बॉल नेट में गिरेगी या बास्केट के बाहर यह बॉल फेंकने वाले को तुरंत पता चल जाता है , वो तो इंतजार करता है , साथियों के साथ अफ़सोस जताने का , या साथ में जश्न मनाने का....
यहाँ साथ बहुत महत्वपूर्ण है....
©arvindubey
arvindubey
TGT HINDI ShivShyam
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arvindubey 22w
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arvindubey 22w
मैं लोगों को खुशियाँ मनाने के मौके देना चाहता हूँ,
इसलिए जोकर की तरह बार-बार गलतियां करता हूँ।
©arvindubey -
arvindubey 22w
एक वो बाप था जो अपना खून जलाकर हमारा बर्थडे मनाता था ,
एक हम हैं कि मोमबत्ती जला कर अपना किरदार निभाते हैं।
©arvindubey -
arvindubey 22w
दिसंबर तक निभा सको तभी जनवरी वाले सपनें बुनना...
©arvindubey -
arvindubey 25w
जलपरियों जैसी
चमकीले रोओं वाली रंग-बिरंगी मछलियाँ ,
साधन हैं मनोरंजन की
जो घूमती हैं सीमित परिधि में
एक्वेरियम के..
दुखी हूँ देखकर इनकी नियति
बनेंगी ये भी ग्रास
कभी-न-कभी
तथाकथित मानवता की।
©arvindubey -
arvindubey 26w
पेशकश
ट्रेन में दो अजनबी चढ़े,
एक - दूसरे के सामने बैठे
कुछ ही देर के बाद
दोनों में बातें होने लगीं
मिजाज को भांपते हुए
पहले ने दूसरे की तरफ
बढ़ाई जर्दे वाली हथेली
दूसरे व्यक्ति का मन
अचानक ही
अज्ञात आशंकाओं से
भर गया।
ऐसा ही कुछ था
उस लड़के के साथ
जब लड़की ने ठुकरा दी
उसकी पेशकश ,
भर गया उसका मन
ज्ञात आशंकाओं से
©arvindubey -
राजगीर
बन रही है दीवार कुदरत के पीर की
कमाल इंसानी राजगीर की
छोड़ता जाता है वह उस दीवार में सुराख
माहौलियत कांफरेंस जैसे ,
क्योंकि इन सुराखों पर चढ़कर ही
आगे बढ़ेगा राजगीर.....
बढ़ती जाएगी दीवार...........
और बनते रहेंगे सुराख !
©arvindubey -
आंखों में काजल हो , ये जरूरी तो नहीं
इनमें आदमियत के एक कतरे की उम्मीद रखता हूँ।
©arvindubey -
आदत
वह दौर नहीं था जो आए और गुजर जाए
वो तो आदत है जो आज भी जिंदा है
©arvindubey -
arvindubey 39w
बातें सबकी अलग-अलग हैं और मौन भी .......
©arvindubey
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sanjeevshukla_ 23w
तराशा जाए..हर पत्थर नहीं होता है इस क़ाबिल...
खुदा ने सर पटकने को भी.. कुछ पत्थर बनाए हैं l
©रिक्त -
sanjeevshukla_ 30w
ग़ज़ल
मुद्दत की शब के बाद सुबह इस कदर मिली l
बादल में आफ़ताब था धुँधली सहर मिली l
ज़ब रेत को निचोड़ चुकी प्यास तब कहीं..
हासिल है समंदर ये किसी से ख़बर मिली l
शिद्दत-ए-तिश्नगी लिए साहिल पे ज़ब गए..
लहज़े में बेरुखी थी ख़फ़ा सी लहर मिली l
किसको सुनाएँ हाल दिल-ए-बेकरार का...
मुँह फेर लिया राह में जिससे नज़र मिली l
जो भी मिला ख़ुलूस से.. सर पे बिठा लिया..
हमको इस इक खता की सज़ा उम्र भर मिली l
यौम-ए-वफ़ात भी है मुकर्रर... ये सोचकर....
राहत है.. नेकियों की सजा मुख़्तसर मिली l
©संजीव शुक्ला 'रिक्त' -
sanjeevshukla_ 46w
ग़ज़ल
*ग़ज़ल*
समझते हैँ मगर बस..... मुस्कुराकर मान लेते हैँ l
किसी का मशविरा हम सर झुकाकर मान लेते हैँ l
हर इक जो खैर पूछे, खैरियत ही चाहता होगा..
ज़रूरी तो नहीं है फिर भी अक़्सर मान लेते हैँ l
हमारी बदनसीबी यूँ,फ़ज़ल है कुछ अज़ीज़ों का..
बख़ूबी इल्म है लेकिन....... मुकद्दर मान लेते हैँ l
कभी बुझती नहीं है प्यास कुछ शबनम की बूँदों से..
मगर हम चंद कतरों को........ समंदर मान लेते हैँ l
हमारी प्यास कहती है निचोड़ें रेत को चलकर...
कोई कह दे कि दरिया है मयस्सर मान लेते हैँ l
असर जिस पर न होता हो इबादत का दुआओं का
तो ऐसे देवता को लोग...........पत्थर मान लेते हैँ l
©संजीव शुक्ला 'रिक्त' -
suryamprachands 53w
मुकद्दर का सिकंदर था सिकंदर जब लड़ा पुरु से
लगा ऐसे कि जैसे लड़ गया चेला कोई गुरु से
अमर इतिहास की सारी कहानी याद करवा दी
साहसी ने सिकंदर को भी नानी याद करवा दी
कभी देखो अगर इतिहास मेरा चौंक जाओगे
मेरे प्रण प्राण देखो तो सदा तुम खौफ़ खाओगे
कभी श्री राम के तीरों की तक-तक कान में होगी
कभी मृत्यु की आहट पार्थ के हर बान में होगी
कभी अभिमन्यु के साहस पे रोंये काँप जाएँगे
तुम्हारे वक्ष जब उस वीरता को भाँप जाएँगे
पितामह की त्याग गाथा से तीरों पर शयन होंगे
कभी पन्ना का पौरुष सुन समुंदर से नयन होंगे
कभी लक्ष्मी की तलवारों से भी सामना होगा
मिलें तो चरण छू लें हृदय में ये कामना होगा
कभी अमृत बँटेगा कृष्ण-अर्जुन वाद भी होगा
लिए पिस्टल वक्ष ताने खड़ा आजाद भी होगा
कहीं नेताजी सुख के स्वप्न को हर भूलते होंगे
कहीं वो भगत फन्दा चूम कर के झूलते होंगे
संभल जाओ अभी भी राष्ट्रहित में झोंक लो खुद को
समय अब भी है सोंचो और समझो रोंक लो खुद को
कहीं फ़िर से वो साहस की कहानी याद न आए
कहीं जो बुझ रही है वो रवानी जाग ना जाए
हो कुछ ऐसा कि आदत हर सयानी भाग ना जाए
कहीं राणा के भाले में भवानी जाग ना जाए--
©Suryam Prachands -
sanjeevshukla_ 47w
छंद - द्रुत विलम्बित (वर्ण वृत्त )
चरण - 4,मात्रा -16, वर्ण -12
नगण भगण भगण रगण
lll Sll Sll SlS*महात्मा भरत*
नयन लेकर दर्शन की तृषा,
हृदय घोर अपार व्यथा लिए l
चल पड़े पद पंकज ध्यान दे ,
भरत शीश कलंक कथा लिए l
सजल व्याकुल लोचन भू तकें,
चरण कोमल शूल विदारते l
पग बढ़ें पथ दर्शन लालसा,
ठिठकते निज भूल विचारते l
जननि हा ! वह घोर अनर्थ था,
मति फिराकर पापिनि मंथरा l
कुटिल घोर कुचक्र वृथा रचा,
विकट शीश कलंक महा धरा l
अहह ! का निज भ्रातहि राम को,
अपयशी मुख श्याम दिखाइहों l
अनुज सन्मुख का विधि जाइहों,
जननि दर्शन आशिष पाइहों l
विविध मानस मंथन ज्वार है,
विकल आहत अंतर वेदना l
भरत केवट भाग सराहते,
पद पखार निषाद धनी बना l
©संजीव शुक्ला 'रिक़्त' -
sanjeevshukla_ 47w
छंद - चामर
महात्मा भरत - (4)
जो सुने निषाद सैन्य ठाँव गंग तीर हैँ l
संग में प्रजा तथाअनेक शूरवीर हैँ l
कैकई कुमार द्वेष राज्य लोभ ले हिये,
जो कुमार जा रहे विकार कामना लिये l
मैं हठात जाय पंथ रोक रार ठानिहों,
द्वेष राम हेतु जो,निषाद शत्रु जानिहों l
बंधुओं समेत जाय काल रूप धारिहौं,
मैं निषाद तुच्छ राम हेतु प्राण वारिहों l
जो कुमार के हिये विशुद्ध नेह जानिहों,
पाद शीश धारि राम के समान मानिहों l
जा रहे समीप पंथ सोचते विचारते,
दीन कैकई कुमार की दशा निहारते l
देख के निषाद को कुमार अश्रु ढारते,
अंक ले निषाद प्राण राम को पुकारते l
धन्य भाग भ्रात पाद राम के पखारते,
बार बार अंक लै निषाद को निहारते l
देख दीन हीनता मलीनता कुमार की,
मैल अश्रु में बहा बना नदी विकार की l
वेदना निहार के विचार को धिकारते,
धन्य भ्रात राम के निषाद जै उचारते l
संग लै निषाद पीर मानसी विहंग ले,
आ प्रयाग द्वाज धाम में समाज संग ले l
हर्ष ज्ञान खान संत द्वाज धाम लै गए,
अद्वितीय संत को सप्रेम आसनी दए l
प्रेम से उचार संत द्वाज ने सबै कहा,
कैकई कुमार संतमूर्ति हैँ स्वयं महा l
ज्ञान योग पुण्य सार दर्श सीय राम का l
किन्तु है विशेष पुण्य दर्श त्याग धाम का l
चित्रकूट मार्ग में चले ऋषी अशीष लै
संग लै प्रजा समाज मातु औ मुनीष लै l
चित्रकूट धाम राम के समीप आयके,
कीन्ह भू प्रणाम धूलि शीश में लगायके l
(5)
©sanjeevshukla_ -
smriti_mukht_iiha 46w
पतित द्वेष उत्सर्ग कर,
क्षमा हृदय से लगा लो!
©स्मृति तिवारी
••✍✍✍
FB/IG❤ : #smriti_mukht_iiha
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#smit #hindimirakee #hindikavita #hks #hindilekhan #hind #hindiwritersग्रहण!
भित्तिचित्रों पर सजा दो,
पोथियों में ये लिखा दो,
जो धधक जाये स्वयंभू,
विद्रोह को ऐसी हवा दो!
मन अमासी हो रहा है,
आज सूर्य भी छिपा दो,
सागर हुये अब कूप सूखे,
भय भरे कंकड़ गिरा दो!
टूटे तारों के रुदन पर,
एक नई सरगम बजा दो,
शृगाल ताके मौन साधे,
मसान में आशा जला दो!
भावी कल के स्वप्न सारे,
नयन कोरों से बहा दो,
स्मृति रहे नहीं शेष कोई,
काया को अंतिम विदा दो!
©smriti_mukht_iiha -
sanjeevshukla_ 60w
ग़ज़ल
कोई शिकवा न कुछ ग़िला होता l
सिर्फ यादों का काफिला होता l
पाक ख़ुश्बू मे शब गुज़र जाती...
गुल कोई ख़्वाब मे खिला होता l
आसमाँ भर के सितारे होते...
बेखुदी मे ये सिलसिला होता l
देख काँटे हमारी बाँहों मे..
काश फूलों का दिल जला होता l
रात आँखों मे गुज़ारी होती...
और आहों मे दिन ढला होता l
दिल से तेज़ाब बहा है बरसों...
कतरा-कतरा गुमाँ गला होता l
रुत हज़ारों गुज़र गयीं आ कर..
फूल खिलते, शज़र फला होता l
रिक़्त यूँ ही हमारी ज़ानिब भी...
दो कदम तो कोई चला होता l
©संजीव शुक्ला 'रिक़्त' -
mrig_trishna_ 60w
ज़िस्म सारे जरूरतों के पुतले है
चरित्र के गंदले व्यक्तित्व उजले है
©mrig_trishna_ -
sramverma 63w
Date 15/03/2021 Time 11:23 PM #SRV #dil
अजीब हाल है दिलों को बैचैन होता देखूं
साँझ के घर से आती आहों की हवा देखूं
चारों दिशा से आती नफरतों की अब बू
सारे के सारे बागबां को फूल तोड़ते देखूं
यकीं कैसे दिलाऊँ दिल को अब वफ़ा का
हिज़्र में कैसे मिलते हुए आशिकों को देखूं
मोहब्बत को सदा रखा है दिलों में छुपाकर
फिर कैसे मैं उसे इश्क़ से गले मिलते देखूं
लब सदा ही जिसके प्यास से पपड़ायें देखे
उसको कैसे मैं प्रेम के दरिया में उतरते देखूं
बेचैनियों को चैन दिलाने का ख्याल आया
मगर दोनों को पता किस किताब में देखूं !
शब्दांकन © एस आर वर्मा
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साँझ के घर से आती आहों की हवा देखूं
चारों दिशा से आती नफरतों की अब बू
सारे के सारे बागबां को फूल तोड़ते देखूं
यकीं कैसे दिलाऊँ दिल को अब वफ़ा का
हिज़्र में कैसे मिलते हुए आशिकों को देखूं
मोहब्बत को सदा रखा है दिलों में छुपाकर
फिर कैसे मैं उसे इश्क़ से गले मिलते देखूं
लब सदा ही जिसके प्यास से पपड़ायें देखे
उसको कैसे मैं प्रेम के दरिया में उतरते देखूं
बेचैनियों को चैन दिलाने का ख्याल आया
मगर दोनों को पता किस किताब में देखूं !
शब्दांकन © एस आर वर्मा
