जीवन बोध
स्मृति के वे चिह्न उभरते हैं कुछ उजले कुछ धुंधले-धुंधले।
जीवन के बीते क्षण भी अब कुछ लगते है बदले-बदले।
जीवन की तो अबाध गति है, है इसमें अर्द्धविराम कहाँ
हारा और थका निरीह जीव ले सके तनिक विश्राम जहाँ
लगता है पूर्ण विराम किन्तु शाश्वत गति है वो आत्मा की
ज्यों लहर उठी और शान्त हुई हम आज चले कुछ चल निकले।
स्मृति के वे चिह्न उभरते हैं ... ...
छिपते भोरहरी तारे का, सन्ध्या में दीप सहारे का
फिर चित्र खींच लाया है मन, सरिता के शान्त किनारे का
थी मनश्क्षितिज डूब रही, आवेगोत्पीड़ित उर नौका
मोहक आँखों का जाल लिये, आये जब तुम पहले-पहले।
स्मृति के वे चिह्न उभरते हैं ... ...
मन की अतृप्त इच्छाओं में, यौवन की अभिलाषाओं में
हम नीड़ बनाते फिरते थे, तारों में और उल्काओं में
फिर आँधी एक चली ऐसी, प्रासाद हृदय का छिन्न हुआ
अब उस अतीत के खंडहर में, फिरते हैं हम पगले-पगले।
स्मृति के वे चिह्न उभरते हैं ... ...
अज्ञात
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73mishrasanju
all pics use in background ©google I am not a professional writer. I write only self satisfaction.
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73mishrasanju 25w
ये दिल अपना न जाने क्यूँ
यूँ ही बस टूट जाता है
मनाते हैं जो हम दिल को
तो जग ये, रूठ जाता है
मेरी दीवानगी मुझको,
कहाँ ले कर के जाएगी
मेरी ख़्वाहिश किसी को भी,
न शायद रास आएगी
ये ग़म मेरा न जाने क्यूँ,
मुझी पर मुस्कुराता है
मनाते हैं जो हम दिल को
तो जग ये, रूठ जाता है
खिज़ाओं में बसे थे हम,
बहारें थीं मुहाने पर
क़रीब आईं नहीं पल भर,
मेरे इतना बुलाने पर
ये 'सच' मेरा न जाने क्यूँ,
मुझे बरबस रुलाता है
मनाते हैं जो हम दिल को,
तो जग ये रूठ जाता है
मेरी ख़ुशियाँ मेरे दिल से,
यूँ ही तक़रार करती हैं
ज़रा ख़ुश हम जो होते हैं,
हमीं पर वार करती हैं
मेरा हँसना, न जाने क्यूँ
क़हर मुझ पर ही ढाता है
मनाते हैं जो हम दिलको
तो जग ये रूठ जाता है
ये दिल अपना,न जाने क्यूँ
यूँ ही बस टूट जाता है
मनाते हैं जो हम दिल को
तो जग ये, रूठ जाता है
©73mishrasanju
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©73mishrasanju -
73mishrasanju 26w
मेरा इश्क़ ही मेरी ज़िंदगी , इसको मिटायें किस तरह ,
तेरी ज़ुस्तज़ू में जी रहे , तुझे भूल जायें किस तरह ।
बीत जाये उम्र यूँ ही , नाम तेरे कर जो दी ,
मेरी ज़िंदगी बेहिसाब है , इसका हिसाब दूँ किस तरह।
हद से गुज़र जाये यूँ ही , ये तड़प जो मेरे दिल की है
ये ईनाम हैं जो ज़ख्म हैं , उनको छिपायें किस तरह।
दर पर तेरे झुक जाये यूँ ही , सज़दे को मेरी नज़र ,
तू ख़ुदा है मेरा ख़फ़ा है क्यूँ , तुझको मनायें किस तरह।
मेरी सांस रूक जाये यूँ ही , तेरी ख़ुशबू अब जुदा न हो ,
धड़कन मेरी तेरे नाम हैं , तेरा नाम न लूँ किस तरह,
करे जा सितम मुझ पर यूँ ही , तेरी हर सज़ा क़ुबूल है ,
मुझे दर्द देना अदा तेरी , इसे न कुबूलूँ किस तरह ।
©73mishrasanju
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73mishrasanju 26w
बैठ किनारे , देखता हुआ
सरोवर में गिरती उन बूँदों को
ओस की बूँदें , जो
झिलमिलातीं, सपनों की रात सी ,
परिणीति, तरंगें उत्पन्न करतीं ,
आश्चर्य है ! मेरा हृदय भी शांत ,
किन्तु कहीं-कहीं पर
डूबती - उतराती
वह यादें , जो ओस बन मेरी पलकों से झरीं थी कभी ।
देखता हूँ मैं कि मेरे छूते ही ,
वह पत्ता काँप उठता है,
सह नहीं पाता क्या वह भी,
तपती रेत की तरह मेरी आस को,
जो चुनती है ,
ओस ,
और सुंदरतम अतीत के ,
भाव विह्वल पल,
जैसे कि मैं फिर पूछता हूँ तुमसे ,
क्या मैं ,
देख सकता हूँ तुम्हें ?
अपने हाथों से ?
तुम मुस्कुरा देती हो,
अहसास करके मेरे हाथों की छुअन का ,
वह स्पर्श , जो अधरों से किया , तुम्हारा ,
मेरी अंगुलियों ने कभी ।
आह ! नहीं है अंत इसका , यह सब कुछ,
बनेगा - मिटेगा
बस इसी तरह से,
लहरें-तरंगें , आत्मसरोवर में उठेंगी किन्तु ?
यह भी हलाहल है जो ,
मजबूर कर रहा है , मुझे ,
शिव बनने को ।
बैठ किनारे ,
सोचता हूँ मैं ,
तुमसे है जीवन या तुमसे था कभी ?
©73mishrasanju
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मेरा इश्क़ ही मेरी ज़िंदगी , इसको मिटायें किस तरह ,
तेरी ज़ुस्तज़ू में जी रहे , तुझे भूल जायें किस तरह ।
बीत जाये उम्र यूँ ही , नाम तेरे कर जो दी ,
मेरी ज़िंदगी बेहिसाब है , इसका हिसाब दूँ किस तरह।
हद से गुज़र जाये यूँ ही , ये तड़प जो मेरे दिल की है
ये ईनाम हैं जो ज़ख्म हैं , उनको छिपायें किस तरह।
दर पर तेरे झुक जाये यूँ ही , सज़दे को मेरी नज़र ,
तू ख़ुदा है मेरा ख़फ़ा है क्यूँ , तुझको मनायें किस तरह।
मेरी सांस रूक जाये यूँ ही , तेरी ख़ुशबू अब जुदा न हो ,
धड़कन मेरी तेरे नाम हैं , तेरा नाम न लूँ किस तरह,
करे जा सितम मुझ पर यूँ ही , तेरी हर सज़ा क़ुबूल है ,
मुझे दर्द देना अदा तेरी , इसे न कुबूलूँ किस तरह ।
©73mishrasanju -
बैठ किनारे , देखता हुआ
सरोवर में गिरती उन बूँदों को
ओस की बूँदें , जो
झिलमिलातीं, सपनों की रात सी ,
परिणीति, तरंगें उत्पन्न करतीं ,
आश्चर्य है ! मेरा हृदय भी शांत ,
किन्तु कहीं-कहीं पर
डूबती - उतराती
वह यादें , जो ओस बन मेरी पलकों से झरीं थी कभी ।
देखता हूँ मैं कि मेरे छूते ही ,
वह पत्ता काँप उठता है,
सह नहीं पाता क्या वह भी,
तपती रेत की तरह मेरी आस को,
जो चुनती है ,
ओस ,
और सुंदरतम अतीत के ,
भाव विह्वल पल,
जैसे कि मैं फिर पूछता हूँ तुमसे ,
क्या मैं ,
देख सकता हूँ तुम्हें ?
अपने हाथों से ?
तुम मुस्कुरा देती हो,
अहसास करके मेरे हाथों की छुअन का ,
वह स्पर्श , जो अधरों से किया , तुम्हारा ,
मेरी अंगुलियों ने कभी ।
आह ! नहीं है अंत इसका , यह सब कुछ,
बनेगा - मिटेगा
बस इसी तरह से,
लहरें-तरंगें , आत्मसरोवर में उठेंगी किन्तु ?
यह भी हलाहल है जो ,
मजबूर कर रहा है , मुझे ,
शिव बनने को ।
बैठ किनारे ,
सोचता हूँ मैं ,
तुमसे है जीवन या तुमसे था कभी ?
©73mishrasanju -
73mishrasanju 57w
मेरी ज़िंदगी है , दर्द कि तरह,
अश्कों से लिखी इबारत कि तरह।
सुनता हूँ अपने दिल की , धड़कन कभी-कभी,
जैसे मातमी शहनाई कि तरह,
यादें सताती हैं, आहट कि तरह,
उन कदमों कि, जिनके लिये मैं कभी,
बिखरा था बनके ओस कि तरह,
सिमटा हूँ चिता की राख कि तरह।
मेरी ज़िंदगी है , दर्द कि तरह.....
खो सा गया हूँ अपने ख्वाबों में इस तरह,
जैसे धुंध में , परछाई कि तरह,
तपिश , सताती है चाहत कि तरह
उस दामन कि जिसके लिये मैं कभी,
बिखरा था, बनके गुलाल कि तरह,
सिमटा हूँ चिता की राख कि तरह ।
मेरी ज़िंदगी है दर्द कि तरह,
अश्कों से लिखी इबारत कि तरह।
तुम बिन ज़िंदगी है ..........
©73mishrasanju
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73mishrasanju 60w
प्रेम की अनुभूति और अभिव्यक्ति में अंतर क्यूं है।
नम हुई आँख ज़रा, फिर ये समंदर क्यूं है |
©73mishrasanju
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73mishrasanju 70w
उलझन
उलझे विचार धांगो से
सुलझते ही नहीं
लाखों बार नहीं
बार बार कई बार कोशिश की
पर नहीं सुलझते
सोचता था एक सिरा जो आ जाए हाथ तो हौले हौले कितना भी लम्बा वक्त लगे
करीने से एकसार कर गोले बना दूंगा उलझे विचारों के
ताकि तुम्हे न हो परेशानी एक ख्याल के दुसरे ख्याल में उलझ जाने की
तुम्हारा हर ख्याल अलहदा हो
हर विचार सुलझा हो तो
सहज सरल हो जाए जीवन
पर कितना सर मारा कितनी बार आँखों को आंसुओं से धोकर साफ़ किया
अब तो याद भी नहीं सच्ची
समझ गया तजुर्बों से उम्र के बढ़ते अंकों से और जीवन के कम होते वर्षो से
उलझे विचार रेशमी धागों से है जो सिरे मिल जाने पर भी नहीं सुलझते कभी
रेशमी धागों में पड़ी गांठे कहाँ खुलती है किसी से
उन्हें तोड़ ही देना पड़ता है
और टूटा हुआ कुछ भी हो व्यर्थ है
चाहे रिश्ते हों या धागे
विचार हो या ह्रदय
सब अर्थहीन
©73 mishrasanju
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73mishrasanju 72w
मैं कोई सूफी नहीं तुम भी पैग़मबर नहीं
पाप क्या है पुन्य क्या है आप ही समझाईये .
वक्त कम है जो बचे हों वो गिले कर लीजिये
आप की मर्जी है फिर जाईये न जाईये .
भूल कर कल के दुखों को आज को अपनाइये
रोने को दुनियां पड़ी है ,आप मुस्कराइये
©73mishrasanju
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शेर
रहूँगा साथ जब तक जज़्बा-ए-दीदार उमड़ेगा
कसम है खत़्म करने हैं हमे सब शौक़ चलते हैं
©kalaame_azhar -
deepajoshidhawan 2d
हालातों का असल जायज़ा ख़बरे और आंकड़े नहीं दे पाएंगे।
कोरोना को पूरी दुनिया में शायद दो ही पक्ष सौ फीसदी सही
से समझ पाए है।
पहला वो जो इस माहौल में ,मौत की ओर तिल तिल बढ़ते
मरीजों की आंखों में खौफ़ और बाहर इनकी सलामती की
दुआ माँगते परिवारीजनों के चेहरों की दहशत के बीच की
कड़ी हैं यानी कि अस्पताल कर्मी,
और दूसरा वो जिन्होंने इस बीमारी में कोई अपना खोया है।
इसे मज़ाक समझना छोड़ दें। घर पर रहें, सुरक्षित रहें
#hindiwriters @hindiwriters @hindinamaबिन पतवार कश्तियां खुद करते हो हवाले तूफ़ां के
और शिकायत समंदर से कि तुमको डुबोता क्यों है
©deepajoshidhawan -
ग़ज़ल
ग़म-ए-जिंदगी का असर रफ़्ता रफ़्ता
हुई ख़्वाइशे मुक्तसर रफ़्ता रफ़्ता
न ग़म हारने का न खुश जीत से हूँ
बना हूँ मैं पत्थर मगर रफ़्ता रफ़्ता
रिहाई मिली पिंजड़े से परिन्द को
डगर से कटे जब शजर रफ़्ता रफ़्ता
वही ग़म के किस्से वही बेकरारी
अज़ीयत से लिपटा सफर रफ़्ता रफ़्ता
है रोने की बातें हसे जा रहे हैं
है सीखा ये हमने हुनर रफ़्ता रफ़्ता
रहे अच्छे लम्हों के क़ायम तकाज़े
दुवाएं हुई बे-असर रफ़्ता रफ़्ता
©kalaame_azhar -
mamtapoet 2d
@hindinama, @hindiwriters
बड़ी ही रफ़्तार से जमाना बदला है
जरूरत के मुताबिक इंसान ने रंग बदला है
इश्क़ ने भी अब पल पल हुस्न बदला है।रूहानी इश्क़ कब
हुस्न की जागीर मांगे हैं
वो तो नजरों से भी जिस्म को
छूने की इजाजत मांगे है।
©mamtapoet -
असली सम्पति
माता के आँचल सा तुझे सुख नही मिलेगा।
पिता की जैसी रक्षा तेरी कोई नही करेगा।
दादी सी कहानी और कोई नही कहेगा।
बहनो का हँसता चेहरा और खाने की चीजों पे पहरा कही और नही मिलेगा।
एक ऐसा परिवार जिसमे है सभी दिलदार और कहाँ तुझे मिलेगा।
चाहे दुनिया घूम लेना पर इनको सजों के रखना, यही असली सम्पति।
बाकी दुनिया भर की विपत्ति।
©himanshibajpai -
eshaandpen 3d
@hindiwriters @hindiurduwriters @hindinama @rekhta_
गुड़ी पाड़वा एवं हिन्दू नव वर्ष की हार्दिक शुभकामनायेवो छोड़ आए थे अपना दिल कही ,
फिर हमने उनके अश्को को ही संभलकर रख लिया l
©eshaandpen -
deepajoshidhawan 1w
गृहस्थी शायद इसी को कहते हैं......
#hindiwriters @hindiwriters @hindinamaसुनो जी
कुछ तुम कह लेना, कुछ मैं कह लूंगी
कुछ तुम सह लेना , कुछ मैं सह लूंगी
ज़िन्दगी की धूप- छाँव में बारी बारी
कुछ तुम रह लेना , कुछ मैं रह लूंगी
वक़्त के दरिया में टूटी ग़र जो कश्ती
कुछ तुम बह लेना , कुछ मैं बह लूंगी
ज़माना हमेशा से घात लगाए बैठा है
कुछ तुम तह लेना, कुछ मैं तह लूंगी
मिट्टी से जनमे और मिट्टी ही होना है
कुछ तुम ढह लेना, कुछ मैं ढह लूंगी
©deepajoshidhawan -
alkatripathi 2d
कहा जाता है कि जब श्री कृष्ण वृन्दावन से जा रहे थें, तब वो अपनी राधा रानी से अंतिम विदाई लेते समय फिर मिलने का आश्वासन दिए...... लेकिन वो कभी मिलने आएं नहीं।
लेकिन राधा रानी उनकी राह हमेशा देखती थीं..
बिरहन ..
अरस बीते ,बरस बीते
बीते कितने हीं साल
तुम बिन मैं हूं कैसे जीती
पुछ जाओ कभी मेरा भी हाल....
विरह की अग्नि में छोड़ के मोहे
तुम तो भगवन बन गये
मैं तो तुम्हारी राधा हूं
जोगन कैसे बन पाऊंगी...
तुम संग बिताए सांझ सवेरे
तुम संग काटी मैंने रतिया
तुम जो ना आओगे
बोलो सुनेगा मोरी कौन बतिया....
आस टुटे ,सांस छुटे
टुटे सबर के बांध
इससे पहले कि मैं ना होऊं
आ जाना मेरो भगवान।
#अलकाबिरहन।
©alkatripathi -
rudramm 2d
दूरियाँ इतनी बढ़ गयी की अब बात नहीं होती
बस चाँद को देखा करता हूँ मेरी रात नहीं होती
उसे मनाने की हर कोशिश कर के हार गया मैं
उस पे सितम कि ख़्वाब में भी मुलाक़ात नहीं होती
तुझे सोच कर रोना तो चाहता है समँदर दिल का
मग़र मैं क्या करूँ मेरी आँखों से बरसात नहीं होती
©rudramm -
इतनी दूरीयाँ है
फिर भी पास होने का एहसास है ,
इतनी मोहब्बत है
फिर भी हर पल खोने का एहसास है,
इतनी तड़प-बेकरारी भरी पड़ी है साहब
शायद यही एकतरफ़ा मोहब्बत का एहसास है
©saurabh_yadav
