बेकरार हूं मैं, अपनी ज़मीर के खेत बचाने के लिए
तुम बेसब्र हो ,अपनी अना के अब्र बरसाने के लिए
दर्द बन जाती है दवा,अब मुस्कान बनकर चेहरे पर
आता नहीं हुनर हमें, रूठे हुए को मनाने के लिए
गांव की फकीरी ,शहर की अमीरी से अच्छी लगी
वहां नक़ाब नहीं होते गोया, फितरत छुपाने के लिए
जिक्र होने लगा है खूब अब ,जन्नत में इंसान
का
तोड़ा जा रहा है देश, मंदिर मस्ज़िद बनाने के लिए
नींद ,खुशियां ,सपने, अपने, यार सब छूट जाते हैं
लगता है वक्त बहुत, इतने ग़म को भुलाने के लिए
शायद हो यह ग़ज़ल ,मेरी कलम का सफ़र आख़िरी
राज़ी नहीं दिल अब, किसी को कुछ सुनाने के लिए
©bal_ram_pandey
bal_ram_pandey
Bal_raj
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bal_ram_pandey 21w
हुलसित चेहरा
झुलसित मन
बोझिल सपने
निष्प्राण तन
पीली पाती
सूखा वन
गुंजित सांसे
ठिठका जीवन
बुझे दीप
हंसता तम
अनचिन्हित मग
कैसा श्रम
वंचित भाग्य
संचित यौवन
कंटक पथ
सुवासित उपवन
जन्म मरण
अनूठा बंधन
हे प्राणसखे
तव शरणम्
©bal_ram_pandey -
bal_ram_pandey 21w
ज़हर दिल में लबों पर दुआ कैसे
ज़ुबां में कांटे हाथों में दवा कैसे
न तुम किराएदार न वफादार मेरे
मकां ए दिल में रहते हो भला कैसे
मुझसे न कर इतना प्यार ए जिंदगी
निभा पाऊंगा तुझसे मैं वफ़ा कैसे
फुरकत के लम्हे और मुस्कुराना तेरा
दे रहे हो मुझको यह सजा कैसे
मेरे चेहरे में कोई और नज़र आया
आईना हो कर दे रहे हो दगा कैसे
©bal_ram_pandey -
bal_ram_pandey 21w
मां के आंचल तले मेरा सर रहे
अनजान बलाओं से दिल बेखबर रहे
हर तरफ़ है अंधेरा गिले-शिकवों का
एक चिराग़ हर- पल मेरे घर रहे
तू आसमां है भला भूलूं यह कैसे
हर हरकत पर मेरी तेरी नज़र रहे
मां है नगीना आंखों का नूर मेरे
दुआओं से आबाद तेरे घर दफ़्तर रहे
हर ख्वाबों की तासीर ही तुझसे है
बावस्ता तुझसे सांसो का सफ़र रहे
आरती अज़ान हो जाती कबूल मेरी
मौजूद सामने तेरा वजूद अगर रहे
©bal_ram_pandey -
bal_ram_pandey 23w
रिश्तों के दीवारों में दरार है
फकत पैसे से लोगों को प्यार है
सच की हाथों में फूलों के गुच्छे
झूठ के हाथों में तलवार है
गांव के लोगों की उम्र लंबी
शहर में हर शख़्स बीमार है
क्यों करें खुशामद बूतों की
ख़ुदा मेरा बड़ा खता गफ्फार है
रिक्शे वाले से पूछा हाले दिल
कहा उसने मेरा चेहरा अखबार है
तबीयत देश की क्यों नाशाद है
यूं तो बदलती रही सरकार है
©bal_ram_pandey -
जीवन के तप में फल ,
कब निष्फल होता है ,
कष्ट देखकर मानव ,
किंचित क्यों रोता है ...........।।
चीर संघर्ष से माटी ,
है बन जाती सोना ,
स्वेद सिंचित खेतों में ,
लहललाये फसल सलोना,
कर्म के पंख दिए दाता ने ,
क्यों उम्मीदें खोता है ,
कष्ट देखकर मानव ,
किंचित क्यों रोता है..............।।
जीवन है स्वप्न सरोवर ,
इसमें क्या रोना - धोना ,
शेष है जीवन ,अवरुद्ध परंतु
गांठ लगा मन में क्या सोना ,
बंजर उम्मीदों की छाती पर ,
क्यों आशा के सूरज न ब़ोता है ,
कष्ट देखकर मानव
किंचित क्यों रोता है...............।।
©bal_ram_pandey -
bal_ram_pandey 23w
इतनी भीड़ मैं ए ज़िंदगी,तुझको पहचाने कैसे
तुझे देख कर भी रहें ख़ामोश, अनजाने कैसे
"दिल" नहीं सुनता है आज, मेरे दिल की बात
अश्क से अनजान आंखें, आ गए जमाने कैसे
साकी , शराब , और मैखाने का वजूद कैसा
प्यासे लबों तक न पहुंचे , अब पैमाने कैसे
लगता है बिगाड़ दी आदत हवाओं ने चराग की
वगरना चला है आज यह घर जलाने कैसे
सवाब की खातिर इमदाद है ज़रूरी जनाब
कजा आएगी तो , ले जाओगे ख़ज़ाने कैसे
©bal_ram_pandey -
bal_ram_pandey 31w
इरादों में अगर तेरे दम है
यकीनन तेरे चांद पर कदम है
जख्म देती रहती है ज़िंदगी
मुस्कान ही तुम्हारी मरहम है
गर मिले मिट्टी को आबो-हवा
अंकुर का होता जनम है
नामुकम्मल सी है ज़िंदगी जानां
साथ तेरे खुशियों का परचम है
ज़ुल्म के ख़िलाफ़ ना हो आवाज़
तो अच्छाई भी तेरी सितम है
गुलशन हवा ख़ुशबू तुम्हारे लिए
कागज़ ग़ज़ल तेरे लिए क़लम है
©bal_ram_pandey -
bal_ram_pandey 32w
आज फिर से उठे हाथ, फिर से दुआ मांगी
जलती रहे शम्मा , थोड़ी सी हवा मांगी
यादों के फूल रखकर, सोए सिरहाने हम
सुब्ह हुई तो ,कांटों से ज़ख्मों की दवा मांगी
कुछ जागे कुछ सोए से, ख्वाब आंखों में
नींद ने आंखों से , थोड़ी सी वफा मांगी
हटा दो चिलमन, दीदार ए रुखसार करने दो
गुस्ताख नजरों ने,दिल से कुछ हया मांगी
जन्नत नसीब ना हुई ,ईमान पर चलकर
आज फिर हमने , रिंदों से सलाह मांगी
©bal_ram_pandey -
bal_ram_pandey 33w
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बड़ी दुनिया में छोटी सी कहानी रखना
परिंदों के लिए कटोरी में पानी रखना
मुफलिसी में भले ही बीत जाए कोई दिन
मन को बड़ा रखना दिल दानी रखना
अंधेरे ने कब रोका है उजाले का रास्ता आंखों में ख्वाब हमेशा सुहानी रखना
लम्हे चुरा लिया वक्त ने छूप कर कितने
दिले तिजोरी में खतों की निशानी रखना
ज़िंदगी नीम सी कड़वी है माना हमने
पेड़ के साए तले सांसों की रवानी रखना
तुम्हे भी पढ़े समझे दिल के एहसास कोई
संभाल कर पन्ने क़िताब की जवानी रखना
©bal_ram_pandey
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"हर घर कुछ कहता है"
बुत बना सब कुछ खामोशी से देखता रहता है,
मौन जुबां को सुनो जो "हर घर कुछ कहता है"।
किसी घर से खुशियों का नित शोर सुनाई देता है,
तो कही किसी घर मे सन्नाटा सा पसरा रहता है।।
इक अबला असहाय बेचारी घुट-घुट कर जीती है,
हर दिन अपने घावों को वो थोड़ा-थोड़ा सीती है।
साक्षी बनी उस घर की दर-ओ-दीवारें जुल्मों की,
किसे सुनाये वो दास्तान उसपे क्या-क्या बीती है।।
आलीशान और ऊँची-ऊँची है जिस घर की दीवारें,
उस घर के बुजुर्ग भटक रहे है सडकों पर मारे-मारे।
नीव रखी थी अपने हाथो से जिस सुंदर मकान की,
वो दंपति आशियाना छोड़ चले हाथों मे हाथ डारे।।
चीखतीं है उस घर की दीवारें भी उसका हाल देख,
जहाँ इक बेटी बहूँ बन बदलने आई जीवन की रेख।
दहेज की तपती आग मे जला दी गई सपनों समेत,
अखबारों,किस्से,कहानियों मे सिमट गई बनके लेख।।
©archanatiwari_tanuja -
vaishally 8w
इश्क़ का दरिया कुछ यूं बह रहा है...
बिन कुछ कहे ही वो बस आंखों से ही सब कुछ कह रहा है...
©vaishally -
sajank 8w
लड़कियाँ बहुत हैं दुनिया में
लेकिन मैं आज तक किसी के पीछे नहीं घूमा,
मैं और कितना सच्चा प्यार कर सकता हूँ तुझसे
कि तेरी तस्वीर हमेशा पास रखी
पर उसे आज तक नहीं चूमा!!
©sajank -
हमसे कई मिलते हैं कई जुदा होते हैं
प्यार में काबिल शायद बेवफ़ा होते हैं
©dil_ke_bol_alfaaz -
rangkarmi_anuj 8w
@bal_ram_pandey ji @rani_shri ji @my_sky_is_falling ji @lazybongness ji @theshekharshukla ji
"कृपया यहाँ से पढें"
आत्म लेख
संवेदनाओं की हत्या- मनुष्य की मृत्यु हो जाना बहुत दुखद हाँ बहुत दुखद उस परिवार के लिए जिसने अपना खोया और अपना सबसे प्यारा चहेता खोया है। वह चला जाता है दुनिया को छोड़कर और उसके पीछे रह जाती हैं इस धरती पर उसकी यादें और अपनों की आंखों में आँसू बस और वो भी अंतिम सांस तक जब तक वो याद आता रहेगा, यह सफर हर किसी को तय करना है एक न एक दिन और दर्शक बनकर देखना भी अपना बनकर और अजनबी बनकर जैसे हम आस पास देखते हैं।
यह सब जानते हैं कि हम सोचते और समझते बहुत हैं और किसी भी घटना होने से पहले और बाद में बहुत घबराए हुए रहते हैं साथ में प्रार्थना भी करते हैं सब ठीक रहे भले ही वह हमारे साथ नहीं हो रहा है पर इंसानियत के नाते हम करते हैं। यह स्वभाविक है हम बहुत भावविभोर भी हो जाते और स्वयं ही करुण रस में चले जाते हैं, यह एक मानवीय संवेदनाओं का हिस्सा है जो हमारे अंदर जीवित रहता है और रहना भी चाहिये।
लेकिन जब आप एक ऐसे मनुष्य को उस समय हंसते और मुस्कुराते हुए देखते जब किसी की मृत्यु हो चुकी होती है और उसका परिवार विलाप की धराओं में बह रहा होता है तो तब ऐसा महसूस होता है कि वह वयक्ति की आत्मा अंदर से मर गई या वो एक मनुष्य नहीं है। मनुष्य होकर भी मनुष्य जैसी हरकतें नहीं हैं यह तो ना जानवर में है ना मनुष्य में तो उसे हम अज्ञात जीव कहें या परजीवी यह तो उसे ही पता होगा कि वह कौन है।एक आदमी अपना दम तोड़ देता है, और उसकी पत्नी व बच्चे रो रोकर उसे उठाने की कोशिश कर रहे होते हैं और वह उठ नहीं रहा है क्योंकि वह ज़िंदा नहीं है। लेकिन जो ज़िंदा है वो क्यों मरे जैसे व्यवहार कर रहा है क्या वो इन सब घटनाओं से वाकिफ नहीं है या उसने कभी ऐसा महसूस नहीं किया, ठीक है दुख नहीं जता सकते न सहारा दे सकते हो पर किसी के मरने पर हंस नहीं सकते न और कब हंस रहे हो जब तुम मोबाइल पर अपनी प्रेमिका या किसी मित्र से धीरे धीरे बात कर रहे हो सबके सामने, भले कोई भी तुम्हें नहीं देख रहा है।
पर एक व्यक्ति अवश्य देख रहा है जो दुखी है और मजबूर भी, तुम ऐसी हरकत उसके सामने करोगे तो वो तुम्हें कुछ नहीं कहेगा पर उसकी नज़रों गिर ज़रूर गए हो, मंद मंद मुस्कुरा कर बात करना कान में आला लगाए और ऐसे जता रहे हो कि तुम भी उस गमगीन माहौल में शामिल हो पर नहीं शरीर से हो पर आत्मा से नहीं, यह व्यक्ति एक नहीं बहुत हैं क्योंकि जब जानवर मरता है तो थोड़ा दुख होता पर यहाँ तो मनुष्य गया था पर कोई भी असर नहीं तब हम इसे तो संवेदनाओं की हत्या कहेंगे।
©rangkarmi_anuj -
gunjit_jain 8w
फिर कुछ बेवजह❤️
संभाल कर रखना दिल की दीवारों में कहीं इसको
कि ये मोहब्बत बिछड़ जाने पर, दर्द बहुत देती है
तुम साथ हो
या न हो
क्या फर्क है!
बेदर्द थी
ज़िन्दगी
बेदर्द... है
अगर तुम साथ हो...
अगर तुम साथ हो...
गानें तो इश्क़ हैं❤️यूँ तो मैं अकेला, अक्सर कई हालातों से लड़ जाता हूँ
पर तुम जबसे बिछड़े हो, मैं खुदसे ही बिछड़ जाता हूँ
- गुंजित -
parle_g 8w
तुझे फिर और तअल्लुक नही बढ़ाना था मुझसे,
मुझे, कि कुछ ख़याल रहता तो अच्छा था !
~~ जिया ख़ान !
@cosines @rani_shri @iamfirebird @adeeba__
.....
@saroj_gupta आपकी नजर में... कुछ गुस्ताखी...
कुछ कुछ... जगह... इमाम के...अजगर....!! अच्छा लगे तो...बताइएगा जरूरनही दे सकता !
कार-ए-मोहब्ब्त नही हूँ हबीब, मैं अर्ज़-ए-तकरार नही दे सकता,
मैं अब औऱ ज़ियादा दिन तुमको,आफ़त-ए-करार नही दे सकता।
तू ने क्यों छोड़ दिया था मिरे दफ्तर में आना-जाना अर'सों पहले,
ऐसा क्या था माशूक़,कि तू मुझे ता'लिब-ए-दीदार नही दे सकता।
जाओ तुम गिनवा दो मिरे ऐब,मिरी ख़ामुशी सब रकीबों को मिरे,
तू कि'सी को मिरी चा'हत नही दे सकता, एतिबार नही दे सकता।
दो'ज़ख नही होता अब पैरों के नीचे,सब दर'मियाँ है हम दोनों के,
गर अब ये इमाम अच्छा नही, तो अच्छा अखबार नही दे सकता।
चाहकर भी फ़ख्र के बादल नही लौटते,उस जलती जमीं पर क्यों,
कहीं भी दरिया'दिली नही,कोई भी फ़स्ल-ए-बहार नही दे सकता।
हथेलियों में छाले लौट आये है, तिरे नि'ग़ार को तराशें भी कितना,
फ़र'हाद याद रखो, कोई पत्थर के बद'ले कोह'सार नही दे सकता।
जेब-ए-बदन में दर्द कित'ना ही रख लो, कोई द'यार नही है इसका,
अल्लाह! मिरा दर्द बढ़ सक'ता है, मैं अब दर्द उधार नही दे सकता।
समंदर ही फ़ानी निकला,मिरी कश्तियों के कत्ल में इक़ रोज फिर,
मैं अब तिरा नूर ब'चा लूँ कैसे, मैं गुहर-ए-आ'ब-दार नही दे सकता।
पह'चान मुश्किल में आ जा'ती है, चंद छींटे चेहरे पर गर पड़ जाए,
रे ख़ुदा! मैं क्यों चे'हरा-ए-तेजाब को गुल-ए-ए'जार नही दे सकता।
चलो कुछ तुम मान लो कि आ'सान है, कुछ मैं मान लूँ कि फ़ैज़ है,
ज़िया! जो दुआएं माँ दे सकती है तिरा परवरदिगार नही दे सकता।
©parle_g -
rani_shri 8w
ख़ुदी के वास्ते वो इंसां अब, फ़रामोश ज़रा सा रहता है,
शख़्स वो मिरे अंदर का अब,खामोश ज़रा सा रहता है।
©rani_shri -
rani_shri 9w
काश कि ये नाराज़गी जताने के बजाय
मेरे रवैये के पीछे की वजह जानने की कोशिश करते तुम....अब इतने इम्तिहान मत ले ख़ुदा आख़िर तो महज़ एक इंसान हूँ मैं,
थोड़ी जिंदगी से, थोड़ी तुमसे और थोड़ी ख़ुद से भी परेशान हूँ मैं।
©rani_shri -
rani_shri 9w
वाबस्ता- जुड़ा हुआ
तुमसे जो वाबस्ता था, अब वो दिल ख़ुद से जुदा लगता है,
एक रस्ता जो दूर से दिखता था,पास से गुमशुदा लगता है।
~श्रीकि कतरा-ए-जज़्बात भी अब सस्ता नहीं मिलता,
इस राह से कोई भी ठिकाना वाबस्ता नहीं मिलता।
©rani_shri
