ ले आना
हल्की सी बारिश का बहाना देकर यहीं बाहों में रुक जाना
तुम उदास हो अगर कहीं तो यह एक बात सुनलो
आंसु तुम्हारा ख़ुशी का हो या गम का
मैंने ज़मीं पर गिरने नहीं देना
अगर गिरे भी तों मैंने अपने होठों में भर
उन्हें जीने नहीं देना।
©bscpoetry